बिखरे मोती
जीवनी नैया की पतवार क्या है!
जीवन की पतवार है,
संयम और विवेक ।
संयम साधै संतुलन,
विवेक लगावै ब्रेक॥2560॥
विशेष :- सुख-शान्ति का स्रोत कहाँ है ? :-
धन में संतुष्टि नहीं,
अध्यात्म देय संतोष ।
देवयान का मार्ग ये,
सुख-शान्ति का कोष॥2561॥
विशेष :- जब हृदय परिवर्तन होता है, तो क्या होता ?
चमत्कार अन्दर घटै,
बाहर मति निहार।
अन्तःकरण पवित्र हो,
मिले मोक्ष का द्वार ॥2562॥
विशेष:- प्रभु से याचना ज़रा करके, तो देखो :-
जो प्रभु- दर पर आ गया,
वो खाली नहीं जाता।
कृपा की वर्षा करे,
रक्षक रहे दिन रात॥2563॥
विशेष:-आत्मोध्दार कैसे हो :-
प्रभुवर! तेरे नाम में,
शक्ति भरी अनन्त।
आत्मा को भोजन मिले,
शोकों का हो अन्त ॥ 2564॥
विशेष:- उस परमानन्द से जुड़ो :-
माया से जुड़ते गए,
खो गया आत्मानन्द ।
जो जुड़ गए आनन्द से,
पा गए परमानन्द ॥2565॥
विशेष:- प्रभु-प्रार्थना
प्रभुवर ! उतरो कण्ठ में,
उर में करो निवासा।
सरस्वती रसना बसे,
रहे आत्मविश्वास ॥2566॥
परम पिता परमात्मा की व्यापकता के संदर्भ में :-
प्रकृति से है परे,
व्यक्त- अव्यक्त से दूर ।
कण-कण में प्रभु रम रहा,
हर शै में है नूर॥2567॥
पूजनीय व्यक्तित्व कब बनता है:-
ज्ञान चरित्र संस्कार का,
जब होता संयोग ।
पूजनीय व्यक्तित्त्व है,
बिरले मिलते लोग ।।2568॥
जीवन का लक्ष्य क्या है:-
(1) शान्त मन से बैठकर,
देखो आत्मस्वरूप ।
लक्ष्य तेरा माया नहीं,
होना था तद् रूप॥2569॥
(2) प्रभु प्राप्ति लक्ष्य था,
माया मे हुए लीन।
चौरासी के चक्र से,
नहीं हुए स्वाधीन ॥ 2570॥
प्रभु प्राप्ति से अभिप्राय है – ब्रह्मचित्त हो, प्रभु के तदरूप होना ।
परिष्कार करना है, तो मन – वाणी का करो:- –
मन वाणी का तप कठिन,
कर देखो परिष्कार।
जिसने भी ये तप किया,
हो गए भव से पार॥2572॥
क्रमशः