लेखक अशोक चौधरी मेरठ।
सम्पूर्ण भारत वर्ष में गजब का हर्षोल्लास भगवान राम के मंदिर अयोध्या में बनने को लेकर छाया हुआ है।भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी 22 जनवरी को इस अवसर पर सहभागिता कर रहे हैं।यह प्रसन्नता कितने लम्बे संघर्ष के बाद प्राप्त हो रही है।इस ओर बरबस ही ध्यान चला जाता है।
अयोध्या में राम मंदिर निर्माण करने के लिए हिंदूओं द्वारा जो संघर्ष किया गया,उसको दो भागो मे बांटा जा सकता है।पहला भाग सन् 1947 तक तथा दूसरा भाग भारत के आजाद होने के बाद सन् 1947 से 22 जनवरी सन् 2024 तक।
ऐसी भारतिय सनातन समाज में मान्यता है कि भगवान राम के सरयू नदी में जल समाधि लेने के बाद, उनके बडे पुत्र महाराज लव ने भगवान राम का मंदिर अयोध्या में बनवाया था,उस समय दुनिया में सनातन धर्म के अलावा कोई दूसरा पंथ नही था,लोग छोटे छोटे कबीलों में रहते थे, उनके अपने अपने देवता थे, व्यक्तिगत पूजा पद्धति अलग थी, इसलिए उस युग में व्यक्ति की समाज में जिम्मेदारी को ही धर्म कहा गया।पिता के प्रति पुत्र का कर्तव्य,राजा का जनता के प्रति कर्तव्य,एक योद्धा का अपने पक्ष के लिए कर्तव्य ही धर्म कहलाता था।
कुरुक्षेत्र के मैदान में जब अर्जुन एक योद्धा के कर्तव्य से पीछे हटने लगा था,तब भगवान कृष्ण ने गीता का उपदेश देकर अर्जुन को अपने क्षत्रिय धर्म/कर्तव्य का बोध कराया था, जो आज तक मानव का मार्ग प्रशस्त कर रहा है।
उस समय का समाज संघर्षों से भरा समाज था, इसलिए हमारे आदर्श भगवान भी एक योद्धा के रूप में हैं।
आज से ढाई हजार वर्ष पूर्व जब वेद लिखे गए,तब यह धारणा हमारे श्रृषि मुनियों ने दी कि ईश्वर एक ही हैं,वह निराकार है,जो अनेक देवी देवताओं के रुप में साकार हमने बना रखा है,यह ईश्वर तक पहुंचने का माध्यम है।
तभी महात्मा बुद्ध, भगवान महावीर तथा पश्चिम में ईसा मसीह,आगे चलकर हजरत मोहम्मद साहब के द्वारा जो विचार दिए गए, मनुष्य ने उनको अंगीकार कर जीवन जीने का प्रयास किया।
अब से दो हजार वर्ष पूर्व महाराजा विक्रमादित्य ने अयोध्या में लव के बनाये हुए भगवान राम के मंदिर का जीर्णोद्धार कर एक भव्य मंदिर का निर्माण किया। ऐसी मान्यता भारतीय जनमानस में रही है।
पश्चिम मैं इस्लाम व ईसाई धर्म को राज्य धर्म घोषित कर उनके अनुयायियों ने अपने अपने धर्म का विस्तार किया तथा भारत में सम्राट अशोक तथा आगे चलकर सम्राट कनिष्क ने बुद्ध धर्म को राज्य धर्म घोषित कर अपने धर्म का विस्तार किया।एक समय बौद्ध धर्म संसार का विशाल धर्म बन गया था। परंतु ईसाई और इस्लाम की आक्रामकता के सामने वह धाराशाई हो गया।
भारत में जब सन् 712 में मुहम्मद बिन कासिम का आक्रमण राजा दाहिर पर हुआ,तब ही से भारत में जबरदस्ती धर्म थोपने के विरोध में सनातन धर्म के मानने वालों ने इसका प्रत्युत्तर दिया। इसलिए सन् 735 से लेकर सन् 1000 तक भारत के गुर्जर- प्रतिहार वंश के नेतृत्व में भारतियों ने इस्लाम की आक्रामकता को कुंद कर दिया। गुर्जर प्रतिहार सम्राट मिहिर भोज के समय सुलेमान नामक एक अरबी यात्री भारत आया था, उसने सम्राट मिहिर भोज को इस्लाम का सबसे बड़ा शत्रु लिखा है।
