संदेशखाली से नफ़रत का संदेश देती बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी
दो बंगाली लोकोक्तियाँ हैं - थेलाई ना पोरले बेरल गाछे ओथे ना -अर्थात् आपकी समस्याओं से पार पाने हेतु आपको उस समस्या का सामना करना ही होगा और दूजी कहावत है - किछुतेई किछु न फ़ेसतेई पोइसा- कुछ प्राप्त करने हेतु आलस्य छोड़कर कर्म करना ही होगा।
आज की परिस्थिति में बंगाल में ममता व उनकी तृणमूल एक समस्या है और सोनार बांग्ला के बंधुओं को कुछ कर्म करके इन्हें सत्ता से बाहर का मार्ग दिखाना ही होगा।
संदेशख़ाली, पश्चिम बंगाल में हाल ही के महिला यौन उत्पीड़न को लेकर जो समाचार आ रहे हैं उन सबके अतिरिक्त सच और भी है। सच यह है कि संदेशखाली के आसपास की चौदह में से आठ विस क्षेत्र अनुसूचित व जनजातीय वर्ग हेतु आरक्षित हैं। सच यह यह भी है कि इन चौदह संवेदनशील विधानसभाओं की सीमा बांग्लादेश से सटी हुई है। सच यह भी है कि यह मानव तस्करी अर्थात् ह्यूमन ट्रेफ़िकिंग के धंधे का गढ़ बना हुआ है। सच यह भी है कि तृणमूल ने भारत भर में रोहिंग्याओं, आतंकियों, घुसपैठियों, तस्करों को प्रवेश देने हेतु इस क्षेत्र को सुरक्षित “इंडिया गेट” बनाया हुआ है। संदेशखाली की इस घटना की पृष्ठभूमि में यह संदेश भी है कि प.बंगाल किस प्रकार मानव तस्करी व हिंदू कन्याओं के अपहरण व उन्हें सीमापार पहुँचा देने का गढ़ बना हुआ है। हिंदू कन्याओं को पहले यौन उत्पीड़न के जाल में फंसाना और फिर वीडियो आदि के माध्यम से उन्हें ब्लैकमेल कर सीमा पार बेच देने में तृणमूल के कार्यकर्ता लगे हुए हैं। हाल ही की घटना में ममता बनर्जी के प्रिय शेख़ शाहजहां की प्रत्यक्ष संलिप्तता इसका ज्वलंत व प्रामाणिक उदाहरण है।
मुस्लिम तुष्टिकरण में कांग्रेस से होड़ लगाती हुई पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अपनी ममता को शेख़ शाहजहां की जेब में रेहन रख छोड़ा है। एक महिला मुख्यमंत्री होने के नाते ममता बनर्जी से महिला तस्करी, उत्पीड़न, बलात्कार संबंधित मामलों में जो सक्रियता दिखनी चाहिये थी उसका सहस्त्रांश भी उनकी कार्यशैली में देखने को नहीं मिल रहा है। यही कारण है कि पश्चिम बंगाल में आज महिलाएं सर्वाधिक असुरक्षित आभास कर रही हैं। एक सर्वे में यही बात देखने में आई है। 19 राज्यों के 18,267 परिवारों के मध्य कराये गये एक सर्वे में निष्कर्ष आया कि पश्चिम बंगाल के 72.9% लोग बंगाल में असुरक्षित आभास करते हैं। सर्वे में लोगों ने कहा कि रात्रि में तो बंगाल घोर असुरक्षित हो जाता है। इस भयंकर व बर्बर सांख्यिकी को
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) द्वारा दी गई सांख्यिकी पुष्ट-संपुष्ट करती है। महिलाओं के लापता होने की दृष्टि से भी पश्चिम बंगाल अव्वल बना हुआ है। दुखद तथ्य है कि, पश्चिम बंगाल से वर्ष 2016-17-18 में क्रमशः पच्चीस हज़ार, अट्ठाईस हज़ार व इकत्तीस हज़ार महिलाएं लापता हुई हैं। ये सांख्यिकी चीख-चीख कर हमारे सभ्य समाज से कुछ कह रही है!! एक महिला मुख्यमंत्री का राज्य महिलाओं के विरुद्ध अनाचरण अपराध मामले में अव्वल बना हुआ है। एनसीआरबी के अनुसार, प.बंगाल में वर्ष 2020 में महिलाओं के विरुद्ध छत्तीस हज़ार मामले दर्ज हुए थे। डर, भय, दबाव, के कारण हज़ारों मामले समाज व पुलिस में दर्ज नहीं हो पाये उनकी गिनती भी भयंकर जान पड़ती है। गौ तस्करी, हिंदू कन्या तस्करी, लूटपाट, हत्या, फिरौती, अड़ीबाज़ी के इन अपराधों में लगभग सभी मुस्लिम अपराधी ही संलिप्त रहते हैं।
