धर्मनिष्ठ राजनीति आज भी हम सबके लिए खोज का विषय है। धर्मनिष्ठ राजनीति का अभिप्राय है कि राजनीति में राष्ट्रनीति को स्थापित किया जाए और राजनीति को धर्म की पवित्रता के प्रति समर्पित किया जाए। राष्ट्र की साधना में लगे लोगों को आगे बढ़ने का अवसर दिया जाए। लोकतंत्र को अपनाने का भारत का उद्देश्य यही था कि पवित्र हृदय के लोग राजनीति में स्थान बना पाएं , परंतु डॉ आंबेडकर के शब्दों में कहें तो राष्ट्र मंदिर में हमने देवता के स्थान पर राक्षस को स्थापित होने दिया। पिछले 75 वर्ष के कालखंड में हमने कितने ही पलटीपुत्रों को भारतीय राजनीति की गंगा को विद्रूपित करते देखा है । उनके चिंतन की मलीनता और हृदय की अपवित्रता के चलते उनके सत्तास्वार्थ भारत की राजनीति को ही प्रदूषित करते आ रहे हैं। ऐसे ही एक प्रदूषण का नाम बिहार के वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का है। जिन्हें लोग पलटूराम के नाम से जान चुके हैं। वह बड़ी बेहयाई और ढीठता के साथ अपने सत्तास्वार्थ के खेल को पूरा करते जा रहे हैं। यह दुख की बात है कि पलटीपुत्र नीतीश कुमार उस पाटलिपुत्र में बैठकर राजनीति का स्वार्थपूर्ण खेल खेल रहे हैं जो अपनी पवित्रता, नैतिकता और धर्मनिष्ठा के लिए जग विख्यात रही है। काल कितना निर्मम होता है कि जहां कभी नैतिकता के दीप जला करते थे वहां अब अपवित्रता और अनैतिकता धर्म की ओट लेकर राजनीति शिकार खेल रही है।
हम सभी यह जानते हैं कि दुर्योधन सत्ता प्राप्ति के लिए जो कुछ भी कर रहा था वह सब अनैतिकता और अधर्म का ही एक रूप था। यदि सत्ता प्राप्ति के लिए दुर्योधन, दुशासन और उनके मामा शकुनी सहित उनके गैंग के सभी लोग अधर्म और अनैतिकता कर रहे थे तो नीतीश कुमार के आचरण को आप क्या कहेंगे । यदि उसे भाजपा अपना समर्थन दे रही है तो रामराज्य की बात करने वाली भाजपा किन शक्तियों को प्रोत्साहित कर रही है यह भी सहज रूप में समझा जा सकता है।
स्वार्थी लोगों के खिलाफ रामचंद्र जी ने मर्यादाओं के साथ कहीं समझौता नहीं किया । उनका नाम लेने वाले लोग यदि मर्यादाओं का हनन कर रहे हैं और राजनीति में अनैतिकता को प्रोत्साहित कर रहे हैं तो तात्कालिक आधार पर चाहे राम जी की उन्हें कृपा मिल जाए, पर यह दीर्घकालिक कभी नहीं हो सकती।
राम जी की कृपा स्थाई रूप से उन लोगों को ही मिल सकती है जो मर्यादाओं का पालन करते हुए पलटीपुत्रों से दूरी बनाएं और समय आने पर इन पलटीपुत्रों को जनता के द्वारा रगड़ा लगवा कर इन्हें सत्ता से और सार्वजनिक जीवन से दूर करें।
जिन लोगों ने राजनीति में सब चलता है कहकर राजनीति को अपने अनुसार परिभाषित और व्याख्यायित करने का प्रयास किया है उन्होंने राजनीति और देश के साथ अन्याय किया है।
यदि राजनीति में सब चलता तो श्री कृष्ण जी दुर्योधन और उसके लोगों के द्वारा हो रहे अन्याय और अत्याचार को झेलने की बात कहकर पांडवों को शांत नहीं करते । इसी प्रकार रामचंद्र जी भी अपने समय के रावण वृत्ति के लोगों के साथ समझौता कर लेते । पर उन्होंने ऐसा नहीं किया। इसका कारण केवल एक ही था कि राजनीति में सब नहीं चलता। जब राजनीति में सब चलने लगे तो समझो कि अन्याय, अत्याचार और अधर्म में वृद्धि हो रही है। मोदी है तो मुमकिन है, यह नारा देश के लोगों को बहुत अच्छा लग रहा है. पर क्या इस नारे का अर्थ यह भी मान लिया जाए कि मोदी जी के रहते हुए पलटीपुत्रों को भी सहन किया जाएगा या उन्हें अपने निहित राजनीतिक स्वार्थ के लिए प्रयोग किया जाएगा।
