ईसाई मिशनरियों पर क्या कहती है नियोगी रिपोर्ट ?
इसाई मिशनरियों की गतिविधियों पर नियोगी आयोग की रपट
मध्य प्रदेश सरकार ने सन् १९५६ में प्रकाशित की। यह रपट तीन-तीन भागों वाले दो वॉलुम में है। इस आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति भवानीशंकर नियोगी थे जो नागपुर उच्च न्यायालय के सेवानिवृत मुख्य न्यायधीश थे। आयोग ने धर्मान्तरण पर कानूनी रूप से रोक लगाने की सिफारिस की थी जिसे लागू नहीं किया गया।
ओडिशा के कंधमाल जिले के जलेशपटा आश्रम में जन्माष्टमी के दिन स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती की हत्या के बाद चर्च की गतिविधि एक बार फिर चर्चा में आ गयी है। इसके साथ ही चर्च का मध्यकालीन बर्बर चेहरा तथा चर्च का अभारतीय कृत्य लोगों के सामने आ गया है। ईसाई मिशनरियां सेवा का बहाना करते हैं। किन्तु उनका असली उद्देश्य अपनी सत्ता व साम्राज्य स्थापित करना है। भारतीयों को अपने संस्कृति के जडों से काटना और उनका यूरोपीयकरण करना है।
स्वतंत्रता से पूर्व चर्च व ईसाई मिशनरियां किसके हित के लिए काम कर रहे थे। पश्चिमी शक्तियों के साम्राज्यवादी हितों की पूर्ति के लिए उन्होंने चर्च को एक औजार के रुप में इस्तमाल किया। 1859 में ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री लार्ड पामस्टर्न ने कहा था कि यह ब्रिटेन के हित में है कि भारत के हिस्से से दूसरे हिस्से तक ईसाइयत का प्रचार किया जाना चाहिए। उनके इस कथन को ठीक से समझने की आवश्यकता है। पश्चिमी साम्राज्यवादी शक्तियां भारत में अपना साम्राज्य को बरकरार रखने के लिए चर्च का इस्तमाल कर रहे थे। जोसेफ कर्नवालिस कुमारप्पा प्रसिध्द गांधीवादी थे। वह स्वयं एक ईसाई भी थे। उन्होंने एक बार कहा था कि पश्चिमी शक्तियों के चार सेना हैं। थल सेना, वायु सेना, नौ सेना तथा चर्च। स्वयं एक ईसाई होने के बावजूद उनकी दृष्टि में चर्च और मिशनरियां अंग्रेजों के सेना के रुप में कार्य कर रहे थे और अंग्रेज साम्राज्य को बचाने के लिए कार्यरत थे। मतांतरित ईसाइयों के मन में भारत के प्रति श्रध्दाभाव खत्म हो जाता था और वे अंग्रेजों के आज्ञाकारी सेवक बन जाते थे। यही कारण था कि भारत के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में जोसेफ कुमारप्पा व ई.एम. जार्ज के अलावा किसी और ईसाई का नाम प्रमुखता से नहीं आता है। लेकिन इन दोनों के द्वारा स्वतंत्रता की मांग किये जाने के कारण इन्हें जान से मारने की धमकी भी दी गई थी। भारतीय ईसाइयों ने इन दोनों की न केवल निंदा की बल्कि इनका सामाजिक बहिष्कार भी किया। यही कारण था कि देश के दूसरे राष्ट्रपति डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन को कहना पडा था कि भारत में ईसाइयों के लिए एक हाथ में तलवार और दूसरे हाथ में यूनियन जैक को लेकर चल रहे थे। यह तो थी स्वतंत्रता से पूर्व की बातें। स्वतंत्रता के बाद में चर्च ने क्या अपनी पुरानी नीति बदल