स्कन्द पुराण और भारत का सब से बड़ा अभियोग “
श्रीराम जन्मस्थान की यथातथ्यता का प्रमाण — ईश अनुकम्पा से !
” सत्यमेव जयते नानृतम् ” — मुण्डक उपनिषद् 3.1.6
अर्थात् सत्य ही की जीत होती है, झूठ की नहीं।
( इस लेख को अवश्य पढ़ें कि किस प्रकार हिन्दू पक्ष ने उच्चतम न्यायालय में सिद्ध किया कि यही स्थान ही श्रीराम का वास्तविक जन्म स्थान है , जब वे इस मुद्दे पर मुस्लिम पक्ष के सामने हारने ही वाले थे !)
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- ” *
किस प्रकार हिन्दू पक्ष ने उच्चतम न्यायालय में सिद्ध किया कि यही स्थान ही श्रीराम का जन्म स्थान है।
ऐसा सत्य जिस के विषय में किसी समाचार पत्र व टैलीविज़न माध्यम ने उल्लेख नहीं किया :
- एक शिलालेख !
- एक अधूरा नक्शा !
- एक प्राचीन धार्मिक ग्रन्थ !
- ईश्वरीय हस्तक्षेप !
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1902, अयोध्या *
एक अंग्रेज़ अधिकारी जिसका नाम केवल ‘ एडवर्ड ‘ वर्णित है, अयोध्या में सभी 148 तीर्थ स्थलम् का निरीक्षण ( Survey ) स्कन्द-पुराण के आधार पर करता है। वह अभिलिखित – परस्तर – स्तम्भों / शिलालेखों ( Stoneboards) का सृजन कर के तथा प्रत्येक तीर्थ स्थल को उन पर संख्याबद्ध कर के, अपने निरीक्षण को प्रकाशित ( Notify) करता है।
- इन प्रस्तर – अभिलेखों को हटाने वाले को 3000 रुपए जुर्माना और 3 वर्ष का कारावास । *
ये प्रस्तर – अभिलेख 117 वर्ष बाद भारतीय इतिहास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।
- 2005 , लखनऊ * ( ईश्वरीय हस्तक्षेप)
वरिष्ठ वकील पी.एन.मिश्र स्वामी अविमुक्तेश्वरानन्द के साथ
कार में लखनऊ से कलकत्ता (अब कोलकाता ) जा रहे थे। वे रास्ता भूल जाते हैं और अयोध्या पहुंच जाते हैं।
अयोध्या में वे एक साधु से मिलते हैं और सामान्य बात-चीत में उनसे पूछते हैं कि अयोध्या में कितने मन्दिर हैं।
साधु उत्तर देते हैं : अयोध्या में 148 तीर्थ स्थलम् हैं।
वकील पी.एन.मिश्र पूछते हैं कि आपको बिलकुल ठीक संख्या कैसे पता है ? साधु ने कहा कि 1902 में एडवर्ड नामक अंग्रेज़ अधिकारी ने इन 148 स्थलों पर अभिलिखित -प्रस्तर स्तम्भ बनाए थे। फिर साधु ने विषय को स्पष्ट करते हुए कहा कि 1980 में हंस बकेर (Hans Bakker) नामक इतिहासकार अयोध्या आया, निरीक्षण किया, इस शहर सम्बन्धी एक पुस्तक लिखी और अयोध्या के 5 नक्शे बनाए।
अचम्भित मिश्र ने उन्हें वे अभिलिखित प्रस्तर स्तम्भ दिखाने को कहा जो एडवर्ड ने बनाए थे। वहां वे संख्या # 100 वाला रोचक स्तम्भ देखते हैं।
स्तम्भ संख्या #100 एक 8 फुट गहरे कुएं में भगवान गणेश की मूर्ति के साथ था।
इन अभिलिखित स्तम्भों को देखने के बाद श्री मिश्र कलकत्ता के लिए चले गये।
- 2019, भारत का उच्चतम न्यायालय *
राम जन्मभूमि मुकदमे की सुनवाई चल रही है। हिन्दुओं को राम के वास्तविक जन्म स्थान को सिद्ध करने में कठिनाई आ रही है।
भारत के सर्वेक्षण विभाग (A.S.I.) ने सिद्ध कर दिया कि बाबरी मस्ज़िद के नीचे 12वीं शताब्दी का मन्दिर था, परन्तु सिद्ध नहीं कर पाए कि यही भगवान राम का जन्म स्थान है।
भारत के मुख्य न्यायाधीश पूच्छा :
* क्या आपके पास कोई ऐसा साक्ष/ प्रमाण है जो राम का वास्तविक जन्मस्थान ( Exact Location ) सिद्ध करे सके ? *
श्री पी.एन.मिश्र, जो सन्त समाज की ओर से वकील हैं, कहा :
* ” जी हां, इसका प्रमाण स्कन्द पुराण में है। *
” स्कन्द पुराण एक प्राचीन धार्मिक ग्रन्थ है। यह एक प्राचीन दस्तावेज़ है। यह सभी महत्त्वपूर्ण हिन्दू तीर्थो की स्थिति का इंगित करता है। यह भूमि स्थित हिन्दू “तीर्थ स्थलम्” की स्थिति का दिशा ज्ञान ( Geological Location) दर्शाता है।
