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लेखक आर्य सागर खारी 🖋️
दीर्घ समय तक पक्षी विज्ञानियों में यह मान्यता रही की पक्षी अपना शत प्रतिशत परस्पर संवाद शारीरिक भाव भंगिमा से ही करते हैं जैसे पूछ का हिलाना,पंखों का फड़फड़ाना चोंच से अन्य किसी वस्तु को कुरेदना आदि आदि।
वही न्याय दर्शन या प्रमाण शास्त्र के भाष्यकार महर्षि वात्स्यायन ने प्रत्यक्ष, अनुमान आदि प्रमाणों के लक्षण प्रकरण में यह वचन कहा है कि “एवमेभी: प्रमाणैदे्वमनुष्यतिरश्चा व्यवहारा: प्रकल्पन्ते” अर्थात शब्द आदि प्रमाणों का प्रयोग न केवल मनुष्य करते हैं मनुष्येत्तर अन्य जीव जंतु पशु पक्षी भी करते हैं।
ऋषियों का ज्ञान मल्टीडिसीप्लिनरी होता है।
मनुष्य व्यक्त वाणी बोलता है जबकि पक्षी अव्यक्त वाणी बोलते हैं। कोई रास्ता भटक जाए तो जो रास्ते को जानता है रास्ते के विषय में उसका कथन शब्द प्रमाण माना जाता है लेकिन क्या यह शब्द प्रमाण पक्षी जगत में भी लागू होता है जी हां यह निस्संदेह लागू होता है। आधुनिक पक्षी विज्ञान के विभिन्न शोधों ने इस पर मोहर लगाई है पक्षी भी अपनी विविध स्वर यंत्र से उत्पन्न ध्वनियों के माध्यम से परस्पर संवाद करते हैं। इन ध्वनियों को परस्पर व्यवहार में लाकर पक्षी अपना जीवन जीते हैं।
गौरैया बुलबुल सात भाई तोता जैसे पसेरी फॉर्म पक्षियों का वर्ग सॉन्ग बर्ड का परिवार इसमें सर्वाधिक माहिर है।
ऋतुओं के विविध परिवर्तन को पक्षी सूक्ष्म संकेतों के माध्यम से सबसे पहले भाप लेते हैं प्रकृति में होने वाले परिवर्तन के प्रति पक्षी सर्वाधिक संवेदी होते हैं। यही कारण है भारत के परिपेक्ष में माघ मास के आते ही वसंत ऋतु के आगमन से पूर्व ही कोयल आदि चहकने लगती हैं। ऐसे समझिए जब पक्षियों का नाद सवेरे होते ही अधिक सुनाई देने लगे तो समझिए शीत ऋतु की अब विदाई हो रही है ऋतुराज बसंत के आगमन की भूमिका तैयार हो रही है जिसको पक्षी तैयार करते हैं। पक्षी अपना उत्सव हमसे पूर्व हमसे दीर्घ अवधि तक मनाते हैं।
पक्षियों के धव्नात्मक संवाद को समझते हैं।
बुलबुल गौरैया बया आदि चिड़िया छोटी अवधि के लिए जब नरम मधुर शांत ध्वनि निकालती है तो उसे ‘ संपर्क कॉल’ कहते हैं यह कॉल अपनी प्रजाति के पक्षी को अपने आसपास बुलाने के लिए अपनी उपस्थिति दर्शाने के लिए या भोजन की खोज पूर्ण होने पर छोड़ी जाती है।
अपने से विजातीय किसी हानिकारक पक्षी कुत्ता बिल्ली नेवला सांप आदि का खतरा होने पर पक्षी ‘अलार्म कॉल’ निकालते हैं यह बेहद कर्कश पतली तेज होती है। इसमें माधुर्य का अभाव रहता है। इतना ही नहीं पक्षी विज्ञानियों ने अपने विविध शोध में पाया है यदि शिकारी कुत्ता है तो अलग ध्वनि पक्षी निकालते हैं यदि बिल्ली है तो अलग बंदर के लिए अलग अलार्म काल निकालते हैं ।
तीसरी स्थिति में यदि कोई गैर हानिकारक पक्षी है लेकिन अपनी प्रजाति का नहीं है तो उसे भगाने के लिए क्षेत्रीय कॉल निकल जाती है यह भी कर्कश होती है लेकिन धीमी होती है।
पक्षियों के संवाद का चौथा तरीका है संसर्ग के लिए वसंत के आगमन पर या वर्षा ऋतु में गाकर नर, मादा या मादा नर को रिझाने के लिए पक्षी गाते हैं इसे बर्ड सॉन्ग कहते हैं पक्षियों का एक ही गीत नहीं गाते है एक ही पक्षी दर्जनों से लेकर सैकड़ो गीत गा सकता है अलग-अलग प्रजातियों के पक्षी इसमें माहिर होते हैं ।
पक्षी हमारे पूर्वज है पूर्वज होने की शर्त यह नहीं है कि मनुष्य ही मनुष्य का पूर्वज हो सकता अर्थात पुर्व +अज जिनका पहले जन्म हो चुका है ।इस विषय में वैदिक दर्शन ही नहीं विकासवाद भी यही कहता है मनुष्य सृष्टि में ईश्वर की सबसे बाद की रचना है कीट पतंग पशु पक्षी उससे पूर्व विधाता ने निर्मित किए हैं।
पश्चिमी जगत में मानव तंत्रिका तंत्र पर पक्षियों की चहचहाहट बर्ड साउंड के बड़े ही सकारात्मक प्रभावों को लेकर अनेक शोध हुए हैं। नियमित तौर पर पक्षियों के गान को सुनने से रक्तचाप कार्टीसोल जैसे तनाव के लिए बदनाम हार्मोन, अवसाद में कमी देखी गई है ।1300 से अधिक प्रतिभागियों को अर्बन माइण्ड ऐप से अनेक पक्षियों के मधुर बर्ड साउंड सुनाये गए तब जाकर यह सकारात्मक शोध का परिणाम निकला है।
भारत सबसे उत्तम देश है। यहां चारों ऋतुएं पायी जाती हैं ।भारत जैसा बसंत दुनिया में कहीं भी नहीं है गाने वाले पक्षियों की सर्वाधिक प्रजातियां भारत में ही पाई जाती हैं ऐसे में समय निकालकर हमें पक्षी विहारो में पक्षियों के कलरव को सुनना चाहिए या अपने आसपास ऐसा वातावरण फलदार गूलर जैसे वृक्ष लगाकर निर्मित करना चाहिए जिससे हम पक्षियों के गान को सुन सके।
आप सभी को 75वें गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं!
लेखक आर्य सागर खारी