Categories
उगता भारत न्यूज़

ओ३म् श्री वीरेन्द्र राजपूत जी द्वारा ऋग्वेद के सातवें मण्डल का काव्यानुवाद आरम्भ

(इससे पूर्व वह ऋग्वेद के छः मण्डल सहित सम्पूर्ण यजुर्वेद, सामवेद एवं अथर्ववेद का काव्यानुवाद कर चुके हैं।)

श्री वीरेन्द्र राजपूत जी देहरादून में निवास करते हैं। उन्होंने ऋग्वेद के प्रथम छः मण्डलों सहित यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद का काव्यानुवाद किया है। उनका ऋग्वेद के पांच मण्डलों सहित अन्य तीन वेदों पर काव्यानुवाद प्रकाशित हो चुका है। इस समय वेदभक्त एवं ऋषिभक्त वीरेन्द्र राजपूत जी की आयु का 86 वां वर्ष चल रहा है। वह अपनी पुत्री प्रतिभा आर्य एवं जामाता जी के साथ देहरादून में जनरल महादेव सिंह रोड पर स्थित मोहित नगर में निवास करते हैं। उनका शरीर वर्तमान में कुछ कमजोर है। उनकी लगन व इच्छा है कि वह ऋग्वेद का सम्पूर्ण काव्यानुवाद पूर्ण कर प्रकाशित करा दें। वर्तमान में उनके काव्यानुवाद को अमरोहा के ऋषिभक्त विद्वान डा. अशोक आर्य जी अपने ‘आर्यावत्र्त केसरी प्रकाशन संस्थान’ की ओर से प्रकाशित कर रहे हैं। आचार्य वीरेन्द्र राजपूत जी की वेदों एवं पं. गुरुदत्त विद्यार्थी तथा वीर बन्दा बैरागी जी पर अनेक काव्यमय रचनायें हैं। उनका जीवन पूरी तरह से ईश्वरीय कार्यों, वेद, ऋषि दयानन्द एवं आर्यसमाज के कार्यों को करने के लिए समर्पित है।

कुछ ही दिन पूर्व उन्होंने ऋग्वेद के छठे मण्डल का काव्यानुवाद पूर्ण किया है। उन्होंने इसकी जानकारी देते हुए हमसे पं. हरिशरण सिद्धान्तालंकार जी का ऋग्वेद के सातवें मण्डल का वेदभाष्य उपलब्ध कराने को कहा था। आज प्रातः हमने यह ग्रन्थ वैदिक विद्वान एवं अपने आदरणीय मित्र डा. कृष्णकान्त वैदिक शास्त्री जी से प्राप्त कर उन्हें उपलब्ध करा दिया है। आशा है कि पं. वीरेन्द्र राजपूत जी शीघ्र ही सातवें मण्डल का काव्यानुवाद भी पूरा कर लेंगे। वैदिक विद्वान श्री कृष्ण कान्त शास्त्री जी भी ऋषि दयान्द के वेदभाष्य पर कार्य कर रहे हैं। डा. वैदिक ने अब तक ऋग्वेद के सुबोध भाष्य का जो कार्य किया है वह आर्य प्रकाशक विजयकुमार गोविन्दराम हासानन्द, दिल्ली के स्वामी श्री अजय आर्य जी द्वारा अपनी वेबसाइट पर अपलोड किया गया है। यह भी बता दें कि डा. वैदिक जी ऋग्वेद का जो सुबोध भाष्य प्रस्तुत कर रहे हैं उसका अंग्रेजी अनुवाद भी पृथक ग्रन्थ के रूप में कर रहे हैं। उनका हिन्दी व संस्कृत में किया गया कार्य देहरादून के वैदिक साधन आश्रम तपोवन की मासिक पत्रिका ‘‘पवमान मासिक” में क्रमशः दिया जा रहा है। यह भी बता दें कि हमने पं. हरिशरण सिद्धान्तालंकार जी के सातवें व आठवें मण्डल के भाष्य की प्रति हमने डा. कृष्ण कान्त जी से प्राप्त कर ही पं. वीरेन्द्र राजपूत जी को उपलब्ध कराई है।

हम उपर्युक्त दोनों विद्वानों को ऋषि दयानन्द व वेद कार्य करने के लिए नमन करते हैं। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि यह दोनों विद्वान जो कार्य कर रहे हैं वह शीघ्र पूर्ण हो जाये। ओ३म् शम्।

-मनमोहन कुमार आर्य

Comment:Cancel reply

Exit mobile version