पिछले दिनों 9 फरवरी से 14 फरवरी तक मॉरीशस प्रवास का अवसर उपलब्ध हुआ। मॉरीशस के दिल में भारत बसता है या भारत के दिल में मॉरीशस बसता है, यह कुछ वैसा ही अन्योन्याश्रित संबंध है जैसे शरीर और आत्मा का संबंध है। सदियों गुजर जाने के बाद भी मॉरीशस के लोगों ने भारत और भारतीयता के साथ अपना गहरा संबंध स्थापित करने के प्रति अपनी गहरी रुचि को छोड़ा नहीं है। उनके दिलों में आज भी भारत के प्रति सम्मान है । अपने पूर्वजों की पवित्र भूमि भारत के प्रति उनका असीम लगाव देखकर कोई भी यह नहीं कह सकता कि हम किसी दूसरे देश में हैं।
डॉ उदय नारायण गंगू एक आर्य नेता के रूप में पूरे मॉरीशस में जाने जाते हैं। उनके हृदय में भारत के प्रति असीम श्रद्धा का भाव है। स्वामी दयानन्द जी महाराज के विचारों से ओतप्रोत आर्य नेता डॉ गंगू यहां पर अनेक सामाजिक गतिविधियों से जुड़े रहे हैं। उनका जीवन भारत की वैदिक विचारधारा के प्रति समर्पित रहा है। वेद और वैदिक संस्कृति के प्रति समर्पित व्यक्तित्व के रूप में डॉ उदय नारायण गंगू लोगों के नैतिक उत्थान के कार्यों में लगे रहते हैं। यही कारण है कि वर्ष भर में वह कई ऐसे कार्यक्रम करते हैं जिससे वैदिक संस्कृति का प्रचार प्रसार हो। स्वामी दयानंद जी महाराज के विचारों के प्रति उनके हृदय में गहरा सम्मान है। यही कारण है कि 1960 से लेकर अब तक उन्होंने यहां पर अनेक संस्थाएं खड़ी की हैं और मॉरीशस के लोगों को भारत की वैदिक विचारधारा के साथ जोड़ने का प्रशंसनीय कार्य किया है ।
यहां पर महाराणा प्रताप, स्वामी दयानंद जी महाराज, छत्रपति शिवाजी महाराज, वैदिक ऋषियों महान क्रांतिकारी नेताओं भारत के स्वाधीनता आंदोलन के वीर वीरांगनाओं के चित्रों को लगे देखकर ऐसा नहीं लगता कि हम भारत से हजारों किलोमीटर दूर हैं, बल्कि ऐसा आभास होता है कि जैसे हम अपने ही देश के किसी देशभक्ति पूर्ण कार्यक्रम में उपस्थित हैं।
1833 के पश्चात जब अंग्रेजों ने भारत के मजदूरों को बहला फुसला कर यहां से मॉरीशस ले जाना आरंभ किया तो वे लोग अपने साथ रामचरितमानस, कबीर के दोहों की पुस्तक या कुछ ऐसी ही अन्य पुस्तकों को लेकर गए। अंग्रेजों ने उन्हें अनुबंधित मजदूर के रूप में ले जाने का वचन दिया था और उनसे यह भी कहा था कि वहां पर आपको पत्थरों के नीचे दबा सोना मिलेगा, आप मालामाल होकर कुछ समय पश्चात भारत लौट आओगे। पर नियति कुछ और ही करवाना चाहती थी। अंग्रेजों की चालबाजियों में फंसे भारत के वे भोले भाले लोग जब समुद्र के बीच सुनसान पड़े इस द्वीप पर पहुंचे तो उनके लिए वहां से लौटना किसी भी तरह संभव नहीं था। यहां तक कि अपने लोगों के लिए चिट्ठी चपाती भेजना भी उनके लिए संभव नहीं था। अंग्रेजों की क्रूरता और अत्याचार पूर्ण नीतियों के शिकार होने के अतिरिक्त अब उनके पास अन्य कोई चारा नहीं था। अंग्रेजों ने उनका शोषण ,दोहन करना आरंभ किया और उन्हें वहां पर मजदूरी के काम में लगा दिया।
भारत से मजदूरों को ले जाने का अंग्रेजों का यह क्रम 1920 तक चलता रहा। आर्य नेता डॉ गंगू हमें बताते हैं कि इस दौरान वहां पर ‘सत्यार्थ प्रकाश’ भी किसी मजदूर के द्वारा अपने साथ लाया गया। जी हां, यह वही अमर ग्रंथ सत्यार्थ प्रकाश था जिसे स्वामी दयानंद जी महाराज द्वारा लिखा गया था और जिसके स्वराज्यवादी विचारों को पकड़ कर भारत ने क्रांति के मार्ग को अपनाकर अपनी स्वाधीनता का मार्ग प्रशस्त किया था। स्पष्ट है की क्रांति की यह विचारधारा नए मजदूरों के साथ मॉरीशस में भी प्रवेश कर गई। जिसने वहां भी जाकर लोगों में नई चेतना का संचार किया । जो लोग भारत के प्रति अपनी भक्ति का प्रदर्शन करना अपना नैतिक और मौलिक अधिकार मानते थे उन लोगों ने ‘सत्यार्थ प्रकाश’ के प्रति तीव्रता और शीघ्रता से अपना लगाव दिखाना आरंभ किया। इस ग्रंथ ने वहां के लोगों को भारत की आत्मा के साथ जोड़ दिया। जिससे उनमें नई चेतना का संचार हुआ। भारत की वैदिक यज्ञ परंपरा में उन लोगों का आज भी गहरा श्रद्धा भाव है। वे श्री राम और कृष्ण जी के प्रति उतने ही भक्ति भाव से आप्लावित हैं जितना की कोई भारतीय मिलता है।