” भगवान राम के जन्म स्थान की स्थिति (Exact Location) का वर्णन इसके वैष्णव खण्ड में अयोध्या महात्म्य रूप में है।
इसका वर्णन इस प्रकार है :
* ” सरयू नदी के पश्चिम में विगणेश्वर है ; इस स्थान से उत्तर-पूर्व में भगवान राम का वास्तविक जन्म स्थान है — यह विगणेश्वर के पूर्व ,
विशिष्ट के उत्तर तथा लोमासा के पश्चिम में स्थित है।” *
मुख्य न्यायाधीश : * ” हम स्कंद पुराण की भाषा नहीं समझ सकते। क्या आपके पास कोई नक्शा है जो हम समझ सकें।” *
श्री पी.एन.मिश्र : * “जी है। इतिहासकार हंस बकिर की एक पुस्तक है जिसमें वे नक्शे हैं जो एडवर्ड स्टोनबोर्डज़ (अभिलिखित प्रस्तर स्तम्भों) के आधार पर बनाए गए हैं और वे स्तम्भ स्कंद पुराण के आधार पर निर्मित किए गए हैं। ” *
मुख्य न्यायाधीश ने पुस्तक सहित उन नक्शों को तत्काल प्रस्तुत करने का आदेश दिया।
यह नया साक्ष्य उच्चतम न्यायालय में तहलका मचा देता है।
- स्कन्द पुराण में राम जन्म-स्थान की वास्तविक स्थिति ( Exact Location) का वर्णन पाया जाता है।
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एडवर्ड ने 148 स्टोनबोर्डज़ ( अभिलिखित स्तम्भ)
स्कन्द-पुराण के आधार पर खड़े किए। -
हंस बकिर ने 148 स्टोनबोर्डज़ के आधार पर नक्शे बनाए।
इन सब में पूर्ण पारस्परिक संबंध ( Complete Correlation) था।
परन्तु एक समस्या थी।
स्कंद पुराण के अनुसार, भगवान राम का वास्तविक जन्म स्थान (Exact Birthplace) विगणेश के उत्तर-पूर्व में है। परन्तु हंस बकिर ने अपने नक्शे में इसे सुस्पष्ट इंगित नहीं किया। इसलिए भगवान राम का जन्म स्थान नक्शे से पूर्णतः मेल नहीं खा रहा था।
और अब होता है इस अभियोग के तारांकित साक्षी (Star Witness) — शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद का।
श्री पी एन मिश्र ने शंकराचार्य को बुलाया और इस रहस्य को सुलझाने के लिए कहा। शंकराचार्य अयोध्या की यात्रा की और इस रहस्य को सुलझ दिया।
अविमुक्तेश्वरानन्द साक्षी संख्या DW 20/02 थे। उन्होंने उच्चतम न्यायालय को बताया कि स्कंद पुराण में वर्णित ‘ विगणेश ‘ हंस बकिर के नक्शे में इंगित विगणेश्वर मन्दिर नहीं है।
बल्कि, ‘ विगणेश ‘ स्टोनबोर्ड / अभिलिखित स्तम्भ #100 है जहां भगवान गणेश ( जिसे विगणेश भी कहा जाता है) की मूर्ति कुएं में स्थित है।
जब हम शिलालेख #100 को ‘ विगणेश ‘ मान लेते हैं, रहस्य सुलझ जाता है।
न्यायमूर्ति चन्द्रजुड मुस्कुराए और कहा :
* ” इन्होंने यह सिद्ध कर दिया; इन्होंने कार्य सम्पन्न कर दिया।” *
अविमुक्तेश्वरानन्द की साक्षी/ गवाही / शास्त्रीय प्रमाण (Testimony) ने अभियोग की दिशा बदल दी और मुस्लिम पक्ष जान गया कि वे मुकदमा हार गए हैं। अपने मुकदमे की रक्षा के लिए उनके पास एक ही रास्ता था कि शंकराचार्य के साक्ष्य (Testimony) को झूठ सिद्ध किया जाए।
मुस्लिम पक्ष ने न्यायालय से शंकराचार्य से प्रश्न पूछने ( Cross Examination) की अनुमति मांगी।
मुस्लिम पक्ष के 15 वकील 10 दिन के लिए शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद से प्रश्न पूछते हैं। शंकराचार्य उन सभी प्रश्नों का सटीक उत्तर देते हैं, पांचों न्यायाधीश उन्हें सुनते रहते हैं।
दस दिन के बाद मुस्लिम पक्ष अन्ततः समर्पण कर देता है।
इस प्रकार स्कंद पुराण, एडवर्ड के शिलालेखों, हंस बकिर के नक्शे तथा स्वामी अवधेशानन्द के साक्ष्य के आधार पर उच्चतम न्यायालय अपना निर्णय हिन्दू पक्ष के हक में देता है !