सम्राट मिहिर भोज (सन् 836-885) की ग्वालियर प्रशस्ती में प्रतिहार वंश के राजाओं को राम जी के भाई लक्ष्मण का वंशज बताया गया है।
सम्राट मिहिर भोज के दरबारी विद्वान राजशेखर जो मिहिरभोज के पुत्र महेन्द्र पाल (सन् 885-910) के गुरू थे, ने महेंद्र पाल को रघुग्रामिणी और रघुवंश तिलक कहा है।
राजशेखर ने ही महेंद्र पाल के पुत्र महीपाल को रघुवंश मुकुट मणि कहा है।
धार्मिक आधार पर आदि शंकराचार्य जी का जन्म भी आठवीं शताब्दी में इसी कालखंड में हुआ।आदि शंकराचार्य जी ने भारत में चार मठ बनाये, उन्होंने साधुओं मे सैन्यपथ का मार्ग प्रशस्त किया तथा साधुओं के अनेक अखाडे बनाये।इन अखाड़ों में एक अखाडा नागा साधुओं का था,नागा शब्द का अर्थ ही गुजरात में लडाका है।इन नागा साधुओं ने सनातन धर्म की रक्षा के लिए अतुलनीय बलिदान दिये।
इस समय जब भारत में नागा साधु हथियार उठाये हुए थे,उसी समय ग्यारहवीं शताब्दी में इस्लाम के खलीफा के सामने एक मुल्ला ने भारत में इस्लाम को फैलाने के लिए सूफि मत को बनाने का प्रस्ताव रखा। क्योंकि शक्ति के बल पर इस्लाम का रास्ता भारत में असफल हो गया था।मुल्ला के इस प्रस्ताव पर खलीफा आग बबूला हो गया तथा उस मुल्ला को फांसी पर चढा दिया, परन्तु कुछ समय बाद खलीफा को सूफि मत की बात को स्वीकारोक्ति देनी पडी। भारत में साधुओ का बडा सम्मान था,अत ये सूफि भारतीय साधुओं की तरह ही मठ में रहते थे, इनके मठो को मुस्लिम खानगाह कहते थे। भारतीय साधुओं की तरह के कपड़े तथा भजनो की तरह का गाना भी ये सूफि गाते थे।जब महमूद गजनवी ने भारत पर हमले प्रारंभ किए,तब सूफि उसकी सेना के साथ चलते थे। अतः गजनवी ने जब लाहौर पर अधिकार कर लिया तब लाहोर मे सूफि का पहला खानगाह/मठ बना।जब मोहम्मद गौरी ने भारत पर हमला किया तब मोहिद्दीन चिश्ती नाम का एक सूफि उसके साथ था, सन् 1192 में तराईन के द्वीतिय युद्ध में मोहम्मद गौरी की विजय के पश्चात मोहिनूद्दीन चिश्ती ने अजमेर में अपना खानगाह/मठ बनाया।इस मोहम्मद गौरी के छोटे भाई ने ही सबसे पहले अयोध्या पर हमला किया,वह राम मंदिर को तो क्षति नही पहुचा पाया, परन्तु एक जैन मंदिर को तोड़ने में सफल हो गया।यह अयोध्या पर किसी मुस्लिम का पहला हमला था। परन्तु गहडवाल नरेश जयचंद के सेनापति ने मोहम्मद गोरी के छोटे भाई को घेरकर युद्ध में मारडाला। सन् 1194 में राजा जयचंद मोहम्मद गोरी के साथ युद्ध में लड़ते हुए बलिदान हो गये।यह वह समय था जब मुस्लिम भारत की राजसत्ता का अधिग्रहण कर रहे थे तथा भारतीय अपनी सामर्थ्य अनुसार उसका प्रतिकार कर रहे थे।आगे चलकर बाबर ने भारत में मुगल वंश की स्थापना की।
बाबरनामा जो बाबर की जीवनी है तथा हुमायूं की बेटी गुलबदन द्वारा रचित हुमायूं नामा
में अयोध्या में हुएं किसी युद्ध या निर्माण का संकेत नही है। अकबर के दरबारी अबुल फजल के द्वारा लिखित आईने अकबरी नामक पुस्तक में अयोध्या के रामकोट जन्म स्थान पर मेले का वर्णन है। परंतु किसी मस्जिद का जिक्र नहीं है।
यूरोपियन यात्री फिंच,जो मुगल बादशाह जहांगीर के काल में अयोध्या आया था,के द्वारा अयोध्या में जन्म स्थान व स्थानीय पंडो द्वारा श्रधालुओं का विवरण लिखा है।
