वसुधैव कुटुंबकम और कृण्वंतो विश्वमार्यम को अपना सूत्र वाक्य घोषित करे संयुक्त राष्ट्र :
मॉरीशस। वेद के सार्वभौम सिद्धांतों को अपनाने से ही विश्व शांति संभव है। सृष्टि के प्रारंभ में परमपिता परमेश्वर ने वेद का ज्ञान अग्नि, वायु ,आदित्य और अंगिरा जैसे ऋषियों के हृदय में प्रदान किया। जिन्होंने परमपिता परमेश्वर के संदेश को अपने लिए आदेश मानकर आने वाली पीढ़ियों के लिए आगे बढ़ाया। वेद के सिद्धांत मानव मात्र के लिए ही नहीं बल्कि प्राणी मात्र के लिए हैं। वेद की ऋचाओं में संपूर्ण भूमंडल के प्राणियों का हित चिंतन निहित है। यह कहना है सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता डॉ राकेश कुमार आर्य का। वे यहां पर एक टी0वी0 चर्चा में भाग ले रहे थे।
इस चर्चा में भाग लेते हुए डॉ आर्य ने भारत की ऋषियों के चिंतन की वैज्ञानिकता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि उन्होंने किसी संप्रदाय विशेष के लिए कार्य नहीं किया, बल्कि मानव मात्र के कल्याण के लिए कार्य किया। जब वेद कहता है कि मनुष्य बनो तो इसका अभिप्राय केवल यही है कि वह संपूर्ण संसार के जनों को मननशील मानव बनाकर एक दूसरे का सहायक बना देना चाहता है । श्री आर्य ने कहा कि भारत का अंत्योदयवाद और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद विश्व मानववाद की आधारशिला है। यदि इन दोनों शब्दों को अपनाकर विश्व निर्माण के संकल्प को शिरोधार्य कर हम आगे बढ़ना आरंभ करें तो निश्चित रूप से विश्व शांति स्थापित हो सकती है। श्री आर्य ने कहा कि भारत ज्ञान की दीप्ति में रत होने के कारण भारत है। इसके इसी चिंतन को सारे संसार के लिए फैलाने की आवश्यकता है।
डॉ आर्य ने कहा कि संसार की सबसे बड़ी संस्था संयुक्त राष्ट्र को भारत के वैदिक ऋषियों के चिंतन को स्वीकार करते हुए वसुधैव कुटुंबकम और कृण्वंतो विश्वमार्यम को अपना सूत्र वाक्य घोषित करना चाहिए। ज्ञात रहे कि डॉ आर्य ने अभी हाल ही में मॉरीशस में संपन्न हुए अंतर्राष्ट्रीय आर्य महासम्मेलन में भी इस आशय का प्रस्ताव आयोजन समिति के लिए प्रस्तुत किया था।
उन्होंने कहा कि आज जब सारा संसार स्वामी दयानंद जी महाराज की 200 वीं जयंती मना रहा है तब वैदिक चिंतन की ओर लौटना समय की आवश्यकता है । एक प्रश्न के उत्तर में श्री आर्य ने कहा कि वेदों की ओर लौटने का अभिप्राय है एक ऐसी सुव्यवस्थित और सुंदर व्यवस्था की ओर लौटना जिसमें नैतिकता हो, न्याय हो ,अत्याचार पूर्ण नीतियों के विरुद्ध लड़ने की ललक हो । इसी आदर्श व्यवस्था को धर्म की व्यवस्था कहते हैं। जिसमें किसी के भी अकल्याण की कामना नहीं की जाती।
इस अवसर पर नैरोबी आर्य समाज के प्रधान श्री राजेंद्र सैनी ने भी अपने विचार व्यक्त किए । उन्होंने कहा कि आज के वैश्विक परिवेश में आर्य वैदिक विचारों की मांग सबसे तेजी से बढ़ रही है । क्योंकि लोग आज के सांप्रदायिक चिंतन से ऊब चुके हैं और वह शांति चाहते हैं। यही कारण है कि सारा विश्व इस समय भारत की ओर देख रहा है। भारत की आध्यात्मिक चेतना सारे संसार का मार्गदर्शन करने में आज भी सक्षम है। इसलिए यह बहुत आवश्यक है कि वैदिक चिंतन को अर्थात सनातन के सिद्धांतों को सारे संसार में प्रचारित प्रसारित किया जाए। उन्होंने कहा कि भारत के वैदिक चिंतन के प्रचार प्रसार के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस समय एक समिति का गठन किया गया है। जिसके माध्यम से हम सब मिलकर वैदिक चिंतन को आगे बढाने का काम करेंगे। इस समिति का उद्देश्य ऋषियों के वैदिक विचारधारा के अनुकूल मानव चिंतन को बनाकर विश्व शांति स्थापित करना है।