हम सभी जानते हैं कि पाटलिपुत्र के दुर्भाग्य पलटीपुत्र नीतीश कुमार बिहार की राजनीति को पिछले 20 वर्ष से प्रभावित करते आ रहे हैं। वह अपने राजनीतिक हितों की पूर्ति के लिए अब तक पांच बार पलटी मारकर हरियाणा की आयाराम गयाराम की राजनीति को भी पीछे छोड़ चुके हैं। उन्होंने पिछले दिनों विपक्षी एकता बनाकर जिस नरेंद्र मोदी को केंद्र की सत्ता से उखाड़ फेंकने का संकल्प लेकर अपने आप को लोकनायक जयप्रकाश नारायण का उत्तराधिकारी सिद्ध करने का प्रयास किया था, उनकी पलटी मार राजनीति का एक नया रूप देखिए कि अब वही नीतीश कुमार पलटी मारकर नरेंद्र मोदी की नमो माला का जाप करने लगे हैं। उनके लिए अच्छा होता कि वह स्वेच्छा से बिहार के मुख्यमंत्री की कुर्सी को छोड़ते और वहां पर तेजस्वी को बागडोर सौंप कर अपने आप को राष्ट्र के लिए समर्पित कर देते। पूरा देश जान रहा है कि अब उनका राजनीतिक जीवन राजनीति के ब्लैक होल की ओर बढ़ रहा है। यदि वह इस समय सचमुच अपने आप को मुख्यमंत्री की कुर्सी से ऊपर उठा कर देखते तो उनका शेष जीवन पूरी तरह ना सही पर कुछ सीमा तक लोकनायक जयप्रकाश नारायण के समरूप बन जाता ।
राजनीति के जिस ब्लैकहोल से वह डर रहे थे, अब उन्होंने अपने आप को स्वयं ही इस ब्लैकहोल में डाल दिया है। शायद उनके कर्मों की यही परिणति होनी थी।
नितीश बाबू ने 1974 के छात्र आंदोलन के माध्यम से राजनीति में अपना पहला कदम रखा था । आगे बढ़ते हुए नीतीश कुमार ने 1985 में पहली बार विधायक बनने का सौभाग्य प्राप्त किया। जब 1990 में लालू प्रसाद यादव बिहार के मुख्यमंत्री बने तो 1994 में नितीश बाबू ने अपने नेता लालू प्रसाद यादव के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। जिसके चलते दोनों के रास्ते अलग-अलग हो गए। इसके बाद उन्होंने जॉर्ज फर्नांडीज के साथ मिलकर समता पार्टी का गठन किया । 1995 में कम्युनिस्ट दलों के साथ मिलकर चुनाव लड़ा, पर चुनाव के परिणाम उनके पक्ष में नहीं आए । इसके बाद उन्होंने एनडीए की ओर प्रस्थान किया और 1996 में वे इसका एक भाग बन गए। उन्होंने भाजपा के साथ मिलकर 2013 तक बिहार की राजनीति को गहराई से प्रभावित किया। उनका बीजेपी के साथ गठबंधन 17 साल चला। जब भाजपा ने नरेंद्र मोदी को आगे कर उन्हें प्रधानमंत्री पद का प्रत्याशी घोषित कर चुनाव लड़ने का मन बनाया तो यह बात नीतीश कुमार को रास नहीं आई और उन्होंने एनडीए से अपना गठबंधन तोड़ दिया। 2014 के चुनाव में नितीश बाबू ने राजद और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई। 2017 में उन्होंने फिर पलटी मारी और भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाई।
2020 का बिहार विधानसभा चुनाव आया तो उन्होंने इस चुनाव की वैतरणी को भी भाजपा के साथ मिलकर ही पार किया। यद्यपि इस चुनाव के परिणामों से यह स्पष्ट हो गया कि लोगों ने भाजपा को लाभ की और जनता दल यूनियन को हानि की स्थिति में पहुंचा दिया। इस बार के विधानसभा चुनाव में जनता दल यूनियन को मात्र 43 सीटें प्राप्त हुईं , जबकि भाजपा को 74 सीटों का लाभ मिला। इसके उपरांत भी भाजपा ने उन्हें मुख्यमंत्री पद सहर्ष सौंप दिया। नितीश बाबू ने 2022 में एक बार फिर पलटी मारी और राजद व कांग्रेस के साथ मिलकर बिहार में सरकार बना ली। इस बार तेजस्वी यादव को उन्होंने उपमुख्यमंत्री बनाया । अब डेढ़ वर्ष इनके साथ सरकार चलाने के बाद उन्होंने एक बार फिर पलटी मारकर भाजपा का दामन थाम लिया है। जिसे अब केंद्र की मोदी सरकार ने भी अपना संरक्षण दे दिया है। इससे रामराज्य और धर्मनिष्ठ राजनीति की पवित्र भावना का कचूमर निकल गया है।
डॉ राकेश कुमार आर्य
लेखक सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता हैं।
मुख्य संपादक, उगता भारत