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मासिक धर्म जागरूकता में युवाओं की भागीदारी भी ज़रूरी है

कमरुन निसा
लेह, लद्दाख

मासिक धर्म, मानव अस्तित्व का एक प्राकृतिक पहलू है, जिसे अक्सर कलंक और चुप्पी में छिपा दिया जाता है. दरअसल जागरूकता की कमी ने ही शर्म और गोपनीयता की संस्कृति को बढ़ावा दिया है. हमारे देश के अधिकतर हिस्सों में आज भी इस पर चर्चा करना बुरा समझा जाता है. यहां तक कि महिलाएं आपस में भी इस पर बात करने में शर्म और झिझक महसूस करती हैं. ऐसे में पुरुषों विशेषकर युवा वर्ग में इसे किस प्रकार लिया जाता होगा, इसकी कल्पना आसानी से की जा सकती है. ग्रामीण क्षेत्रों में ही नहीं, बल्कि शहरी क्षेत्रों में भी मासिक धर्म पर चर्चा बहुत ही सीमित होती है. अन्य क्षेत्रों की तरह केंद्रशासित प्रदेश लद्दाख के लेह के सामाजिक वातावरण में भी मासिक धर्म का मुद्दा संवेदनशील माना जाता है. जैसे-जैसे हम लेह के सामाजिक परिवेश में उतरते हैं, मासिक धर्म अधिकारों के व्यापक संदर्भ और इस मुद्दे पर बातचीत के महत्व को समझना महत्वपूर्ण हो जाता है.

मासिक धर्म अधिकारों में मासिक धर्म स्वच्छता, इससे जुड़े उत्पादों तक किशोरियों और महिलाओं की पहुंच, इसके बारे में व्यापक शिक्षा और इस प्राकृतिक जैविक प्रक्रिया से जुड़ी भेदभावपूर्ण प्रथाओं के उन्मूलन पर चर्चा महत्वपूर्ण हो जाती है. वास्तव में, लेह में मासिक धर्म का मुद्दा और इससे संबंधित बातचीत एक परिवर्तनकारी यात्रा से गुज़र रही है. परंपरागत रूप से दोस्तों के साथ छिपकर और दबी आवाज़ में इस मुद्दे पर बातचीत करना किशोरियों के लिए जानकारी का प्राथमिक स्रोत थी, जिससे यह एक वर्जित विषय बन गया. हालांकि, बदलते परिवेश में आज जबकि समाज में प्रगति हुई है, अब इस विषय पर माताओं और बेटियों के बीच खुली चर्चा संभव हो रही है. लेकिन अभी भी पुरुषों के बीच इस विषय पर चर्चा वर्जित ही मानी जाती है, जो इसके अंतर को और अधिक बढ़ा देता है.

मासिक धर्म से संबंधित मुद्दे पर समाज विशेषकर महिलाओं और किशोरियों को जागरूक करने के उद्देश्य से 28 मई को वैश्विक स्तर पर मासिक धर्म स्वच्छता दिवस मनाया जाता है. दरअसल, विकासशील देशों में महिलाओं के लिए मासिक धर्म स्वच्छता प्रबंधन विशेष रूप से चुनौतीपूर्ण होता है, जहां साफ पानी और शौचालय की सुविधाएं अक्सर अपर्याप्त होती हैं. इसके अलावा, पारंपरिक संस्कृतियाँ मासिक धर्म पर खुलकर चर्चा करना और अधिक कठिन बना देती हैं. यह महिला शरीर के सामान्य कार्यों के बारे में प्रासंगिक और महत्वपूर्ण जानकारी तक पहुंच को सीमित कर देता है. इसका सीधा असर महिलाओं और किशोरियों के स्वास्थ्य, शिक्षा और सम्मान पर पड़ता है. जिसे समाप्त करने के लिए ही वैश्विक स्तर पर मासिक धर्म स्वच्छता दिवस की शुरुआत की गई है. लेह में भी आगामी 28 मई को मासिक धर्म स्वच्छता दिवस मनाया जाएगा. इसके लिए यहां के सरकारी कन्या उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा. इस प्रकार का कार्यक्रम क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण बदलाव को दर्शाता है.