ली। चर्च ने अपना वही भारत विरोधी कार्य जारी रखा। चर्च की नीति स्पष्ट है, चर्च का राजनीतिक उद्देश्य स्पष्ट है। स्वतंत्रता के बाद भारत में विशेषकर उत्तरपूर्व राज्यों में चर्च ने जो कार्य किया है उससे चर्च के असली राजनीतिक उद्देश्य का पता चलता है। उत्तर-पूर्व के राज्यों में चर्च को मिली खुली छूट के कारण नागालैण्ड जैसे अलगाववाद की बात करते हैं और भारत से अलग होने की बात करते हैं। यह चर्च के कारण ही संभव हो सका है। चर्च चाहता है कि भारत कमजोर हो , इसलिए वह इस तरह के कार्य करता रहता है। जो शक्तियां भारत को कमजोर देखना चाहती हैं वह चर्च को खूब पैसा देती हैं ताकि उनके इरादे पूरे हो सकेँ।
नगालैण्ड में क्राइस्ट फार नागालैण्ड के नारे लगाये जा रहे हैं। मिजोरम में भी यही हालत है। वहां रियांग जनजाति के 60 हजार लोगों को चर्च समर्थित ईसाई आतंकवादियों द्वारा अपना धर्म न बदलने के कारण मिजोरम से बाहर भेज दिया है। रियांग जनजाति के लोग अब शरणार्थी के रुप में जीवन जीने के लिए मजबूर हैं। केवल नगालैण्ड में 40 ईसाई मिशनरी समूह तथा 18 आतंकवादी संगठन काम कर रहे हैं। नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल आफ नगालैण्ड हिंसक आतंकवादी संगठनों को वर्लड काउंसिल आफ चर्चेस के माघ्यम से धनराशि तथा और शस्त्र प्राप्त कर रहे हैं।
नगालैण्ड में क्राइस्ट फार नागालैण्ड के नारे लगाये जा रहे हैं। मिजोरम में भी यही हालत है। वहां रियांग जनजाति के 60 हजार लोगों को चर्च समर्थित ईसाई आतंकवादियों द्वारा अपना धर्म न बदलने के कारण मिजोरम से बाहर भेज दिया है। रियांग जनजाति के लोग अब शरणार्थी के रुप में जीवन जीने के लिए मजबूर हैं। केवल नगालैण्ड में 40 ईसाई मिशनरी समूह तथा 18 आतंकवादी संगठन काम कर रहे हैं। नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल आफ नगालैण्ड हिंसक आतंकवादी संगठनों को वर्लड काउंसिल आफ चर्चेस के माघ्यम से धनराशि और शस्त्र प्राप्त करवा रहे हैं। ये विदेशी शक्तियां एके-47 के माध्यम से बंदूक की नोक पर धर्मांतरण करवा रहे हैं। इसके अलावा भारत के सुरक्षा बल भी इस इलाके में चर्च समर्थित आतंकवादी संगठनों के निशाने पर हैं। अब तक इस इलाके में 50 हजार सुरक्षाकर्मी बलिदान दे चुके हैं।
केवल नगालैण्ड व मिजोरम में ही चर्च का यह घिनौना कार्य चल रहा है , ऐसा नहीं है। उत्तर-पूर्व के बाकी राज्यों में भी यही हाल है। त्रिपुरा में नेशनल लिबरेशन फ्रांट आफ त्रिपुरा (एनएलएफटी) नामक एक आतंकी संगठन काम करता है। उत्तरी त्रिपुरा के नागमनलाल हलाम जिले में बाप्टिस्ट मिशनरी चर्च से हथियारों का जखीरा पकडा गया था। इस चर्च के सचिव ने स्वीकार किया है कि यह हथियार तथा विस्फोटक आतंकवादी संगठन नेशनल लिबरेशन फ्रांट आफ त्रिपुरा के आतंकियों के लिए था। स्वयं केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने संसद में इस घटना के बारे में जानकारी होने की बात कही है। चर्च का इससे बडा राष्ट्रविरोधी करतूतों का उदाहरण और क्या हो सकता है।
