डॉ डी के गर्ग
ये लेख २ भागो में है। कृपया अपने विचार बताये और जनहित में शेयर करें।
भाग -१
प्रचलित सत्य नारायण व्रत कथा : एक समय देवर्षि नारद मुनि मृत्युमण्डल से भ्रमण करते हुए भगवान नारायण के समक्ष जा पहुंचे और बोले कि मृत्युलोक के मनुष्य नर-नारी बहुत दुखी हैं, वे महाव्याधि सागर में डूब रहे हैं, उनके कल्याण के लिये कोई योजना बतलाइये, भगवान नारायण ने कहा कि जाओ प्रजा को आदेश दो कि पूर्णिमा का व्रत धारण करें, उससे वास्तव में मानव समाज का कल्याण होगा।
प्रायः पूर्णमासी को इस कथा का परिवार में वाचन किया जाता है। सत्य-नारायण व्रत कथा में पाँच अध्याय हैं जिसमें सूत जी शौनक आदि ऋषियों को कथा का श्रवण कराते हैं। पहले अध्याय में यह बताया गया हैं कि जो भी भक्त सत्यनारायण का व्रत करेगा, पूजन करेगा और उनकी कथा करवाएगा उसके सारे मनोरथ पूरे होंगे। दूसरे से पाँचवें अध्याय तक सूतजी पाँच पात्रों शतानंद ब्राह्मण काष्ठ विक्रेता भील राजा, उल्कामुख, साधु नाम के बनिये और राजा तुंगध्वज की कहानी बताते हैं। इस कथा के सबसे लोकप्रिय पात्र साधु बनिया की पत्नी लीलावती और पुत्री कलावती हैं।
कथा में सुनाई जाने वाली कुछ बानगियाँ :
• सत्यनारायण भगवान व्रत कथा में भगवान विष्णु के सत्य स्वरूप के बारे में बताया गया है। इस व्रत का पाठ करने से घर में सुख समृद्धि का वास होता है और भगवान विष्णु की कृपा बना रहती है।भगवान सत्यनारायण का व्रत संपन्न करने के बाद वह निर्धन ब्राह्मण सभी दुखों से छूट गया और अनेक प्रकार की संपत्तियों से युक्त हो गया। उसी समय से यह ब्राह्मण हर माह इस व्रत को करने लगा। इस तरह से सत्यनारायण भगवान के व्रत को जो मनुष्य करेगावह सभी प्रकार के पापों से छूटकर मोक्ष को प्राप्त होगा। जो मनुष्य इस व्रत को करेगा वह भी सभी दुखों से मुक्त हो जाएगा।
• विप्र से सत्यनारायण व्रत के बारे में जानकर लकड़हारा बहुत प्रसन्न हुआ। चरणामृत लेकर व प्रसाद खाने के बाद वह अपने घर गया। लकड़हारे ने अपने मन में संकल्प किया कि आज लकड़ी बेचने से जो धन मिलेगा उसी से श्रीसत्यनारायण भगवान का उत्तम व्रत करूँगा। मन में इस विचार को ले बूढ़ा आदमी सिर पर लकड़ियाँ रख उस नगर में बेचने गया जहाँ धनी लोग ज्यादा रहते थे। उस नगर में उसे अपनी लकड़ियों का दाम पहले से चार गुना अधिक मिलता है।
• बूढ़ा प्रसन्नता के साथ दाम लेकर केले, शक्कर, घी, दूध, दही और गेहूँ का आटा ले और सत्यनारायण भगवान के व्रत की अन्य सामग्रियाँ लेकर अपने घर गया। वहाँ उसने अपने बंधु-बाँधवों को बुलाकर विधि विधान से सत्यनारायण भगवान का पूजन और व्रत किया। इस व्रत के प्रभाव से वह बूढ़ा लकड़हारा धन पुत्र आदि से युक्त होकर संसार के समस्त सुख भोग अंत काल में बैकुंठ धाम चला गया।
विश्लेषण:- सत्यनारायण भगवान की कथा में हमें बताया जाता हैं कि इन लोगों ने कथा सुनी और इनके साथ ऐसा हुआ तो वो कौन सी कथा थी जिसे कलावती और लीलावती ने सुनी थी ?मैंने भी ये कथा कई बार ध्यान से सुनी तो कुछ समझ नहीं आया ,आप भी ध्यान से सुनकर कोई निष्कर्ष निकाले ।सिर्फ एक कहानी सुनने से यदि कल्याण होने लगे तो पूरी दुनिया से गरीबी, अपराध खतम हो जाये और लोग कर्म छोड़कर कथा सुनकर धनी बनते जाय।
इसमें पंडित द्वारा अंधविस्वास फ़ैलाने और भ्रमित करने से ज्यादा कुछ नहीं है। लेकिन सत्य को समझाना फिर भी जरुरी हो जाता है।क्योकि जो कथा सुनाई जा रही है इसमें असली कथा गायब है और यही जानने की हमारी इच्छा हो सकती है।
सत्य-नारायण व्रत कथा– सत्यनारायण व्रत कथा के दो भाग हैं, व्रत-पूजा एवं कथा और यहां सत्य -नारायण शब्द अपना महत्त्व रखते है जिन पर क्रमश: विचार करना जरूरी है।
1 सत्य क्या है ? हे परमेश्वर! (त्वमेव प्रत्यक्षं ब्रह्मासि) आप ही अर्न्तयामिरूप से प्रत्यक्ष ब्रह्म हो (त्वामेव प्रत्यक्षं ब्रह्म वदिष्यामि) मैं आप ही को प्रत्यक्ष ब्रह्म कहूँगा, क्योंकि आप सब जगह में व्याप्त होके, सबको नित्य ही प्राप्त हैं (ऋतं वदिष्यामि) जो आपकी वेदस्थ यथार्थ आज्ञा है, उसी को मैं सबके लिए उपदेश और आचरण भी करूँगा (सत्यं वदिष्यामि) सत्य बोलूँ, सत्य मानूँ और सत्य ही करूँगा, (तन्मामवतु) सो आप मेरी रक्षा कीजिए। (तद्वक्तारमवतु) सो आप मुझ आप्त सत्यवक्ता की रक्षा कीजिए कि जिससे आपकी आज्ञा में मेरी बुद्धि स्थिर होकर, विरुद्ध कभी न हो। क्योंकि जो आपकी आज्ञा है, वही धर्म और जो उससे विरुद्ध, वही अधर्म है। इसीलिए हम सत्य स्वरूप नारायण को साक्षी मानकर सत्याचरण का व्रत लेते है।
सत्य यानि परम सत्य ईश्वर के गुणों का बखान यानि करना उनको जीवन में अपनाना ताकि हम अच्छे कर्म करें अच्छे इन्सान बनें जिसको यज्ञ संध्या करते समय ईश्वर स्तुति मंत्र, स्वस्तिवचनमंत्र, शांतिकरणम् आदि मंत्रों के नाम से जाना जाता है।
‘सत्यं ज्ञानमनन्तं ब्रह्म’ —यह तैत्तिरीयोपनिषद् [२।१] का वचन है।
‘सन्तीति सन्तस्तेषु सत्सु साधु तत्सत्यम्। यज्जानाति चराऽचरं जगत्तज्ज्ञानम्। न विद्यतेऽन्तोऽवधिर्मर्यादा यस्य तदनन्तम्। सर्वेभ्यो बृहत्त्वाद् ब्रह्म’ जो पदार्थ हों, उनको सत् कहते हैं, उनमें साधु होने से परमेश्वर का नाम ‘सत्य’है।
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