हालांकि इस दिन के कार्यक्रम में एक भी पुरुष की उपस्थिति नहीं होती है, केवल कार्यक्रम के कवरेज के लिए कैमरापर्सन पुरुष होता है, जिससे महिलाओं और किशोरियों के लिए इस महत्वपूर्ण विषय पर गहराई से विचार करने के लिए एक सुरक्षित स्थान बनता है. ऐसे समाज में जहां मासिक धर्म के बारे में बातचीत गोपनीयता में छिपी रहती है, लेह ऐसे जागरूकता कार्यक्रमों के माध्यम से अंतर को पाटने का प्रयास करता है. हालांकि देश के अन्य हिस्सों की तरह लेह में भी अधिकांश दुकानदार सेनेटरी पैड को अखबार में लपेटकर देते हैं. जबकि अखबार में पैड लपेटना कोई समाधान नहीं है, बल्कि यह मासिक धर्म उत्पादों के अनुचित रखरखाव को बढ़ावा देता है. मासिक धर्म से जुड़े सामाजिक मानदंडों और प्रथाओं को बदलने के लिए अधिक सम्मानजनक और जानकारीपूर्ण दृष्टिकोण की आवश्यकता है.

ऐतिहासिक रूप से, लेह में सांस्कृतिक मानदंडों ने मासिक धर्म के मुद्दे पर एक गहरी चुप्पी कायम रखी है. जिससे समाज में इस मुद्दे पर जागरूकता की कमी हुई और खुल कर बातचीत के रास्ते बंद हो गए. इस संबंध में लेह स्थित हनु इलाके की रहने वाली 17 वर्षीय मुटुप डोल्मा मासिक धर्म से जुड़ी अपनी कहानी को साझा करते हुए कहती है कि उसके गृहनगर में मासिक धर्म के बारे में खुलकर बात करना आसान नहीं है. लोग सार्वजनिक रूप से पीरियड्स जैसे शब्द कहने में भी असहज महसूस करते हैं. ऐसे में किसी पुरुष दुकानदार से पैड मांगना किसी किशोरी के लिए एक चुनौती से कम नहीं होता है. मुटुप कहती है कि हनु की तुलना में लेह शहर में इस विषय पर चर्चा करना या बोलना अधिक सहज है. स्कूल के बाद उच्च शिक्षा के लिए जब वह लेह आई तो चीजें और लोगों की सोच को काफी बदला हुआ पाया. लेह में वह बिना असहज महसूस किए पैड खरीद सकती थी. लेकिन उसके गृहनगर में सांस्कृतिक मानदंडों ने उसके लिए मासिक धर्म के बारे में बात करना कठिन बना दिया था.

युवा मुटुप कहती है कि आज इस विषय पर घर और खुले मंच से बातचीत करना बहुत महत्वपूर्ण हो गया है. वह कहती है कि “जब कभी-कभी मेरी माँ घर पर किसी कारणवश नहीं होती है तो मुझे पिताजी से पैड खरीदने के लिए पैसे मांगना बहुत मुश्किल हो जाता है”. वह अपने पहले मासिक धर्म की चर्चा करते हुए बताती है कि ”जब मुझे पहली बार पीरियड्स हुए तो मैं बहुत डर गई थी. जब तक मैंने अपनी माँ से इस मुद्दे पर बात नहीं की, तब तक मेरे लिए यह समझना कठिन था कि मेरे साथ यह क्या हो रहा है?” वह बताती है कि शिक्षा के लिए लेह जाने से पीरियड्स के दौरान पैड खरीदना उसके गृहनगर की तुलना में काफी आसान हो गया, क्योंकि इस शहर में उसे कोई भी दुकानदार पहचानता नहीं है और न ही दुकानदार के लिए इसे बेचना कोई शर्म की बात होती है. लेकिन इस दौरान उसे शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के बीच जागरूकता के अंतर का साफ़ एहसास हुआ है. मुटुप का अनुभव इस बात को दर्शाता है कि पीरियड्स के बारे में खुलकर बात करना कितना जरूरी है और शहर की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों को अभी भी किस प्रकार की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है.

