रिश्तों से यदि प्यार है, सीं लो अपने होंठ।
कानों से बहरे बनो , झेलो भीतर चोट ।। 11।।
रिश्ते रिसते घाव हैं, करो नित्य उपचार।
थोड़े से प्रमाद से , उजड़ जाय संसार।। 12।।
मौन धार चलते रहो , देख दिनों का फेर।
पछवा चले – कचरी फले, आनन्दित करे बेल ।।13।।
मत खोजो संसार में, कितने शत्रु मीत ?
ये दोनों भीतर बसें, नाहक है भयभीत।।14।।
उगता सूरज देखकर ,करते सभी प्रणाम।
पीठ फेर घर को चलें, जब हो जाती शाम।। 15।।
तन की चादर फट चली, घटता जाता मोल।
अपने भी दुत्कारते, जीवन में विष घोल।। 16।।
मन भगवा ना हो सका, तन भगवा के बीच।
दुष्ट भाव बिसरे नहीं , रहा नीच का नीच।। 17।।
साधो ! इस संसार में, बुरे भले दो लोग।
उपचार करें अच्छे यहां, बुरे बढ़ाते रोग।। 18।।
लगे घटती सबको बुरी, बढ़ती सबको भाय।
आयु एक अपवाद है, बढ़ती हुई कड़वाय ।। 19।।
जो भी आया है यहां, जाएगा निज धाम।
अपना – अपना कह रहे, जग पराया धाम।। 20।।
डॉ राकेश कुमार आर्य
दयानंद स्ट्रीट, सत्यराज भवन, (महर्षि दयानंद वाटिका के पास)
निवास : सी ई 121 , अंसल गोल्फ लिंक – 2, तिलपता चौक , ग्रेटर नोएडा, जनपद गौतमबुध नगर , उत्तर प्रदेश । पिन 201309 (भारत)
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