manu mahotsav banner 2
Categories
आज का चिंतन

संसार में दो प्रकार का सुख है ….

संसार में दो प्रकार का सुख है। एक विषय सुख और दूसरा आध्यात्मिक सुख। दोनों विपरीत दिशाओं में रखें हैं। “विषय सुख बाह्य इंद्रियों से मिलता है, जबकि आध्यात्मिक सुख अंदर से मिलता है। रूप रस गन्ध आदि विषयों का सुख, आंख रसना नाक आदि इंद्रियों से भोगा जाता है। जबकि आध्यात्मिक सुख अंदर से अर्थात मन से भोगा जाता है।”
जैसे एक व्यक्ति पूर्व तथा पश्चिम दो विपरीत दिशाओं में एक साथ नहीं दौड़ सकता। “ऐसे ही रूप आदि बाह्य विषयों का सुख और आंतरिक आध्यात्मिक सुख, ये दोनों भी विपरीत दिशाओं में हैं। इसलिए कोई भी व्यक्ति दोनों को एक साथ प्राप्त नहीं कर सकता।” “यदि वह बाह्य विषयों की ओर दौड़ता है, तो वह आध्यात्मिक सुख से वंचित हो जाएगा। जब वह आध्यात्मिक सुख के लिए प्रयत्न करेगा, तो उसे बाह्य विषयों के सुख छोड़ने पड़ेंगे।”
रूप आदि बाह्य विषयों का सुख भोगना लाभदायक कम और हानिकारक अधिक है। “क्योंकि इस प्रकार का सुख भोगने से व्यक्ति मन इंद्रियों का गुलाम या दास बन जाता है। उसका अपने मन इंद्रियों पर नियंत्रण नहीं रहता।” “जबकि आध्यात्मिक सुख भोगने वाला व्यक्ति अपने मन इंद्रियों का राजा बन जाता है। उसका अपने मन इंद्रियों पर नियंत्रण रहता है, और वह अपनी इच्छा के अनुसार मन इंद्रियों का उपयोग कर सकता है।”
“बाह्य विषयों का सुख आंख कान आदि बाह्य इंद्रियों से भोगा जाता है,” इस बात को सभी जानते हैं। इसलिए इसकी लंबी व्याख्या करने की आवश्यकता नहीं है।” “धन खर्च करने पर, भोजन आदि वस्तुओं को खरीदने पर, इस विषय सुख को शीघ्र ही प्राप्त किया जा सकता है।”
हां, “जो आंतरिक सुख है, आध्यात्मिक सुख है, वह मन से प्राप्त होता है। उसकी प्राप्ति करने के लिए आपको शुभ कर्म करने होंगे। शुभ कर्मों के करने से वह सुख मन से मिलता है।” “जैसे ईश्वर का ध्यान करना प्रतिदिन यज्ञ करना माता पिता की सेवा करना गौ आदि प्राणियों की रक्षा करना रोगी विकलांग अनाथ इत्यादि कमज़ोर लोगों की सहायता करना व्यायाम करना ब्रह्मचर्य का पालन करना शाकाहारी भोजन खाना वेद आदि शास्त्रों का प्रचार प्रसार करना, वेदोक्त शुभ कर्मों में दान देना स्वयं वेदों का अध्ययन करके अपने ज्ञान को शुद्ध करना इत्यादि। ये सब शुभ कर्म हैं। इनको करने से अंदर से अर्थात मन से सुख मिलता है।” यह सारी व्यवस्था ईश्वर द्वारा की गई है।
इन दोनों व्यवस्थाओं को समझें। “बाह्य विषयों का सुख भोगने पर आपको आंतरिक सुख नहीं मिल पाएगा। और यदि आंतरिक सुख भोगना चाहते हों, तो बाह्य विषयों का सुख छोड़ना होगा।”
“जैसे एक व्यक्ति पूर्व और पश्चिम दो विपरीत दिशाओं में एक साथ नहीं दौड़ सकता। ऐसे ही ये दोनों सुख भी विपरीत दिशाओं में रखे हैं। एक बाहर है, और दूसरा आपके अंदर है। इसलिए कोई भी व्यक्ति इन दोनों सुखों को एक साथ प्राप्त नहीं कर पाएगा।”
अच्छा तो यही है, कि “बाह्य विषयों का सुख छोड़कर, आंतरिक आध्यात्मिक सुख को भोगा जाए। उसी में अधिक लाभ है।”
—– “स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक, निदेशक दर्शन योग महाविद्यालय रोजड़, गुजरात।”

Comment:Cancel reply

Exit mobile version