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लेखक आर्य सागर खारी 🖋️
आमाशय अर्थात स्टमक उदर पाचन तंत्र का एक महत्वपूर्ण अंग हिस्सा है। आमाशय का ऊपरी सिरा आहार नाल से तो निचला सिरा छोटी आंत से जुड़ा रहता है। आमाशय का नाम भले ही अमाशय हो लेकिन बेहद खास है यह 12 इंच लंबा 6 इंच चौड़ा अंग्रेजी के J के आकार का वक्रीय यह थैला नुमा अंग जो पांच सतहों से मिलकर बना है। जो ना कभी लीक होता है ना कभी फटता है। लचीला इतना है 1 लीटर या 1 किलो ठोस भोजन इसका मूल आयतन है लेकिन 4 किलो भोजन तक इसमें आ सकता है अर्थात अपने मूल आकार से यह चौगुना फैल जाता है। 2 से लेकर 3 घंटे भोजन इसमें पड़ा रहता है पड़ा ही नहीं रहता यह मैकेनिकल व केमिकल पाचन के तहत उसे विशेष घोल में उसका रूपांतरण कर देता है आत लीवर के काम को आसान करने के लिए ।जो घोल इसमें बनता है संस्कृत में उसे आम तो अंग्रेजी में चाइम कहते हैं । 7 सेकंड लगते हैं मुंह से आमाशय तक भोजन को पहुंचने में। इस अनोखे थैले में भोजन के आने पर फिर हर 20 सेकंड के अंतराल पर विशेष तरंगे इसमें उत्पन्न होने लगती है,जो भोजन का घोल बनाती हैं। हाइड्रोक्लोरिक एसिड सहित अनेको पाचक अम्ल वह भूख के एहसास के लिए घ्रेलिन जैसे जरूरी हार्मोन यह थैला बनाता है । दिन भर में इसमें 2 लीटर गैस्ट्रिक जूस बनता है जो बेहद तेजाबी होता है आश्चर्य की बात यह है तेजाब से भरा रहने वाला यह थैला जिसमें यदि ब्लेड को डालें तो वह ब्लेड भी गल सकती है इतना एसिडक होता 1.5 से लेकर 3.5 पीएच लेवल आमाशय का होता है लेकिन इसकी सबसे अंदरूनी सतह जो तेजाब के संपर्क में रहती है वह एक महीने में अनेक बार स्वत: ही नवीन होती रहती है…. चुने मिश्रित कफ के कारण वह क्षतिग्रस्त नहीं हो पाती नैसर्गिक तौर पर उस पर तेजाब रोधी पेस्ट की कोटिंग होती रहती है। यह कफ या म्यूकस साधारण भाषा में कहे बलगम बड़े काम की चीज है एक तिहाई अंगों को यही धारण करता है। यह अमाशय से जैसे अनेकों अंगों का रक्षक है। हीरे की कदर जोहरी ही करता सकता है ऐसे में आयुर्वेद ही इसकी महत्ता को समझता है।
अपने विषय अमाशय पर लौटते हैं इसके दोनों सिरे पर मजबूत इलास्टिक स्फिक्टर मांसपेशी होती है जो वाल्व का काम करती है यदि यह आमाशय का तेजाब आंत में चला जाए तो आंत तेजाब को न्यूट्रल कर सकती है उसका उपयोग भी करती है लेकिन जब यह ऊपरी वॉल्व से आहार नाल में आने लगता है या यू कहे बैकफ्लो करता है तो आहार नाल के पास इस तेजाब को न्यूट्रल करने का कोई मेकैनिज्म नहीं है यही स्थिति एसिड रिफ्लेक्स एसिडिक जलन का कारण बनती है। जीवन नर्क बन जाता है। एलोपैथी में इसका कोई इलाज नहीं है लेकिन आयुर्वेद में इसका बेहद अनोखा रामबाण इलाज है आमल्की रसायन के रुप में।
मानव शिशु के आमाशय का आयतन केवल 30 मिलीलीटर होता है यही कारण है वह छोटे-छोटे अंतराल पर अनेक बार दिन में दुग्ध पान करता है।
अमाशय प्रतीक्षा तंत्र का भी एक मजबूत सहयोगी है।भोजन में शामिल कोई हानिकारक बैक्टीरिया आमाशय में आते ही इसके तेजाब से नष्ट हो जाता है। विटामिन b12 का अवशोषण भी इसी के कारण संभव हो पाता है। यह थैला अपने लिए कुछ भी भोजन में से नहीं लेता लेकिन शराब और कैफीन को अवश्य सोखता है यह भी इसकी परोपकारी वृति का ही सूचक है यह नुकसानदायक तत्वों से शरीर को बचाना चाहता है।
मेडिकल साइंस आज भी पूरी तरह से इस थैले को समझ नहीं पाई है हां लेकिन वजन घटाने के नाम पर इस थैली को काटकर बाहर निकाल दिया जाता है तो कहीं काटकर इसके आकार को छोटा कर दिया जाता है लेकिन यह समस्या का समाधान नहीं है इसके जबरदस्त दुषप्रभाव आते हैं गैस्ट्रोलॉजी के तमाम जरनरल यही बता रहे हैं।
एलोपैथिक चिकित्सा या मेडिकल साइंस 18वीं शताब्दी तक या यूं कहीं यूरोप अमेरिका आमाशय के बारे में कुछ भी नहीं जानते थे आपको यह पढ़कर सुनकर अजीब लगेगा लेकिन यह सत्य है उन लोगों को पता ही नहीं था मुंह में जाने के पश्चात भोजन प्रथम कहां जाता है।
जबकि आयुर्वेद हजारों वर्षों से तेरह अग्नियों की अर्थात डाइजेस्टिव फायर की बात कर रहा था। यूरोप अमेरिका आमाशय की क्रिया प्रणाली से सदियों तक अनभिज्ञ रहे।
यह बेहद रोचक विषय है । इसे लेखमाला के अगले हिस्से में वर्णित किया जाएगा।
ईश्वर की शरीर रूपी रचना में आमाशय एक अनोखी उप संरचना है यह रचना हमें रचयिता का ज्ञान करती है। देश के प्रसिद्ध गैस्ट्रोएंटरोलॉजीस्ट डाक्टर शिवकुमार सरीन जी कहते हैं लोगों को यह तो भली-भांति पता है कि हमारा दिमाग हृदय कहा है लेकिन हमारा यकृत कहां है यह किसी को नहीं पता लोग लीवर को हेल्दी नहीं रख पाते लीवर के फंक्शन लोगों को मालूम नहीं ।हम एक बात इसमें जोड़ते हैं हमारा अमाशय कहा है ?यह भी अधिकांश लोगों को नहीं पता कुछ तो उदर आंत प्रणाली को ही अमाशय समझते हैं… कितना अनोखा है यह कैसे इसे स्वस्थ रखा जा सकता है इसका बोध अधिकांश जनों को नहीं है!
जब रचना का ही नहीं पता रचना कैसे उपयोग ले आहार विहार का ही बोध नहीं है तो इस रचना के रचयिता ईश्वर तक कौन पहुंचेगा?
लेखक आर्य सागर खारी