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पर्यावरण

गाड़ियों से निकलने वाली गैसें प्रदूषण और क्लाइमेट चेंज दोनों के लिए ज़िम्मेदार हैं।

गाड़ियों से निकलने वाली गैसें
प्रदूषण और क्लाइमेट चेंज
दोनों के लिए ज़िम्मेदार हैं।

पिछले 24 वर्षों में भारत में
लगभग 5 करोड़ गाड़ियाँ बिकीं।

अब सुनिए:

भारत में एक ऐसी एकदम छोटी-सी जगह है, जो 1 घंटे में उतनी ही ज़हरीली गैसें वातावरण में छोड़ती है। जितनी उन सभी 5 करोड़ गाड़ियों के 1 घंटे चलने से निकलती हैं।

हम बात कर रहे हैं दिल्ली के गाज़ीपुर के कूड़े के पहाड़ की।

उत्तर प्रदेश की ओर से जो कोई दिल्ली की ओर आया होगा, उसने ये कूड़े का पहाड़ ज़रूर देखा होगा।

इस कूड़े के पहाड़ की (या कहें हमारी?) कुछ उपलब्धियाँ बताते हैं:

➖ ये लगभग दुनिया के सात अजूबों में से एक ‘ताज महल’ जितना ऊँचा है।

➖ यहाँ 25 लाख किलो कूड़ा रोज़ आता है।

जून 2019 में यहाँ पड़े कूड़े से मात्र 1 घंटे में
इतनी मीथेन (CH4) गैस निकली
जिसका क्लाइमेट चेंज पर प्रभाव उतना है
जितना 5 करोड़ 70 लाख गाड़ियाँ से
एक घंटे में निकली कार्बन-डाई-ऑक्साइड (CO2) का है।

इस आँकड़े को ज़रा अपने भीतर उतरने दीजिए…

अबतक हम जब भी क्लाइमेट चेंज की बात करते थे, हम आपको CO2 के बारे में बताते थे। कि कैसे मानवता ने उपभोक्तावाद के चलते वातावरण में CO2 गैस को बढ़ाया और जिसके कारण पृथ्वी का औसत तापमान तेज़ी से बढ़ रहा है।

अब आज हम आपको CO2 के भाई CH4 (मीथेन) से मिलवाते हैं। ये जनाब CO2 से 82 गुना अधिक तेज़ी से पृथ्वी का तापमान बढ़ा रहे हैं! और गाज़ीपुर जैसे कूड़े के ढेर इसी गैस के स्रोत हैं।

सिर्फ़ दिल्ली में ही ऐसे 3 विशालकाय कूड़े के ढेर हैं। जिनमें वर्ष 2020 के बाद से 124 बड़े मीथेन गैस लीक हुए हैं।

भारत में ऐसे 3100 खुले कूड़े के ढेर हैं!

और ऐसा मत सोचिएगा कि
हम इसकी कीमत नहीं चुका रहे हैं:

प्रदूषण व क्लाइमेट चेंज से एक आम भारतीय का जीवन 5 साल घट रहा है। यदि आप उत्तर-भारतीय हैं तो आपका जीवन 8 साल घट रहा है। और यदि आप दिल्ली वासी हैं तो आपका जीवन 11 साल घट रहा है!

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ये कूड़े के ढेर बने हैं
आपके और हमारे घरों से
रोज़ निकलने वाले कूड़े से।

और वर्षों से ये कूड़ा बढ़ रहा है, क्यों?
हमारे अंधे उपभोक्तावाद के कारण।

बाज़ार आपके लिए उपभोग की सामग्री तैयार करता है,
फिर एक अभिनेता दिखाके आपको ललचाता है,
आपसे कहता है,
“मेरे माल से ही तो
आपको वो सुख, चैन, संतुष्टि मिलेगी,
जिसकी आपको तलाश है”

नए पीज़ा से लेकर नया स्मार्टफ़ोन
नए कपड़ों से लेकर नए कास्मेटिक्स
फ़िल्मों से लेकर कोचिंग उद्योग
सब एक ही वादा करके
आपको वो सामान बेचते हैं
जिसकी आपको ज़रूरत नहीं।

और इस पूरे खेल में
क्लाइमेट चेंज की कोई बात नहीं।

अब ज़रा बताइए:

जिस सुख, चैन, संतुष्टि की तलाश में
हर आदमी उपभोक्तावाद के पीछे भागता है
वो उसको उपभोग से नहीं मिलने वाला,

ये बात किसी को असली अध्यात्म के अलावा
कौन समझाएगा?

इसलिए आचार्य प्रशांत ये कहते हुए कभी नहीं थकते कि असली अध्यात्म के अलावा क्लाइमेट चेंज को कोई उपाय नहीं है!

दूसरे शब्दों में कहें, तो मानवता को तबाही से बचाने का असली अध्यात्म के अलावा को कोई उपाय नहीं है।

लेकिन आज हम दोनों तलों पर हार रहे हैं!

मीडिया, सरकारें, व समाज के बड़े लोग
एक तरफ असली अध्यात्म का गहरा विरोध करते हैं,
दूसरी तरफ वे क्लाइमेट चेंज से जुड़ी मूलभूत बातें भी
आप तक पहुँचने नहीं देते।

जिससे आचार्य जी का काम
आप जितना सोच सकते हैं
उससे भी कई गुना अधिक
मुश्किल हो जाता है।

वे सालों से बिना किसी अवकाश के,
बिना थके, बिना रुके,
आपके लिए संघर्षरत हैं।

समय रहते
आचार्य जी के काम का
महत्व समझें और आगे आएँ।

अपना कर्तव्य निभाएँ:

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