अयोध्या में राम मंदिर बना है तो कई प्रकार की घटनाओं पर इस समय चर्चाएं चल रही हैं । कम्युनिस्ट इतिहासकारों ने जिस प्रकार हमारे भारतीय वीर वीरांगनाओं के इतिहास को छुपाया अब उनके पाप उजागर होने लगे हैं । कई लोगों का ध्यान इतिहास की उन धूल फांकती पुस्तकों की ओर गया है , जिनमें छुपे हुए इतिहास के प्रमाणों को कम्युनिस्ट इतिहासकारों ने उपेक्षित कर कल्पना और झूठ के आधार पर मुगलों को स्थापित करता हुआ इतिहास हमारे सामने प्रस्तुत कर दिया।
जब देश अपने बारे में कुछ समझने लगे या अपनी पड़ताल अपने आप करने लगे तब समझना चाहिए कि वह जाग रहा है और सही दिशा में आगे बढ़ भी रहा है। अपने पूर्वजों के इतिहास को इसीलिए संजोकर रखा जाता है कि उससे हम प्रेरणा लें और सही दिशा में आगे बढ़ें। ऐतिहासिक स्थल, भवन , किले आदि हमें अपने पूर्वजों के सम्मान के बारे में बताने का काम करते हैं। बीते हुए कल में हुए उस घटनाक्रम की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करते हैं जिसके चलते या तो हमें मिटाने का प्रयास किया गया या जिसके चलते हमने अपना अस्तित्व बचाने में सफलता प्राप्त की। हमारे विषय में यह बात पूर्णतया सत्य है कि: –
आए कितने तूफान यहां, कोई नहीं बतला सकता,
छाती अपनी फौलादी थी नहीं कोई झुठला सकता।
जिसने आगे बढ़ना सीखा वह पीछे नहीं हटा करता,
पीठ दिखाने वाला जग में वीर नहीं कहला सकता।।
राम मंदिर का अस्तित्व में आना हमारे इतिहास का जागरण है। इतिहास की उस छुपी हुई शक्ति का स्फुरण है जो हमें आज भी चेतनित और जागृत करने की क्षमता रखती है। हमारा शरीर प्रकृति के पांच तत्वों का मिलन मात्र नहीं है। इन पांच तत्वों से अलग इसमें एक आत्म तत्व भी रहता है। जिसके कारण यह जीवंत हो उठता है। इसी प्रकार राम मंदिर भी केवल ईंट पत्थरों का सुंदर ढंग से मिलन कर देना मात्र नहीं है। इन ईंट पत्थरों के सुंदर मिलन में मर्यादा पुरुषोत्तम की मूर्ति का स्थापन भारतीय चेतना का प्रकटन है । भारतीय इतिहास का जीवंत हो उठना है। इन ईंट पत्थरों के भीतर समझो भारत की आत्मा रहती है। जिसे सारा राष्ट्र आज अपनी आंखों से देख रहा है । अयोध्या ने एक नया संदेश दिया है। एक नया उद्घोष किया है कि जागते रहो और अपने लक्ष्य की ओर सजगता के साथ आगे बढ़ते रहो।
राम मंदिर अपने भव्य अस्तित्व में सामने आया तो पूरे देश ने दीपावली मनाई। हमारा देश राजा भगीरथ का देश है। जिसने गंगा को लाने का पुरुषार्थ किया था । उनका यह पुरुषार्थ इतना महत्वपूर्ण था कि लोगों ने इसे भागीरथ प्रयास के नाम से अपनी स्मृति में संचित कर लिया। भारत अपने अस्तित्व को इसलिए बचाने में सफल हुआ कि उसने भागीरथ प्रयास करने में कभी संकोच नहीं किया । अपने पुरुषार्थ से पीठ नहीं फेरी। दुनिया के कितने देश ऐसे हैं जिन्होंने 500 वर्ष तक निरंतर किसी एक लक्ष्य को साधने की साधना की हो और अंत में उसमें सफलता प्राप्त की हो ? यदि ईमानदारी से संसार में ऐसे देश को खोजा जाएगा तो निश्चित रूप से वह भारत ही मिलेगा।