पश्चिम बंगाल में समूचे करेलों अर्थात अपराधियों पर ममता रूपी करेला चढ़ा हुआ है; फलस्वरूप यहां अपराध व अपराधी दोनों सिर चढ़कर बोलते दिखाई पड़ते हैं। तुर्रा यह रहा कि संदेशख़ाली मामले के मुख्य आरोपी, ममता बनर्जी के ख़ासमख़ास समर्थक शेख़ शाहजहां ने मामले की जांच करने हेतु बंगाल पहुंची ईडी की टीम पर ही प्राणघातक हमला करवा दिया। ममता के ख़ास शेख़ शाहजहां का इडी पर हमला इतना प्रहारक था कि कड़ी सुरक्षा के मध्य गई हुई इडी की टीम को चोटिल व लहुलुहान होकर वापिस लौटना पड़ा। सदा की तरह टीम ममता इडी के जांच दल को घायल करके बिना जांच के वापिस भेजने में सफल रही है। जनता नाराज़ है, अपराधी स्वतंत्र और सीनाज़ोर हैं और ममता सरकार लजाने-शर्माने के स्थान पर मुस्लिम तुष्टिकरण व अपराध सरंक्षण पर तुली हुई है।
संदेशखाली की पीड़ित महिलाएं जो कह रही है वह हमारे शासन तंत्र को शर्मिदा कर देने हेतु पर्याप्त हैं। इस क्षेत्र की महिलाएं बताती हैं कि कि तृणमूल कांग्रेस के लोग गांव में घर-घर जाकर सर्वे करते हैं और सुंदर महिलाओं को उठाकर पार्टी ऑफिस ले आते हैं और फिर महीनों रखकर इनका शोषण करते हैं।
आश्चर्यजनक रूप से पश्चिम बंगाल पुलिस की ओर से यह लज्जाजनक व्यक्तव्य आता है कि - उन्हें संदेशखाली क्षेत्र में कोई भी महिला बलात्कार, यौन उत्पीड़न आदि की शिकायत नहीं मिली है। शासकीय तंत्र के आतंक का यह भीषण जलजला देखिए।
जांच में तथ्य सामने आ रहे हैं कि तृणमूल के कार्यकर्ता व शेख़ शाहजहां के गुंडे नौकरी देने के नाम पर, भयभीत करके, आर्थिक लालच देकर यहां की लड़कियों को ले जाते हैं। महिलाओं को पार्टी में ऊंचा पद देने आदि के लोभ देकर भी उन्हें फुसला ले जाते हैं और फिर उनके शोषण, ब्लैकमेल आदि का अनवरत क्रम प्रारंभ हो जाता है।
पश्चिम बंगाल की महिला मुख्यमंत्री वाली सरकार की संवेदनशीलता व निर्लज्जता की स्थिति यह है कि बशीर हाट के एसपी मेहंदी हुसैन जैसे अधिकारियों को आगे करके समूचे मामले को शासकीय व पुलिसिया आतंक से समाप्त कराने का प्रयास किया जाता है।
सबसे दुर्भाग्यजनक व लज्जाजनक बात यह है कि नारी मुख्यमंत्री वाले इस राज्य में इन मुस्लिम पीड़ित महिलाओं की शिकायत थाने में लिखी ही नहीं जा रही है, उन्हें चिकित्सा सुविधा नहीं मिल रही है। हां, अपराधियों पर कार्यवाही करने के स्थान पर आरएसएस के स्वयंसेवकों व भाजपा कार्यकर्ताओं पर सतत-निरंतर मुकदमें लादे जा रहें हैं। बंगाल के चौबीस परगना, दक्षिण चौबीस परगना, उत्तरी दिनाजपुर, दक्षिणी दिनाजपुर, मुर्शिदाबाद, मालदा, नादिया, हुगली आदि मुस्लिम बहुल क्षेत्र तो जैसे मुस्लिम आतंक के गढ़ बन गये हैं। यहां हिंदू धर्मावलम्बियों का साँस लेना दूभर-दुष्कर-दुर्गम हो चुका है। इन क्षेत्रों में तो तुर्रा यह है कि यहां मुस्लिम अपराधियों को राजकीय दिये जाने का अघोषित नियम लागू दिखाई पड़ता है।
सबसे बड़ी बात यह है कि चोरी ऊपर से सीना जोड़ी करते हुए ममता के गुंडे कार्यकर्ता टीवी चैनलों पर देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगाने पर देख लेने की खुली चुनौती दे रहे हैं। यह चुनौती भद्दी, अमर्यादित व असंसदीय भाषा में दी जा रही है। गुरुदेब रबींद्रनाथ टैगोर के सोनार बांग्ला से ऐसे आसुरी सुर निकलना किसी बड़े ख़तरे की आशंकाएं उपजाता है।
विदेश मंत्रालय, भारत सरकार में सलाहकार (राजभाषा)
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