सन् 1660 में मनूकी नामक एक इतावली व्यक्ति भारत आया था।वह औरंगजेब की सेना में सैनिक अधिकारी बन गया। उसने एक पुस्तक लिखी जिसका नाम “हिस्टोरिया आफ मुगल” था।इस पुस्तक में औरंगजेब के आदेश पर उज्जैन, मथुरा,काशी, हरिद्वार व अयोध्या के प्रमुखतम मंदिरों का ध्वंस लिखा है।साथ मे यह भी लिखा है कि अयोध्या में विध्वंस मंदिर वाले स्थान पर हिंदू फिर से अधिकार कर पूजा पाठ करने लगे हैं।
सन् 1722 में मुगल बादशाह अहमद शाह रंगीला ने अयोध्या के बैरागियों को पूजा स्थल बनाने के लिए एक जगह अधिकृत की,जिस जगह पर हिंदू संतों ने हनुमान गढी के नाम से एक चबूतरा बना लिया तथा बाबरी मस्जिद के अहाते के भीतर भी कुछ पूजा करने के लिए निर्माण कर लिया।ये साधू यदि कोई मुस्लिम इस मस्जिद मे जाता तो उसको पीटकर भगा देते थे। सन् 1754 में मराठा मुगल सत्ता के केयर टेकर बन गए थे।
सन् 1770 में आस्ट्रियन पादरी द्वारा लिखित पुस्तक में 3 गुम्बद वाले स्थान की परिक्रमा करते हुए हिंदुओं का वर्णन है।पादरी ने मध्य गुम्बद के नीचे हिंदुओं के श्रद्धा केंद्र के रूप में एक वेदी का उल्लेख किया है।इस पादरी की पुस्तक में प्रथम बार मस्जिद की संरचना का संकेत प्राप्त हुआ है।
सन् 1803 में मराठो को हराकर अंग्रेज मुगल सत्ता के केयर टेकर बन गए।
सन् 1828 के ब्रिटिश गजट में भी रामकोट में मंदिर का उल्लेख है।
सन् 1855 में अमेठी के एक मुल्ला अमीर अली ने कहा कि हनुमान गढी मस्जिद को तोडकर बनाई गई है।इस आरोप की जब जांच हुई,तब यह आरोप झूठा पाया गया, सन् 1722 का मुगल बादशाह का जमीन देने का शाही फरमान दिखा दिया गया। परंतु मुस्लिम पक्ष अपनी हठधरमी पर अडा रहा,जिसके फलस्वरूप हिंदू मुस्लिम दंगा हो गया।इस दंगे में 11 हिंदू और 75 मुस्लिम मारे गए।मुल्ला अमीर अली ने जेहाद घोषित कर हिंदुओं पर हमला करने की घोषणा कर दी। अंग्रेज अधिकारी ने अवध के नबाब को कहा कि या तो वह मुस्लिमों को रोके वर्ना अंजाम भुगतने के लिए तैयार रहें। मुस्लिम, नबाब वाजिद अली शाह से तो नही रुके। परंतु अंग्रेजों की सेना ने उनको रोक दिया,इस संघर्ष में करीब 400 मुस्लिम मारे गए। अंग्रेजों ने नबाब वाजिद अली शाह को गिरफ्तार कर कलकत्ता में नज़र बंद कर दिया।नबाब के अल्पव्यस्क पुत्र को गद्दी पर बैठा दिया तथा उसकी माता बेगम हजरत महल को रियासत का संरक्षक बना दिया।
कुछ समय बाद सन् 1857 की क्रांति हो गई।
सन् 1858 के गजट में पहली बार बाबरी मस्जिद का उल्लेख किया गया है।
इस समय ही अंग्रेजों ने विवादित स्थल को हिंदू और मुस्लिम के लिए दो भागों मे विभक्त कर दिया।इसी बीच निहंग सिक्ख, पंजाब के निहंगो ने अपने ब्रह्मा (राम)का स्थान बताकर बलपूर्वक इस स्थान को अपने कब्जे में ले लिया।उस समय के दरोगा शीतल दूबे द्वारा लिखित एफआईआर में यह घटना दर्ज है।
इसी तरह छिटपुट संघर्ष चलता रहा। परंतु सन् 1934 में पुनः हिन्दू मुस्लिम दंगा अयोध्या में हुआ। हिंदूओं ने बाबरी मस्जिद के तीनों गुम्बद क्षतिग्रस्त कर दिए। अंग्रेजों ने हिंदूओं से हर्जाना वसूल कर एक मुस्लिम ठेकेदार तसव्वुर खान के द्वारा पुनः गुम्बद बनवा दिये गये।