भारत ने बलिदानियों के जत्थे सजाये। मां भारती ने अनेक वीर वीरांगनाओं को जन्म दिया । उनकी छठी के पूजन के समय उन्हें देश धर्म पर निछावर होने की प्रेरणा दी । उन्हें ऐसा दूध पिलाया कि वे निज जीवन को ही मां भारती के श्री चरणों में समर्पित कर गए। आज जब राम मंदिर अस्तित्व में आ गया है तो मां भारती के श्री चरणों में न्यौछावर किए गए अनेक बलिदानी जीवन इन ईंट पत्थरों के मिलन के पश्चात जीवंत हो उठे हैं।
जिनकी बलिदानी गाथा ने हमको जीना सिखलाया,
जिनके पौरुषमय जीवन ने आगे बढ़ना सिखलाया।
उनकी बलिदानी गाथा को हम नहीं भुला सकते मन से,
जिनके कारण हिन्दू जाति ने, अपना अस्तित्व बचाया।।
बलिदानियों की इस गाथा में सबसे महत्वपूर्ण नाम भीटी के तत्कालीन राजा महताब सिंह का आता है। राजा महताब सिंह उस समय वृद्ध हो चले थे । पर देश धर्म के लिए मर मिटने की उनकी भावना आज भी युवाओं को मात देती थी। उनके भीतर देशभक्ति का लावा धधकता था । उनके खून में युवाओं की सी गर्मी थी। जब उन्होंने यह सुना कि कोई बाबर नाम का विदेशी आक्रमणकारी अयोध्या में प्रवेश करने के पश्चात राम मंदिर को तोड़ने में सफल हो गया है तो उनकी बाजुओं में दौड़ रहे रक्त में उबाल आ गया। उस समय राजा महताब सिंह ने अपने हजारों वीर योद्धाओं के साथ मिलकर विदेशी आक्रमणकारी बाबर और उसके सेनापति मीर बकी खान को चुनौती दी । दोनों ओर की सेनाओं के मध्य जमकर संघर्ष हुआ। राजा के नेतृत्व में हमारे वीर योद्धाओं ने जीवन को दांव पर लगा दिया। उस संघर्ष में बड़ी संख्या में राजा के सैनिकों ने अपना बलिदान दिया। शत्रु को भी बड़ी संख्या में समाप्त किया गया।
इतिहासकारों कि मान्यता है कि राजा के पास उस समय 75000 से लेकर 80000 तक की सेना थी । जो उस समय विदेशी आक्रमणकारी की पौने दो लाख की विशाल सेना के साथ लड़ने के लिए चल दी थी। यह युद्ध आजकल के अंबेडकर नगर जिले की भूमि पर संपन्न हुआ था। युद्ध 17 दिनों तक चला था। जिसमें देश-धर्म के दीवाने भारतीय वीर योद्धाओं ने अपने बलिदान देकर देश – धर्म के प्रति अपने समर्पण और भक्ति भावना का उत्कृष्ट प्रदर्शन किया था। मीर बकी खान ने लाख प्रयास किये पर वह17 दिन तक वह राजा और उनकी सेना को परास्त करने में सफल नहीं हो पाया था।
17वें दिन राजा का भी बलिदान हो गया। वास्तव में इस युद्ध का सबसे बड़ा बलिदान राजा का ही था। जिन्होंने देश ,धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व समर्पित कर दिया। उन्हें भली प्रकार ज्ञात था कि वह जिस समर भूमि की ओर जा रहे हैं आवश्यक नहीं है कि उससे वह लौट कर आ जाएंगे। पर उनके मन – मस्तिष्क में उस समय मातृभूमि की रक्षा का व्रत कर्तव्य बनाकर विराजमान हो गया था। उन विषम परिस्थितियों में राजा ने अपने कर्तव्य को पहचाना और जीवन की चिंता किए बिना अपने विशाल सैन्य दल के साथ रणभूमि में जाकर खड़े हो गए।
