लोकसभा चुनाव और उत्तर प्रदेश की 80 सीटें
हमारे देश में अभी तक जितने भर भी लोकसभा चुनाव हुए हैं उन सबका ही अपना एक महत्व रहा है। प्रत्येक लोकसभा चुनाव ऐतिहासिक रहा। पर इस बार 2024 में होने जा रहा आम चुनाव कुछ अपनी अलग ही विशिष्टता रखता है। इन चुनावों के दृष्टिगत जहां तक उत्तर प्रदेश की बात है तो इस प्रदेश ने प्रत्येक लोकसभा चुनाव में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है। यहां से कई प्रधानमंत्री देश को मिले। यहां तक कि वर्तमान प्रधानमंत्री मोदी गुजरात प्रांत से होने के उपरांत भी उत्तर प्रदेश के वाराणसी से ही चुनकर लोकसभा पहुंचते हैं। भाजपा के रणनीतिकारों ने प्रधानमंत्री मोदी को गुजरात से न उतारकर उत्तर प्रदेश से लोकसभा भेज कर अपने बौद्धिक चातुर्य का परिचय दिया। लोकसभा में सबसे अधिक सांसद भेजने वाले उत्तर प्रदेश के मतदाताओं पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा। इसके बाद सोने पर सुहागा यह हुआ कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी अपनी क्षमता और राजनीतिक कौशल से भाजपा को प्रदेश में जमने का बेहतरीन अवसर उपलब्ध करा दिया।
हम सभी जानते हैं कि उत्तर प्रदेश देश का एकमात्र ऐसा राज्य है जहां से सबसे अधिक सांसद चुनकर लोकसभा में पहुंचते हैं। 80 सांसदों को भेजने वाला यह प्रदेश संख्या बल के आधार पर देश की संसद में अपना विशिष्ट स्थान रखता है। इस बार के लोकसभा चुनावों के बारे में भाजपा का लक्ष्य है कि वह 80 की 80 सीटों को ले जाने में सफल होगी।अब वह अपने लक्ष्य में कितना सफल होती है, यह तो भविष्य बताएगा, पर इस समय स्थिति भाजपा के बहुत अनुकूल है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की रणनीति और राष्ट्रनीति ने मिलकर प्रदेश के साथ-साथ देश की राजनीति को नई दिशा देने का महत्वपूर्ण कार्य किया है। इस समय यदि प्रदेश के जनमानस को पढ़ा समझा जाए तो बहुत कुछ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के अनुकूल है।
प्रदेश का जन सामान्य यह भली प्रकार जानता है कि प्रदेश में कभी जंगलराज, भाई भतीजावाद, भ्रष्टाचार का बोलबाला था। लोग भय और भूख से भी त्रस्त थे। सत्ता में बैठे लोग जोंक की तरह प्रदेश का खून चूस रहे थे। सपा और बसपा बारी बारी सत्ता में आकर भ्रष्टाचार मचा रही थीं और इनमें कोई सा भी दल एक दूसरे के भ्रष्टाचारों की जड़ों को खोदने का काम न करके उसकी ओर से आंख मूंदकर एक प्रकार से एक दूसरे को सहायता देने का काम कर रहा था । कभी मायावती के जन्म दिवस पर राजकोष से करोड़ों रुपया खर्च होते थे तो कभी सैफई महोत्सव पर इसी प्रकार राजकोष से करोड़ों रुपया खर्च कर दिए जाते थे। कोई किसी से पूछने वाला नहीं था। प्रदेश की गिनती उस समय बीमारू राज्य के रूप में होती थी । प्रदेश से उद्योगपतियों का पलायन हो रहा था । कोई बाहरी कंपनी प्रदेश में काम चलाने के लिए तैयार नहीं थी। लोग उत्तर प्रदेश को उल्टा प्रदेश कहकर इसका मजाक उड़ाया करते थे। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बीमारू और उल्टा प्रदेश बने उत्तर प्रदेश की कमान संभाली तो प्रदेश की रगों में नव प्राणों का संचार होने लगा। देखते ही देखते प्रदेश प्रगति की दिशा में तेजी से दौड़ने लगा। आज सर्वत्र प्रदेश में विकास होता हुआ दिखाई दे रहा है। इसके अतिरिक्त प्रदेश के लोग अपने आप को पहले से कहीं अधिक सुरक्षित मानते हैं। प्रदेश को दंगा शून्य करके योगी आदित्यनाथ ने अपनी प्रशासनिक क्षमता को दिखाया है । उन्होंने वास्तव में कानून का राज्य स्थापित करने में सफलता प्राप्त की है।