उसी समय प्रिंस आफ वेल्स के रुप में एडवर्ड के भारत आने के कारण धनसग्रह का कार्यक्रम तत्कालीन शासनतंत्र द्वारा चलाया गया। परंतु किसी कारणवश प्रिंस का दौरा निरस्त हो गया।तब अयोध्या के तत्कालीन कलेक्टर जिनका नाम भी एडवर्ड था,ने उसी धन से एक तीर्थ अन्वेषणी सभा का गठन कर स्कन्द-पुराण आदि के आधार पर अयोध्या में जगह-जगह कुल 158 पत्थर लगाये। जिसमें एक नम्बर का पत्थर (खम्भा) जन्म स्थली पर लगाया।
इन्हीं पर शोध कर लेखक हान्स बेकर ने पुस्तक लिखी, जिसमें इन 158 खम्भो का मानचित्र भी था।
औरंगजेब के समय हिन्दू मान्यताओं पर अत्यधिक चोट हुई थी,आदि शंकराचार्य जी द्वारा स्थापित चार मठों में से जगन्नाथ पुरी के मठ को छोड़कर बाकि तीन मठों का कार्य अवरुद्ध हो गया था।लगभग 300 वर्ष बाद सन् 1941 में एक महान संत श्री करपात्री जी महाराज जो काशी में रहते थे, ने पुनः अवरुद्ध चल रहें तीनों मठों को संचालित कर शंकराचार्य नियुक्त कर दिए थे।
बलरामपुर के राजा पटेश्वरी प्रसाद करपात्री महाराज के शिष्य थे।
धीरे-धीरे सन् 1947 आ गया।15 अगस्त सन् 1947 को देश आजाद हो गया।भारत में अंतरिम सरकार बनी हुई थी।भारत का विभाजन होकर पाकिस्तान बन चुका था।भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू थे तथा गृहमंत्री सरदार पटेल थे। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री गोविन्द वल्लभ पंत थे तथा गृहमंत्री लालबहादुर शास्त्री थे।
आजादी के बाद एक घटना घटी, सोशलिस्ट नेता आचार्य नरेन्द्र मोहन सहित 11 विधायकों ने उत्तर प्रदेश विधानसभा से स्तिफा दे दिया था। जून-जुलाई सन् 1948 में इन सीटों पर चुनाव होना था। अयोध्या उस समय फैजाबाद विधानसभा के अन्तर्गत आती थी। नरेंद्र मोहन फैजाबाद से उपचुनाव में खड़े थे। कांग्रेस ने एक रामभक्त संत बाबा राघवदास को नरेंद्र मोहन के सामने खडा कर दिया तथा वह संत चुनाव में जीतकर विधायक बन गए।
इस प्रकार अयोध्या में रामभक्त विधायक संत बाबा राघवदास,महंत दिग्विजय नाथ (गोरखपुर पीठ, हिन्दू महासभा), निर्मोही अखाड़ा के बाबा अभिराम दास, रामचंद्र दास (दिगम्बर अखाडा, अयोध्या के हिंदू महासभा के शहर अध्यक्ष),गीता प्रेस के संस्थापक श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार (हिन्दू महासभा)एक साथ आ गये।
ऐसा बताया जाता है कि करपात्री जी महाराज ने अपने शिष्य बलरामपुर के राजा साहब के यहा एक यज्ञ किया था, जिसमें सरकारी अधिकारी श्री केकेके नायर भी सम्मिलित हुए थे।महाराज जी ने इस यज्ञ में सम्मिलित सभी लोगों से भगवान राम को अपने गर्भ ग्रह में स्थापित करने का वचन लिया था।
22-23 दिसम्बर सन् 1949 की रात को सरयू नदी के तट पर साधु अभिराम दास जी के साथ महंत दिग्विजय नाथ सहित पांच व्यक्तियों ने स्नान कर भगवान श्री राम की मूर्ति रात में जन्म स्थान पर रख दी।उस समय रामचबूतरा पर यज्ञ चल रहा था, रामचरितमानस का पाठ चल रहा था। पुलिस के 12 सिपाही ड्यूटी पर थे,एक सिपाही जिसका नाम शेर सिंह था जाग कर विवादित स्थल की निगरानी कर रहा था। शेर सिंह सिपाही,अभि राम दास जी से बहुत प्रभावित था,रात के बारह बजे तक शेर सिंह की ड्यूटी थी,रात 12 बजे के बाद एक मुस्लिम सिपाही की ड्यूटी थी।जब सिपाही शेर सिंह ने साधु अभिराम दास को अन्य रामभक्त के साथ आते देखा तो उसने नही रोका। अभिराम दास जी दीवार कूद कर जाने लगे। सिपाही शेर सिंह ने विवादित स्थल के गेट का ताला खोल दिया।