श्रीराम मन्दिर के अभियोग में श्री के. के. मुहम्मद की भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (ASI) की रिपोर्ट सहायक हुई। जबकि ए. एस .आई.
की रिपोर्ट ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, इस अभियोग में वास्तविक दिशा – परिवर्तन हमारे पवित्र ग्रन्थ स्कंद पुराण तथा धार्मिक गुरुओं से आया जिन्होंने इन ग्रन्थों का अध्ययन किया तथा गूह्य पदों की व्याख्या की।
उच्चतम न्यायालय के निर्णय में स्कंद पुराण का उल्लेख 77 बार हुआ है।
सन् 2009 तक हिन्दू पक्ष इस अभियोग में न्यायालय में हार रहा था। तब शंकराचार्य द्वारा श्री पी. एन. मिश्र की, इस केस को लड़ने के लिए , वकील के तौर पर 2009 में नियुक्ती की गई।
श्री पी. एन. मिश्र ने कहा यदि मैं 2005 में, रास्ता भटक कर अयोध्या न पहुंचा होता और उस साधु से न मिला होता, मैं उच्चतम न्यायालय में भगवान राम का जन्म स्थान कभी सिद्ध नहीं कर पाता।
- ” मैं आश्वस्त हूं कि यह एक ईश्वरीय हस्तक्षेप था। *
— पी. एन. मिश्र
जय श्रीराम !!!
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पादपाठ
1) इस पोस्ट के लेखक अज्ञात है जिन्होंने यह महत्त्वपूर्ण जानकारी जो कि शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानन्द के साक्ष्य पर आधारित है और वरिष्ठ वकील श्री पी एन मिश्र के माध्यम से उच्चतम न्यायालय प्रस्तुत की गई है।
2) श्रीराम जन्मस्थान – बाबरी मस्जिद के 150 वर्ष पुराने विवाद पर निर्णय 9 नवम्बर 2019 को सर्व सम्मति से दिया गया। माननीय उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रंजन गोगोई के साथ 4 अन्य न्यायाधीश थे : सर्वन्यायमूर्ति एस.ए. बोबडे, डी. वाई. चन्द्रचूड, अशोक भूषण, एस. अब्दुल नज़ीर ।
3) इस निर्णय में सम्बन्धित वकील श्री पी. एन. मिश्र ने ईश्वरीय हस्तक्षेप का उल्लेख करके भक्त जनों को आह्लादित कर दिया है।
4) चमत्कार होते रहते हैं; ईश्वरीय अनुकम्पा शुभ कार्यों में बरसती रहती है, परन्तु सब संयोगवश प्रतीत होता है।
इस संदर्भ में पाश्चात्य विद्वान जोज़फ़ बर्नार्ड का सटीक कथन है :
” संयोग में न चेतना है, न ही स्मरण शक्ति।”
( Chance has neither consciousness nor memory.)
— Joseph Bertrand
5) श्रीराम मंदिर का उद्घाटन राष्ट्रीय अस्मिता का एक गौरवपूर्ण ऐतिहासिक क्षण है। यह हमारी संस्कृति तथा स्वाभाविक विशिष्टता का प्रतीक है जो हमें देश में रामराज्य स्थापित करने में प्रेरित करेगा।
जय श्रीराम !
जयतु भारतम् !
वन्दे मातरम् !
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विद्यासागर वर्मा
पूर्व राजदूत
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