राजा उस समय भीटी रियासत का प्रतिनिधित्व नहीं कर रहे थे, वह भारत के पौरुष और पराक्रम के प्रतिनिधि पुरुष के रूप में युद्ध भूमि में उपस्थित हुए थे। उन्होंने राष्ट्रीय अस्मिता को पहचाना और उसके लिए अपना बलिदान दिया। उनका बलिदान उन्हें अमर कर गया। यह अलग बात है कि जिन अधर्मी आक्रमणकारी विदेशियों ने भारत की अस्मिता के साथ खिलवाड़ किया, उनको कम्युनिस्ट इतिहासकारों ने इतिहास में महिमामंडित करने का दंडनीय अपराध किया है, और राजा महताब सिंह जैसे देशभक्तों को उपेक्षित कर दिया है।
इसी युद्ध में मातृभूमि की रक्षा करते हुए राजा महताब सिंह के सहयोगी वयोवृद्ध केहरी सिंह भी बलिदान हुए थे। उन्होंने भी राम मंदिर की रक्षा का संकल्प लिया था। उनके भीतर आग दहक रही थी। जिसने उन्हें बलिदान होने की प्रेरणा दी और राजा के साथ बलिदान देकर उन्होंने भी अपना जीवन धन्य किया।
बलिदान दिए अनगिन , अपना अस्तित्व बचाने को,
जो संकल्प लिया मन में , उसका सम्मान बचाने को।
सच्चे सपूत भारत मां के, महताब केहरी मतवाले,
धरा पर शत्रु काट गिराए, मां का सम्मान बचाने को।।
राजा महताब सिंह के बलिदान होने के बाद मुगल सेना मंदिर प्रांगण में प्रवेश करने में सफल हो पाई। उसके पश्चात बाबर के सैनिकों को जो भी भारतीय उस मंदिर के प्रांगण में या उसके आसपास मिला, उसी को उन्होंने निर्ममता के साथ काटकर समाप्त कर दिया । अनेक प्रकार के अत्याचारों का क्रम आरंभ हो गया। राजा की वीरता से प्रभावित होकर तब कई लोक गायकों ने राजा महताब सिंह के बलिदान पर लोकगीत बनाए।
इन लोकगीतों को स्थानीय लोग आज भी गाते हैं।
लोगों में आज भी मान्यता है कि उस समय मीर बकी खान ने राजा और उसकी 80000 की सेना को मार कर उनके खून से गारा बनाने का काम किया था। इस मान्यता को इस ढंग से लेना चाहिए कि उस समय जिन लोगों ने अपना बलिदान दिया था उनके खून का मूल्य हमें समझना चाहिए। बाबरी मस्जिद हमारे वीर बलिदानियों के खून के अपमान की प्रतीक थी। जिसका विध्वंस होना अपने वीर वीरांगनाओं के वीरतापूर्ण कृत्य का अभिनंदन करना था और आज जब राम मंदिर अस्तित्व में आया है तो इसके निर्माण पर प्रसन्नता व्यक्त करना मानो अपने वीर वीरांगनाओं के खून को नमन करना है।
जिस समय यह युद्ध हुआ था उस समय 2 मुगल फकीरों को राम मंदिर के तत्कालीन पुजारी श्यामानन्द ने आश्रय दिया था। इनमें से एक फकीर का नाम कज़ल अब्बास मूसा और दूसरे का नाम जलाल शाह था। इन्होंने पुजारी सहित प्रत्येक हिंदू को उस समय बहकाने का काम किया था। इन लोगों ने अपने आप को हिंदू धर्म से प्रभावित दिखाया और हिंदू समाज की परंपराओं को अपने अनुकूल बताकर उनकी प्रशंसा की। लोग इन फकीरों की बातों में आ गए। फलस्वरुप इन्हें मंदिर परिसर में ही शरण प्रदान कर दी। इन दोनों विदेशियों ने मंदिर परिसर में रहते हुए मंदिर के उन गुप्त स्थानों की जानकारी ली जहां पर सोना ,चांदी, हीरे, जवाहरात, मणि – माणिक्य आदि छिपे हुए थे । इसके अतिरिक्त इस बात की भी जानकारी ली कि यदि किसी समय भारतवासियों के साथ संघर्ष हुआ तो उनके पास कौन-कौन से हथियार होंगे ? इस प्रकार हमारी कई प्रकार की दुर्बलताओं को इन फकीरों ने बाबर तक पहुंचाने का काम किया। जब बाबर को सही जानकारी प्राप्त हो गई तो उसने मंदिर को तोड़ने के लिए विशाल सैन्य दल भेज दिया। इस घटना के संदर्भ में हम यही कह सकते हैं कि :-
