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कविता

अब मुझको इग्नोर करो तुम

सूखी रोटी भात लिए हम कहां साथ में खा पायेंगे,
पंच सितारों वाले हो जी;
अब मुझको इग्नोर करो तुम,

मैं झोपड़ियों की पीड़ा हूं
कृंदन हों भूखे पेटों का,
मुझे कहां सम्मान मिलेगा,
साथ नहीं धनपति सेठों का,
स्तुतियों के छंद लिखो तुम; खुद को आत्मविभोर करो तुम,
पंच सितारों वाले हो जी;
अब मुझको इग्नोर करो तुम,

मैं कच्ची पगडंडी वाला,
भला महल तक क्या आऊंगा,
देने को बस प्रेम पास में,
कैसे साथ निभा पाऊंगा,
कंचन कोष कुमुदिनी काया संग सुहानी भोर करो तुम,
पंच सितारों वाले हो जी;
,

साथ रहा जितने दिन का भी,
वो भी कम उपहार नहीं है,
आसमान में उड़ने वालों,
को धरती से प्यार नहीं है,
मैं धरती की धूल गगन से मत मुझ पर अब गोर करो तुम,
पंच सितारों वाले हो जी;
अब मुझको इग्नोर करो तुम,

"चेतन" नितिन खरे
 कवि एवं लेखक 

मो. +91 9582184195

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