तरुण तेजपाल के तहलका कांड का सच
तहलका वाला तरुण तेजपाल याद है? अभी कुछ दिन पहले अखबार के एक कोने में उसका माफीनामा छपा है।
कहानी इस प्रकार है।
मार्च 2001 में अटल बिहारी वाजपेई प्रधानमंत्री थे फिर कांग्रेस और वामपंथी पार्टियों ने तहलका के संपादक तरुण तेजपाल को अटल सरकार को बदनाम करने की सुपारी दिया और कांग्रेस ने यह सुझाया की जैसे हम रक्षा सौदों में बदनाम है वैसे ही यह साबित किया जाए की अटल सरकार में भी रक्षा सौदों में दलाली ली जाती है
फिर एक फर्जी स्टिंग तरुण तेजपाल ने दिखाए जिसमें उप थल सेना प्रमुख मेजर जनरल एम एस अहलूवालिया एक रक्षा सौदे में 200 करोड़ डील की बात कर रहे हैं और जिसमें वह कहते सुनाई दे रहे हैं कि इसमें से आधा पैसा तो मंत्री लोगों को जाएगा आनन-फानन में जनरल साहब सस्पेंड हो गए
जांच कमेटी बनी मेजर जनरल एस अहलूवालिया चिख चिख कर कहते रहे कि यह स्टिंग फर्जी है इसमें मेरे जैसे व्यक्ति को दिखाया गया है लेकिन मैं इसमें नहीं हूं जांच में टेप फर्जी पाया गया
फिर मेजर जनरल अहलूवालिया ने निचली अदालत से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक लड़ाई लड़ी और उस लम्बी कानूनी लड़ाई का नतीजा यह निकला कि पहले सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि तरुण तेजपाल मेजर जनरल एस अहलूवालिया को 2 करोड रुपए दें और दो अखबारों में क्षमा का विज्ञापन दें यानी किसी की इज्जत इतनी सस्ती हो चुकी है फिर तरुण तेजपाल ने कोर्ट से रिक्वेस्ट किया कि मेरे पास इतना पैसा नहीं है तो बाद में सुप्रीम कोर्ट ने 2 करोड़ की रकम को घटकर 25 लाख फिर 2 लाख कर दिया आज दो अखबारों में यह छोटा सा विज्ञापन छपा है लेकिन आप यह सोचिए कि मेजर जनरल एसएस अहलूवालिया की कितनी बदनामी हुई और अटल जी की सरकार की कितनी बदनामी हुई कोई दूसरा देश होता तो तरुण तेजपाल को फांसी हो गई होती है