मानवता और सद्भाव को बरतो, जो उसके लायक हो,
समझो राम की सच्चाई को जिसके तुम गुणग्राहक हो।
अधम, नीच , पापी के संग में यथायोग्य बरताव करो,
उसके नीच कर्म के सच में तुम ही तो फलदायक हो।।
राजा महताब सिंह की पराजय के पश्चात मुगलों ने जनसाधारण पर भी अनेक प्रकार के अत्याचार किए थे। महिलाओं पर अत्यंत क्रूरतापूर्ण अत्याचार किए गए । सेवकों का नरसंहार किया गया। बाबर के बाद भी मुगलों के इन अत्याचारों का अंत नहीं हुआ। आगे चलकर औरंगजेब ने अपने शासनकाल में भीटी के लोगों पर और भी अधिक अत्याचार किये। इसका अभिप्राय है कि भीटी के लोगों की देशभक्ति और श्री राम के प्रति आस्था का सैलाब अन्य मुगल बादशाहों के शासनकाल में भी यथावत बना रहा। औरंगजेब के शासनकाल में भीटी रियासत पर कई बार हमला किया गया था। उसने यहां पर चुन चुनकर हिंदू धर्म स्थलों का विध्वंस किया। काशी विश्वनाथ के मंदिर को भी उसने छोड़ा नहीं था।
इन सब अत्याचारों के पीछे भीटी रियासत के लोगों की देशभक्ति और श्री राम के प्रति आस्था एक महत्वपूर्ण कारण था। मुगल बादशाह यह भली प्रकार जानते थे कि भारतवर्ष के किन-किन क्षेत्रों में राम भक्त रहते हैं और कहां-कहां से उन्हें चुनौती का सामना करना पड़ सकता है ? यही कारण था कि भीटी की रियासत उनके समय में सदा संवेदनशील बनी रही। लोग अपने पूर्वजों के बलिदान को स्मरण कर करके मुगलों से बार-बार लड़ने व जूझने के लिए समर्पित होते रहे । उधर मुगलों की अत्याचारी तलवार भी उन्हें काटने के लिए सदा चलती रही।
उन अत्याचारों में भी अनेक लोगों को अपने प्राण गंवाने पड़े थे।
झारखंडी महादेव मंदिर को औरंगजेब ने विध्वंस कर दिया था।
इस मंदिर के गर्भगृह में स्थित शिवलिंग को भी औरंगजेब के अत्याचारों का शिकार होना पड़ा था। इस शिवलिंग को तोड़ने फोड़ने का आवश्यक प्रयास किया गया था। यद्यपि मुगल सैनिक इसे तोड़ने में सफल नहीं हुए थे । परंतु उनके द्वारा इसे तोड़ने के जो प्रयास किए गए थे उनके निशान इस पर आज भी हैं । इस शिवलिंग को तोड़ने के लिए अर्थात हिंदुओं की आस्था पर सीधा प्रहार करने के लिए औरंगजेब ने 1669 में यहां पर हमला किया था।
धर्मस्थल को तोड़ कर मुगल फ़ौज पास ही स्थित गाँव सोनारपुरवा की ओर बढ़ी। यहाँ भीटी राजपरिवार महिलाओं के लिए सोने-चाँदी का काम करने वाले कुछ स्वर्णकार समाज के लोग रहते थे। जिस समय मुगलों की सेना यहां पर महिलाओं पर विभिन्न प्रकार के अत्याचार कर रही थी उस समय राजपरिवार की कुछ महिलाएं वहां से निकलकर स्वर्णकार समाज के लोगों के यहां पहुंच गई थीं। जब इस तथ्य की जानकारी औरंगजेब को हुई तो उसने अपनी सेना का मुंह इस गांव की ओर मोड़ दिया।
तब पहले तो सोनारपुरवा को लूटा गया उसके पश्चात रानियों का और उनके अनेक सेवकों के शीश काट दिए गए।
इस प्रकार श्री राम मंदिर के लिए राजा महताब सिंह, उनके सैनिकों और उनकी रियासत के अनेक लोगों ने दीर्घकाल तक अपने बलिदान दिए।
डॉ राकेश कुमार आर्य एडवोकेट
मुख्य संपादक, उगता भारत