25 दिसंबर का बड़ा दिन और भीष्म पितामह ,भाग 2
महान संत का महानिर्वाण दिवस-25 दिसंबर
आर्य देश भारत के लिए 25 दिसंबर पर्व का विशेष महत्व
DR D K Garg -Plz share karei
Part-2
इन तीखे बाणों की शैया पर शयन करते हुए आज मुझे 58 दिन हो गए। किंतु यह दिन मेरे लिए 100 वर्ष के समान बीते हैं। इस समय चंद्रमास के अनुसार माघ का महीना प्राप्त हुआ है। इसका यह शुक्ल पक्ष चल रहा है। जिसका एक भाग बीत चुका है और 3 भाग बाकी है।
संबोधन करने के पश्चात अंत में भीष्म पितामह ने श्री कृष्ण से विशेष वार्ता की और स्वयं के योग द्वारा प्राण त्यागने के संकल्प को दोहराते हुए उनसे कहा कि अब इस भारी कष्ट से मुक्ति के लिए मुझे प्राण त्यागने की आज्ञा दीजिए ।
श्री कृष्ण जी ने नतमस्तक होते हुए भीष्म जी की इच्छा का समर्थन किया कि आपका विचार उचित और धर्मानुकूल है। राजऋषि आप दूसरे मार्कंडेय के समान पित्र भक्त हैं। इसलिए मृत्यु विनीत दासी की भांति आपके वश में हैं।
कृष्ण से विचारोप्रांत गंगानंदन भीष्म ने पांडवों तथा धृतराष्ट्र आदि सभी सुठृदयों से कहा अब मैं प्राणों का त्याग करना चाहता हूं। तुम सब लोग भी मुझे इसलिए आज्ञा दो, ऐसा आशीर्वाद देते हुए चुप हो गए।
तदनंतर वे मन सहित प्राणवायु को क्रमशः भिन्न भिन्न धारणाओं में स्थापित करने लगे। इस तरह योगिक क्रिया के द्वारा प्राण ऊपर चढ़ने लगे। अंततः मृत्यु को प्राप्त हुए।
महाभारत के अनुशासन पर्व से यह सब उल्लेख करने का हमारा दृष्टिकोण मात्र अपने सुविज्ञ पाठकों के समक्ष यह तथ्य स्थापित करना है कि माघ मास के शुक्ल पक्ष में जब सूर्य उत्तरायण हो गए थे तब भीष्म पितामह ने अपने योगिक क्रिया से प्राणों को त्यागा था।
उपरोक्त कथा का 25 दिसंबर से संबंध है इसके लिए घटना के समय की गणना करते हैं।
महाभारत का युद्ध 18 दिन चला था। भीष्म पितामह ने 10 दिन तक युद्ध किया था और दसवें दिन बाणों की शैया पर लेट गए थे। उसके 8 दिन बाद तक युद्ध और चला। जब युधिष्ठिर आदि से वार्ता करने के पश्चात 50 दिन का समय युधिष्ठिर को लौट कर आने के लिए दिया कि 50 दिन बाद में आना। युधिष्ठिर जी जब निश्चित समय पर पहुंचते हैं तो उस समय भीष्म पितामह को शरशैय्या पर पड़े हुए 58 दिन हो चुके थे।
जो करीब करीब 2 माह का समय होता है। माघ से पहला महीना पौष होता है और पौष से पूर्व का महीना आश्विन (अगहन) होता है। और अश्विन अथवा अगहन से पूर्व का महीना कार्तिक होता है। जिसका अर्थ होता है कि महाभारत का युद्ध कार्तिक माह के द्वितीय पक्ष में प्रारंभ हुआ था।
जब युधिष्ठिर जी भीष्म पितामह के पास पहुंचे तो वह माघ मास का शुक्ल पक्ष था जिसका एक भाग बीत चुका था अर्थात 3 भाग शेष थे।अर्थात् माघ मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को भीष्म पितामह ने प्राण त्यागे थे। जब सूर्य दक्षिण गोलार्ध से उत्तरी गोलार्ध में प्रवेश कर गए थे।