लेह के स्कारा की रहने वाली 19 वर्षीय जिग्मेट स्कित कहती है कि ग्रामीण क्षेत्रों के स्कूलों में मासिक धर्म जागरूकता कार्यक्रमों का हिस्सा होने के बावजूद लड़कों के इससे अलग रखना उचित नहीं है. स्कूलों को घर जैसा खुला वातावरण बनाना चाहिए, गोपनीयता बनाए रखने के बजाय सीखने और जागरूकता को बढ़ावा देना चाहिए. जिग्मेट के अनुसार समाज में मासिक धर्म को छिपाने की एक प्रथा बन गई है. यहां तक कि स्कूलों में भी लड़कों के साथ इस पर चर्चा करने से परहेज़ किया जाता है. वह इस बात पर जोर देती हैं कि महिलाओं और किशोरियों को इससे होने वाली असुविधा को खत्म करने और मासिक धर्म स्वास्थ्य के बारे में चर्चा को प्रोत्साहित करने के लिए खुलकर जानकारी साझा करनी चाहिए. अपने अनुभव को साझा करते हुए जिग्मेट कहती है कि जब उसे मासिक धर्म आता है तो वह दर्द के कारण 3 दिनों तक बाहर नहीं जा पाती है और उसे अपने दोस्तों और यहां तक कि अपने पिता को भी इसका जवाब देना उसे मुश्किल हो जाता है.

केवल किशोरियों में ही नहीं, लद्दाख के युवा किशोरों के बीच भी मासिक धर्म से संबंधित विषय शर्म और झिझक का मुद्दा बना हुआ है. हालांकि कुछ युवा इस विषय पर शर्म की जगह बेबाकी से अपनी बात साझा करते हैं. ग्रामीण क्षेत्रों से लेह आये 17 वर्षीय छात्र त्सेवांग नामग्याल और 21 वर्षीय अब्दुल वाहिद मासिक धर्म के मुद्दे पर चर्चा करने से संकोच नहीं करते हैं और इसे अपने युवा दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ भी चर्चा करने का प्रयास करते हैं. हालांकि इसमें उन्हें बहुत अधिक सफलता नहीं मिलती है क्योंकि उसके युवा दोस्त इस पर बात करने से या तो झिझकते हैं अथवा कई बार इसे केवल मज़ाक उड़ाने के रूप में लेते हैं. इन युवाओं का मानना है कि इस विषय को स्कूलों में लड़कों के साथ चर्चा का विषय बनाना ज़रूरी है क्योंकि यहां घर की तरह इस पर बात करने से किसी प्रकार की रोकटोक नहीं लगेगी, जिससे लड़के भी न केवल इस विषय पर जागरूक होंगे बल्कि वह घर में भी इस पर सहजता से व्यवहार कर सकेंगे.

बहरहाल, लेह में मासिक धर्म स्वच्छता दिवस मनाना और इसके लिए चर्चाओं को प्रोत्साहित करना यहां के समाज की जागृत चेतना को उजागर करता है. यह इस बात को इंगित करता है कि लद्दाख का समाज वैचारिक रूप से प्रगति कर रहा है. इसके बावजूद, पीरियड्स के बारे में अभी भी बेहतर शिक्षा की जरूरत है. सांस्कृतिक मानदंडों को बदलना और मासिक धर्म के अधिकारों को सुनिश्चित करना शर्म और गोपनीयता से मुक्त समाज के लिए आवश्यक है. इसके लिए पुरुषों विशेषकर युवाओं को भी इससे जोड़ना ज़रूरी हो जाता है. यह आलेख संजॉय घोष मीडिया अवार्ड 2023 के अंतर्गत लिखा गया है. (चरखा फीचर)
 

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