चाहे संपत्ति आए चाहे विपत्ति, दोनों में समान रहो
जीवन में कभी आपत्तियां आती हैं और कभी संपत्तियां। आपत्तियां आने पर सामान्य रूप से व्यक्ति परेशानी में पड़ जाता है। उसे कोई रास्ता नहीं सूझता। कोई उसका साथ देने को तैयार नहीं होता। उसके अपने लोग स्वार्थी बनकर उससे दूर चले जाते हैं। ऐसे आपत्ति काल में जो व्यक्ति घबरा जाता है, और सोचता है कि *"अब मैं क्या करूं. कौन मेरा साथ देगा?" "यदि इस प्रकार से व्यक्ति उस समय घबराकर विचलित हो जाता है, तथा कोई उल्टा सीधा कदम उठा लेता है, तो समझ लीजिए, वह सामान्य व्यक्ति है।"*
*"और जो आपत्ति काल में घबराता नहीं है, हिम्मत बनाए रखता है। ईश्वर की सहायता से, माता पिता विद्वानों और गुरुजनों आदि की सहायता से उस आपत्ति को जीत लेता है, वह महापुरुष कहलाता है।"*
कौन सा व्यक्ति महापुरुष है, और कौन सामान्य? इसकी परीक्षा तो तभी होती है, जब आपत्ति काल होता है। *"क्योंकि सूर्य प्रकाश में तो सामान्य कांच भी चमकता है। इसी प्रकार से सामान्य व्यक्ति तो संपत्तिकाल में ही खुश रहता है, और विशेष आपत्ति काल में वह घबरा जाता है।" "जबकि हीरा अंधेरे में भी चमकता है। इसी प्रकार से महापुरुष आपत्ति काल में भी घबराते नहीं हैं और ईश्वर आदि की सहायता से आपत्तियों को जीत कर अपने जीवन में सफल हो जाते हैं।"*
—- “स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक, निदेशक दर्शन योग महाविद्यालय, रोजड़, गुजरात।”