चर्च एक और भारत विरोधी काम में लगा रहता है। वह यह है कि भारत के खिलाफ पूरे विश्व में झूठा प्रचार करना। भारत के खिलाफ माहौल तैयार करना। चर्च के आरोपों में कोई सच्चाई नहीं होती है यह बाद में जांच के बाद स्पष्ट हो जाता है। लेकिन उस समय वह इतने जोर शोर से इन बातों को कहते हैं , जिससे यह कई बार सच प्रतीत होता है। इस पूरी प्रक्रिया में भारतीय चर्च का साथ देता है पश्चिमी मीडिया। ये मिल कर भारत के खिलाफ झूठा प्रचार करते हैं और भारत की छवि खराब करते हैं। एक- दो उदाहरण दें तो शायद इसे ठीक से समझा जा सकता है।
कुछ साल पहले चर्च द्वारा यह आरोप लगाया गया कि मध्य प्रदेश के झाबुआ में ननों के साथ बलात्कार किया गया है और इसमें हिन्दूवादी संगठनों का हाथ है। लेकिन बाद में जांच के बाद पता चला कि मध्य प्रदेश की कांग्रेस की सरकार द्वारा जिन्हें गिरफ्तार किया गया था वे सब धर्मांतरित ईसाई हैं।
बाद में यह भी पता चला कि यह लूटमार की घटना है जिसे बलात्कार का रंग दे दिया गया था। इस तरह के अनेक उदाहरण दिये जा सकते हैं।
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद मध्य प्रदेश की कांग्रेस की सरकार ने चर्च की धर्मांतरण गतिविधियों तथा इनके कार्यकलापों की जांच के लिए 1956 में न्यायमूर्ति भवानी शंकर नियोगी की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित की थी। इस कमेटी की खास बात यह थी कि इसमें एस0के0 जार्ज नाम के एक ईसाई विद्वान भी थे। इस कमेटी ने व्यापक जांच करने के बाद चर्च की गतिविधियों के बारे में जो पाया वह वास्तव में आंखें खोल देने वाली हैं। समिति ने पाया कि चर्च एक अंतरराष्ट्रीय षडयंत्र का हिस्सा है।
चर्च के कार्य का मूल उद्देश्य धर्मांतरण के माध्यम से राष्ट्रांतरण है। राष्ट्रांतरण से देश की एकता व अखंडता खतरे में पड जाती है। चर्च धर्मांतरण के लिए छल, झूठ, प्रलोभन तथा भय का सहारा लेता है।
न्यायमूर्ति भवानी शंकर नियोगी की अध्यक्षता में गठित कमेटी की रिपोर्ट में जो अनुशंसाएं की गई हैं उससे चर्च के खतरनाक इरादों के बारे में पता चलता है। साथ ही कमेटी ने अपनी सिफारिशों में चर्च के इन राष्टरविरोधी कृत्यों से कैसे निपटा जाना चाहिए, इसके लिए कुछ अनुशंसाएं की हैं। कमेटी की मुख्य अनुशंसाएं इस प्रकार हैं :-
कमेटी की सबसे पहली सिफारिश है कि जिन मिशनरियों का मुख्य उद्देश्य केवल धर्म परिवर्तन है उन्हें वापस जाने के लिए कहा जाए। देश के भीतर विदेशी मिशनरियों का बहुत संख्या में आना अवांछनीय है और इसकी रोकथाम होनी चाहिए। समिति ने अपनी दूसरी सिफारिश में कहा है कि भारतीय चर्च के लिए सबसे प्रथम मार्ग यह है कि वे भारत के लिए एक संयुक्त ईसाई चर्च की स्थापना करे जो विदेश से आने वाली सहायता पर निर्भर न रहे। समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि ऐसी चिकित्सा संबंधी सेवाओं तथा