राजू आकाश की ओर एकटक देख रहा था। तभी उसके दादाजी की नजर उसकी ओर पड़ी । उन्होंने राजू को टोकते हुए कहा कि “राजू ! तुम ऊपर टकटकी लगाये क्या देखते हो?”
राजू : दादाजी ! मैं उड़ते हुए जहाज को देख रहा हूं कि यह भी इंसान ने क्या अजीब चीज बनाई है कि आकाश में पक्षियों की तरह उड़ता हुआ चला जाता है। सचमुच, इसके बनाने वाला बड़ा बुद्धिमान रहा होगा।
दादाजी : राजू ! तुम नहीं जानते इसके बनाने वाले कोई और नहीं हमारे ही देश के एक महान ऋषि भारद्वाज रहे हैं। सचमुच वह बहुत बुद्धिमान महात्मा थे, प्राचीन काल में जब रामचंद्र जी के पिता दशरथ का जमाना था, उस समय ऋषि भारद्वाज इस धरती पर हुआ करते थे।
राजू : दादाजी ! रामचंद्र जी कब हुए?
दादाजी : बेटा ! रामचंद्र जी महाराज का जन्म अबसे हजारों लाखों साल पहले हुआ था।
राजू : …. तो दादाजी , क्या हमारे यहां पर हवाई जहाज बनाने की विद्या उस समय भी मौजूद थी ?
दादाजी : बेटे ,उस समय हमारे ऋषि भारद्वाज के द्वारा न केवल हवाई जहाज बनाए जाते थे बल्कि हवाई जहाज बनाने के लिए उन्होंने “वृहदविमानभाष्य” नाम की एक किताब भी लिखी थी।
अपनी उसे किताब में उन्होंने अनेक प्रकार के हवाई जहाज बनाने का पूरा-पूरा विवरण दिया है।
राजू : दादा जी ! क्या हवाई जहाज बनाने की यह किताब आज भी मिल सकती है?
दादाजी : बेटे, संस्कृत में लिखी गई यह किताब आज भी मिलती है। जिसको कई विद्वानों ने आजकल सरल हिंदी में भी लिख दिया है। आप उसके मूल संस्कृत श्लोकों को पढ़ने के साथ-साथ उन श्लोकों का हिंदी अर्थ भी पढ़ सकते हो और अपनी बुद्धि को विकसित कर ऋषि भारद्वाज के समान बना सकते हो।
राजू : दादा जी ! तब तो मैं उसे किताब को जरूर पढ़ूंगा। जिससे मुझे अपने देश के अतीत की और बड़े-बड़े ज्ञानी महात्माओं के बारे में जानकारी मिल सकती है। इस महत्वपूर्ण जानकारी के लिए मैं आपका हृदय से धन्यवाद करता हूं।
डॉ राकेश कुमार आर्य
दयानंद स्ट्रीट, सत्यराज भवन, (महर्षि दयानंद वाटिका के पास)
निवास : सी ई 121 , अंसल गोल्फ लिंक – 2, तिलपता चौक , ग्रेटर नोएडा, जनपद गौतमबुध नगर , उत्तर प्रदेश । पिन 201309
चलभाष 9911169917