‘मैं’ ने मैं से कह दिया, ….

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“पीतये” से हो सके , तेरा निज कल्याण।
मन काया और आत्मा का होता उत्थान।। 1।।

धनुष बना ले ओ३म को आत्मा को तीर ।
ब्रह्म लक्ष्य है तेरा,  बात बड़ी गंभीर।।2।।

दो घड़ी दे ईश को, मिलता है आनंद।
गुण अपने हमें सौंपता जो है परमानंद।।3।।

जो ध्याये परमेश को जीवन उसका धन्य।
पाप दोष सब दूर हों, बढ़ते जाते पुण्य।।4।।

‘मैं’ ने मैं से कह दिया, अपने मन का राज।
आए थे आनंद को  , बढ़ा लिया है खाज।।5।।

भूल गया जो ईश को उसका नहीं गति मोक्ष।
नीच कर्म करता रहा, छोटी बन गई सोच।। 6।।

मस्ती भर हाथी चला,   हुआ बड़ा मदहोश।
भारी पर्वत देखकर,  आए ठिकाने होश।। 7।।

उगता सूरज देखकर,  आता यही  विचार।
एक दिन ऐसा आएगा बीतेंगे दिन चार।।8।।

 

डॉ राकेश कुमार आर्य

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