प्रदेश ने आगे बढ़ना आरंभ किया तो देखते ही देखते यहां के युवाओं ने खेलों में बेहतर प्रदर्शन करके अपनी प्रतिभा का उत्कृष्ट प्रदर्शन किया। जिसके चलते प्रदेश असीमित संभावनाओं के प्रदेश के रूप में देखा जाने लगा। महाराष्ट्र के बाद उत्तर प्रदेश ऐसा राज्य बना जो जीडीपी में सबसे अधिक सहयोग योगदान करता है। बात चाहे जीएसटी में पंजीकृत व्यापारियों की संख्या की हो या डिजिटल लेन-देन के मामलों की बढ़ोतरी की हो , सभी में प्रदेश में आशातीत प्रगति की है। प्रदेश के जनसाधारण की नब्ज पर यदि हाथ रख कर बात की जाए तो पता चलता है कि लोगों को जिस प्रकार प्रदेश में शांति का वातावरण काम करने के लिए उपलब्ध हुआ है, उससे वह बेहद प्रसन्न है। योगी आदित्यनाथ का मंदिरों में घंटा और सड़क पर कानून का डंडा साथ-साथ बज रहे हैं। जिससे आम आदमी अपने आप को खुश अनुभव कर रहा है। इस समय प्रदेश की राजनीति पर यदि विचार किया जाए तो मायावती की बसपा राजनीति के मैदान में कहीं भी खड़ी दिखाई नहीं दे रही। वह दम तोड़ चुकी है। नहीं लगता कि उसका एक भी सांसद संसद के निचले सदन में पहुंचने में सफल हो पाएगा। कांग्रेस ने अपने आप को एक क्षेत्रीय दल की स्थिति में लाकर खड़ा कर लिया है। अपने पैरों पर अपने आप कुल्हाड़ी मारते हुए कांग्रेस ने सपा के साथ गठबंधन कर केवल 17 सीटों पर चुनाव लड़ना स्वीकार कर लिया है। इसके नेतृत्व ने इतना भी नहीं सोचा कि यदि वह 17 सीटों पर चुनाव लड़ने के सपा के प्रस्ताव पर अपनी सहमति देंगे तो फिर उन्हें शेष जिलों में किस प्रकार अपने जिला अध्यक्ष या काम करने के लिए कार्यकर्ता मिल पाएंगे ?
इन सब बातों का प्रभाव चुनाव के समय मतदान पर पड़ना स्वाभाविक है। योगी आदित्यनाथ इस समय अपने प्रतिद्वंदियों को प्रभाव शून्य और अभाहीन करने में सफल हो चुके हैं। उनके सामने जितने भर भी उनके प्रतिद्वंद्वी या राजनीतिक शत्रु खड़े हैं लगता है वह महाभारत के युद्ध में केवल अपने प्राण त्यागने के लिए ही आकर खड़े हो गए हैं।
योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में उत्तर प्रदेश भाजपा का अभेद्य किला बन चुका है । यदि आंकड़ों पर विचार किया जाए तो पता चलता है कि जब 2019 के लोकसभा चुनाव हुए थे तो उस समय भाजपा ने उत्तर प्रदेश की 80 में से 64 सीट जीतकर अपनी विजय पता का फहराई थी और सभी राजनीतिक दलों को यहां धूल चटाने में सफलता प्राप्त की थी। इसी प्रकार जब 2022 में यहां पर विधानसभा के चुनाव हुए तो विधानसभा की 403 सीटों में से 225 सीट जीतकर अपना स्पष्ट बहुमत लेकर सत्ता में वापसी की। उस समय भाजपा के सहयोगी दलों की सीटों को मिलाकर भाजपा के पास 272 विधायक हो गए थे। उसके बाद अब जिस प्रकार राम मंदिर का निर्माण करने में योगी आदित्यनाथ का विशेष योगदान रहा है उसके दृष्टिगत लोगों का उनके प्रति और भी अधिक रुझान बढ़ा है । राम मंदिर में एक माह के भीतर ही एक अरब से अधिक रूपयों का चढ़ावा आना इस बात का संकेत है कि प्रदेश के लोगों में राम जी के प्रति कितनी श्रद्धा है ? निश्चित रूप से इस श्रद्धा को वह योगी आदित्यनाथ के साथ इस प्रकार जोड़कर देखेंगे कि यदि उन्हें अपने रामलला के दर्शन हुए हैं तो वह केवल योगी आदित्यनाथ जी के नेतृत्व के चलते ही हो पाए हैं। इसलिए मंदिर निर्माण का बहुत बड़ा लाभ योगी आदित्यनाथ को यदि इन चुनावों के परिणाम के समय मिलता दिखाई देता है तो कोई गलत नहीं होगा।
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत