आज स्वातन्त्र्य वीर विनायक दामोदर सावरकर की पुण्यतिथि है।
83 वर्ष की आयु में वीर सावरकर ने हिन्दू साधुओं की प्राचीन परंपरा अपनाकर, तिथि माघ शुक्ल एकादशी को अन्न, जल और दवाइयों का त्याग कर दिया। उनका कहना था, “जब जीवन का उद्देश्य पूरा हो जाए, और समाज की सेवा करने लायक ताकत न बचे, तब मृत्यु का स्वयं वरण कर लेना चाहिए, बजाय इसके कि मृत्यु की प्रतीक्षा की जाए। जो मृत्यु दो आजीवन कारावास पाए उस निहत्थे व्यक्ति के पास आने का साहस नहीं कर पा रही थी, अंततः स्वयं उसी ने मृत्यु की विवशता देख उसे अपने पास बुला लिया। इसे उस साधु ने आत्मार्पण नाम दिया था।
अन्न, जल और दवाई के बिना 26 दिन के कठोर उपवासपूर्वक अपना नश्वर देह छोड़ने से पहले उन्होंने एक कविता लिखी थी…आ मृत्यु आ तू आ…उसमें उन्होंने लिखा…
“री मृत्यु! डर जाऊं क्यों तुझसे? तू स्वयं मुझसे डरी है, मैं तुझ से नहीं। कालेपानी का कालकूट पीकर, काल के कराल स्तंभों को झकझोर कर मैं बार बार लौट आया हूँ और आज भी जीवित हूँ। हारी तू मृत्यु है मैं नहीं। पर यह विखण्डित स्वतंत्रता मेरे अंतर्मन को 19 साल बाद अब भी चीर रही है, आज़ादी के बाद तो गाली और उपेक्षा ही इस जीवित हुतात्मा का नया कालापानी बन गई हैं।”
उनके प्रति उपेक्षा, दुर्भावना और तिरस्कार ऐसा था कि मृत्यु के बाद भी सावरकर की मृत्यु पर एक दिन का भी राजकीय शोक घोषित नहीं हुआ, एक भी कैबिनेट मंत्री उनकी अंत्येष्टि में शामिल नहीं हुआ, लोकसभा स्पीकर द्वारा सदन में उन्हें श्रद्धांजलि देने का निवेदन खारिज कर दिया गया, नेहरू ने सेल्युलर जेल तुड़ाकर हॉस्पिटल बनाने की बात कही थी… केवल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक पूर्ण गणवेश में उन्हें गार्ड ऑफ ऑनर देने पहुँचे थे….!!
अंदमान की जेल में स्वातंत्र्य वीर विनायक दामोदर सावरकर जी के सज़ा में कोल्हू घुमाने से बहते हुए रक्त की प्रत्येक बूंद इतिहास लिख गयी….पर ये योगदान समझने के लिये रक्त में हिंदुत्व होना चाहिये, मन भारतीय होना चाहिये…!!
जिनके नाम मात्र से आज भी हिन्दू राष्ट्र के शत्रुओं के मन में भय का संचार होता है वह स्वातंत्र्य वीर सावरकर चिरंजीवी हो प्रत्येक हिन्दू हृदय में अवतरित हो…उन्होंने कहा था कि यदि अहिंदू बनकर इंद्र पद भी मिले तो उसे ठुकराकर मैं अंतिम हिन्दू के रूप में मरना पसंद करूँगा…!
स्वातंत्र्य वीर विनायक दामोदर सावरकर को पुण्यतिथि निमित्त कोटि कोटि नमन श्रद्धांजलि..!🙏🚩
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