अभी इसको दूसरे दृष्टिकोण से देखते हैं। और वह दृष्टिकोण है हमारा कि भीष्म पितामह सूर्य के उत्तरायण होने के बाद मरे थे और उनकी अंत्येष्टि उत्तरायण होने के बाद हुई थी।
वर्तमान समय में जो अंग्रेजी के महीने प्रचलित हैं उनमें 21 दिसंबर को सबसे छोटा दिन होता है और 22 दिसंबर की स्थिति भी समान रहती है। 23 को सूर्य उत्तरायण की ओर बढ़ना शुरू होते हैं तथा 24 और 25 को सूर्य उत्तरायण की ओर अग्रसर हो जाते हैं। इस प्रकार वह करीब 25 दिसंबर का समय था जिस समय भीष्म पितामह ने अपना शरीर त्यागा था।
वर्तमान में हिंदी माह का प्रचलन बिल्कुल नगण्य है, इसलिए व्यवहार में अंग्रेजी माह का प्रयोग किया जाता है और ये संत भीष्म पितामह के प्राण त्याग का दिन 24/25 दिसंबर आता है।
ये अंग्रेजी का santa शब्द संत शब्द का ही उच्चारण है
भीष्म पितामह एक महान संत थे। जिनकी आयु 100 वर्ष से ज्यादा थी, भगवा वस्त्र सफेद दाढ़ी संत की वेशभूषा होती है । ईसाइयों ने भीष्म पितामह की आड़ में जीसस को प्रसिद्ध करने के लिए भगवा टोपी और उसके ऊपर सफेद बालों को एक नया आवरण पहना कर सैंटा क्लॉज बनाए जाने की प्रथा शुरू कर दी और ईसाई मानसिकता वाले पब्लिक स्कूलों ने इतिहास को छुपाने और संत द्वारा गिफ्ट देने की आड़ के खेल में इसका गलत प्रचार शुरु कर दिया, जो पीढ़ी दर पीढ़ी चल पड़ा, बच्चो के साथ उनके अध्यापक और अभिभावक भी इस दुष्प्रचार के शामिल हो गए।
भीष्म पितामह जैसा महान संत और कौन हो सकता है?
उस समय भीष्म पितामह की आयु लगभग 170 वर्ष थी, जब उन्होने महाभारत युद्ध केे समय शरशैय्या पर अपने प्राण त्याग गए। दरअसल, भीष्म सामान्य व्यक्ति नहीं थे। उन्होंने ब्रह्मचर्य का कड़ा पालन करके योग विद्या द्वारा अपने शरीर को पुष्ट कर लिया था।
इसलिए अपने प्राचीन और गौरवपूर्ण इतिहास के महापुरुषों को पहचानो और उनका सम्मान करो।
पर्व विधि: 25 दिसंबर कैसे मनाए?
नकली संत के चक्कर में असली संत को भूल कर हम अपनी सभ्यता, संस्कृति और इतिहास के विनाश के भागी बन रहे हैं।
हमारे महापुरुषों के चरित्र महान एवं धवल हैं। उनकी स्मृति करो। उनके चरित्र की पूजा करो।
नकली सेन्टा बनने से अपने बच्चों को बचाओ। बच्चों को असली संत की कथा सुनाओ। उनको ब्रह्मचर्य की शिक्षा दे और जीवन में ब्रह्मचर्य के महत्त्व को बताए।
अपने बच्चों को बताइए कि यह बड़ा दिन अर्थात जो 21 दिसंबर में सबसे छोटा था जो 22 दिसंबर में था वह 23 को बढ़ा 24 को बढ़ा और फिर 25 दिसंबर को बढ़ा तो यह बढा दिन है । जिस दिन महा तपस्वी संत पितामह भीष्म ने अपने प्राण त्यागे थे। उस बड़े तपस्वी के महानिर्वाण दिवस को बड़ा दिन भी कह सकते हैं।
बहुत से लेख हमको ऐसे प्राप्त होते हैं जिनके लेखक का नाम परिचय लेख के साथ नहीं होता है, ऐसे लेखों को ब्यूरो के नाम से प्रकाशित किया जाता है। यदि आपका लेख हमारी वैबसाइट पर आपने नाम के बिना प्रकाशित किया गया है तो आप हमे लेख पर कमेंट के माध्यम से सूचित कर लेख में अपना नाम लिखवा सकते हैं।