अन्य सेवाओं को, जो धर्म परिवर्तन के कार्य के लिए काम में लायी जाती हों , उन्हें कानून द्वारा वर्जित कर दिया जाना चाहिए। दबाव, छल कपट, अनुचित भय, आर्थिक या दूसरी प्रकार की सहायता का आश्वासन देकर, किसी व्यक्ति की आवश्यकता, मानसिक दुर्बलता तथा मूर्खता का लाभ उठाकर धर्मांतरण के प्रयास को सर्वथा रोक देना चाहिए। समिति ने अपनी रिपोर्ट में सरकार से कहा है कि सरकार का यह प्रथम कर्तब्य है कि वह अनाथालयों का स्वयं संचालन करे क्योंकि जिन नाबालिगों के माता पिता या संरक्षक नहीं हैं , उनकी वैधानिक संरक्षक सरकार ही है। धर्म प्रचार के लिए जो भी साहित्य हो वह बिना सरकार की अनुमति से वितरित नहीं किया जाना चाहिए।
नियोगी कमेटी की यह रिपोर्ट ईसाई मिशनरियों की गतिविधियों की काली करतुतों का कच्चा चिट्ठा प्रस्तुत करती है। इस कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में चर्च के सुनियोजित भारतविरोधी कार्यों के प्रति आगाह किया था। लेकिन दुर्भाग्य से हमारे देश के सत्ताधीशों ने इस रिपोर्ट से कोई सीख नहीं ली। चर्च को खुली छूट मिली हुई है। चर्च अपना काम धडल्ले से कर रहा है और भारत को कमजोर करने के उसके मूल उद्देश्य की पूर्ति में लगा हुआ है। उत्तर पूर्व के राज्यों में इसका प्रभाव साफ दिख रहा है। वहां अलगाववाद अपने चरम पर है। चर्च सेवा की आड में या कहें तो सेवा के मुखौटे में भारत को तोडने की अपने मूल उद्देश्य की ओर बढ रहा है।न्यायमूर्ति भवानी शंकर नियोगी की रिपोर्ट को अभी लगभग पचास साल हो गये हैं। इन पचास सालों में चर्च ने अपनी गतिविधियों को और बढाया है। धर्मांतरण के लिए विभिन्न देशों से आ रही सहायता राशि में भी बढोत्तरी हुई है। चर्च ने अपनी रणनीति भी बदली है। चर्च इन दिनों काफी आक्रामक है। चर्च द्वारा प्रकाशित पुस्तक आपरेशन वर्ल्ड तथा जोशुआ प्रोजेक्ट का अगर हम अध्ययन करें तो चर्च के खतरनाक मनसूबों के बारे में हमें पता चलता है। चर्च की सेवा की आड में भारत विरोधी गतिविधियों की अनदेखी कब तक होती रहेगी ? अगर यही हाल रहा तो पूर्वोत्तर राज्यों में जो स्थिति है वह देश के अन्य राजों में भी हो सकती है। इस कारण आवश्यकता इस बात की है कि चर्च की देशविरोधी गतिविधियों की जांच के लिए एक कमेटी गठित की जाए। यह कमेटी चर्च की राष्ट्रविरोधी गतिविधियों की जांच करे। चर्च को मिल रहा पैसा कहां से आ रहा है, किस लिए आ रहा है तथा इसका उपयोग कैसे हो रहा है ? इस बात की पूरी जांच होनी चाहिए। विदेश से जो लोग आर्थिक सहायता दे रहे हैं उनका राजनीतिक उद्देश्य क्या है ? – इस बात की भी जांच होनी चाहिए। इस जांच रिपोर्ट के आधार पर सरकार को चर्च की राष्ट्रविरोधी गतिविधि पर आवश्यक रोक लगनी चाहिए। सरकार को यह कार्य जल्द से जल्द करना चाहिए, अन्यथा काफी देर हो सकती है। देश के शेष राज्यों की हालत उत्तर पूर्व के राज्यों की तरह हो सकती है।
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