जीवन में जीतने वाले बनो, आलसी नहीं

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    संसार में कुछ लोग आलसी देखे जाते हैं, और कुछ पुरुषार्थी। *"जो लोग आलसी होते हैं वे परिवार समाज और देश में अव्यवस्थाओं को देखकर सदा दोष ही निकालते रहते हैं। और कहते रहते हैं, कि "यहां ऐसा होना चाहिए, वहां ऐसा होना चाहिए, देश में ऐसा होना चाहिए समाज में ऐसा होना चाहिए।" परन्तु करते-धरते कुछ नहीं। यह आलसी लोगों का लक्षण है।"*
     परंतु कुछ लोग पुरुषार्थी होते हैं। वे भी परिवार समाज और देश की स्थिति को देखते हैं। वे इस प्रकार की टीका टिप्पणी नहीं करते, कि *"ऐसा होना चाहिए और वैसा होना चाहिए." "क्या होना चाहिए," वे इस बात को अच्छी प्रकार से समझते हैं। "और समझ कर वैसी व्यवस्था बनाने के लिए नियम पूर्वक अनुशासन में रहकर पुरुषार्थ करते हैं, और कुछ न कुछ परिवर्तन लाकर दिखाते हैं। वे ही लोग पुरुषार्थी माने जाते हैं।"*
     आपके सामने भी परिवार समाज और देश की स्थितियां आती रहती होंगी। आप भी उनको देखकर आलसियों की तरह बातें न बनाएं, कि *"ऐसा होना चाहिए और वैसा होना चाहिए।" "बल्कि पुरुषार्थी बनकर वैसी परिस्थितियां लाने का प्रयत्न करें। कुछ कर के दिखाएं। तो ही आप वीर बुद्धिमान तथा बहादुर कहलाएंगे। अन्यथा आलसी बातूनी और पुरुषार्थहीन कहलाएंगे।"*

—– “स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक, निदेशक दर्शन योग महाविद्यालय रोजड़, गुजरात।”

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