भारत में पिछले दिनों मोदी सरकार के द्वारा जितने भी ऐतिहासिक निर्णय लिए गए, उन सब पर वहां के लोगों की गहरी नजर रहती है। धारा 370 को हटाने पर उनमें प्रसन्नता की लहर दौड़ गई। इतना ही नहीं, अभी हाल ही में जब श्री रामचंद्र जी का मंदिर भारत में बनकर तैयार हुआ तो उसे भी उन लोगों ने एक ऐतिहासिक घटना के रूप में देखा।
वहां के एक हसीन चेहरे के रूप में विख्यात गति राज नारायण जी से मेरी भारत और मॉरीशस के बारे में लंबी बातचीत हुई। श्री गति जी ने अपनी बातचीत में मुझसे स्पष्ट कहा कि हम धारा 370 को हटाने, श्री राम मंदिर का निर्माण होने और ऐसी ही उन प्रत्येक घटनाओं पर अपनी नजर जमाए रहते हैं जिनसे भारत की अस्मिता का प्रश्न जुड़ा हुआ है। उन्होंने कहा कि हमारे प्राण भारत में बसते हैं और हम किसी भी दृष्टिकोण से अपने आप को भारत से दूर नहीं मानते । भारत की चेतना के साथ अपने आप को जोड़े रखने में हमें असीम आनंद की अनुभूति होती है। हमारा गौरव, हमारा सम्मान, हमारी प्रतिष्ठा, हमारी अस्मिता सब कुछ भारतीयता के साथ समन्वित है। इसके उपरान्त भी हम अपने आप को एक स्वाधीन देश के रूप में देखकर प्रसन्नता और गौरव की अनुभूति करते हैं। उन्होंने इस बात पर भी गहरी प्रसन्नता व्यक्त की कि भारत की वर्तमान सरकार मॉरीशस के निर्माण में अपना उदार सहयोग प्रदान कर रही है। शिक्षा के क्षेत्र में अपना विशेष स्थान बनाने में सफल रहीं । श्रीमती माधुरी रामधारी विश्व हिंदी सचिवालय की महासचिव हैं। प्रत्येक वर्ष 12 फरवरी को इस सचिवालय का कार्यारंभ दिवस मनाया जाता है। इस बार भी यह कार्यक्रम पूरे हर्ष और उल्लास के साथ मनाया गया। जिसमें वहां के उपराष्ट्रपति उपस्थित रहे।
श्रीमती माधुरी रामधारी का अपना भाषण बहुत ही सदा हुआ और संतुलित भाषा में था। उनका हिंदी प्रेम देखकर मुझे उनके भीतर हिंदी, हिंदू और हिंदुस्तान के प्रति एक विशेष प्रकार का समर्पण दिखाई दिया।
जब तेजी से दुनिया बदल रही हो और नए परिवर्तन तेजी से नया स्वरूप और नया आकार लेते जा रहे हों, तब अपनी सभ्यता और अपनी संस्कृति को बचाए रखने के लिए कितना संघर्ष करना पड़ता है ? यह सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। परंतु प्रत्येक प्रकार की चुनौतियों का सामना करने के उपरांत जिस प्रकार मॉरीशस के हिंदू वैदिक लोग अपनी परंपराओं को बचाए रखने के प्रति संकल्प दिखाई देते हैं, उससे लगता है कि उनके भीतर आज भी अपने पूर्वजों के सम्मान को बचाए रखने की ललक है। वह जानते और मानते हैं कि सनातन वही है जो पुरातन होकर भी नूतन हो, अधुनातन हो। वह नए परिवेश और नई चुनौतियों के साथ जीना सीख गए हैं।
यही कारण है कि मॉरीशस के अन्य संप्रदायों के साथ भी वह सद्भाव के साथ रहते हैं । इतना ही नहीं, अन्य संप्रदायों के लोग भी किसी भी प्रकार के उग्रवाद या आतंकवाद में विश्वास नहीं रखते बल्कि अपने देश के निर्माण में लगे रहना अच्छा मानते हैं। मॉरीशस के लोगों के इस राष्ट्रीय चरित्र से भारत के लोगों को भी शिक्षा लेने की आवश्यकता है।
डॉ राकेश कुमार आर्य
(लेखक सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता है।)