अब साधु अभिराम दास जी मूर्ति लेकर अंदर चले गए तथा मूर्ति स्थापित कर दी गई। सिपाही शेर सिंह अपनी ड्यूटी समाप्त होने के बाद उस ड्यूटी देने वाले मुस्लिम सिपाही को जगाता था, परंतु उस दिन सिपाही शेर सिंह 12 बजे के स्थान पर एक बजे तक ड्यूटी पर रहा।एक बजे सिपाही शेर सिंह ने मुस्लिम सिपाही को जाकर उठाया।जब वह सिपाही ड्यूटी पर पहुंचा तो उस समय राम लला की चांदी की मूर्ति चमक रही थी। सिपाही ने शोर मचाया।रामलला प्रकट हो चुकै थे। सिपाही ने मूर्ति स्थापित करते किसी को नही देखा था।सब जगह शौर मच गया।लोग परिसर में एकत्रित होनै लगे। कलेक्टर नायर व सिटी मजिस्ट्रेट गुरूदत्त सिंह ने अपने वरिष्ठ अधिकारियों को तब तक सूचना नही दी,जब तक परिसर में 15000 के करीब लोग इकट्ठे नही हुए।
भारत के गृहमंत्रालय ने प्रदेश को आदेशित किया कि मूर्ति हटा दी जाय। प्रदेश के गृहमंत्रालय ने कलेक्टर नायर को आदेश दिया कि मूर्ति हटा दी जाय। परंतु नायर साहब व गुरुदत्त सिंह ने रिपोर्ट भेज दी कि मूर्ति हटाना सम्भव नही है,खून खराबा हो सकता है। सरकार चाहै तो उनको बर्खास्त कर दे।
न्यायालय के आदेश पर जहां मूर्ति रखी थी, उसके चारो ओर लोहे का जाल लगाकर ताला लगा दिया गया,चार पुजारी रोज राम लला की पूजा करते रहने की अनुमति भी न्यायलय ने दे दी। मुकदमे चलने शुरू हो गये।
सन् 1952 में जनसंघ बना।जनसंघ पार्टी से फैजाबाद के कलेक्टर रहें श्री नायर व उनकी पत्नी तथा सिटी मजिस्ट्रेट रहें गुरूदत्त सिंह सांसद व विधायक बने।
आगे चलकर प्रधानमंत्री राजीव गांधी के समय ताला खुलने का आदेश कोर्ट ने दिया, मंदिर का शिलान्यास भी हुआ। परंतु फिर सरकार बेकफुट पर आ गई। कुछ समय बाद वीपी सिंह जी प्रधानमंत्री बने। मुलायम सिंह यादव जी प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। मुलायम सिंह यादव जी ने ही शंकराचार्य श्री स्वरुपानंद जी को अयोध्या जाते समय गिरफ्तार कर लिया। आडवाणी जी ने रथ यात्रा प्रारंभ कर दी, बिहार के मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने आडवाणी जी को गिरफ्तार कर लिया। अयोध्या में अशोक सिंघल जी के नेतृत्व में कार सेवा प्रारंभ करने का प्रयास किया गया, जिसमें प्रदेश सरकार ने बल प्रयोग कर 11 कारसेवकों को मार डाला। अशोक सिंघल जी भी घायल हो गए।
अगले चुनाव में राज्य में भाजपा की सरकार बनी। कल्याण सिंह जी मुख्यमंत्री बने। केंद्र में कांग्रेस की नरसिंहा राव की सरकार थी। पुनः कार सेवा प्रारंभ हुई। रामभक्तो ने विवादित ढांचे को समाप्त कर दिया। मुख्यमंत्री कल्याण सिंह जी ने स्तीफा दे दिया।भाजपा की तीन प्रदेश में चल रही सरकार को प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने बर्खास्त कर दिया। उत्तर प्रदेश सहित चार सरकार भाजपा की राम काज के लिए बलिदान हो गई।
मुकदमा हाई कोर्ट, फिर सुप्रीम कोर्ट में चला। वर्तमान शंकराचार्य श्री स्वरुपानंद जी के प्रतिनिधि के रूप में वर्तमान शंकराचार्य जी अविमुक्तेश्वरानंद जी तथा शंकराचार्य रामभद्राचार्य जी की गवाही हुई। प्रधानमंत्री वीपी सिंह व चंद्र शेखर जी के समय अयोध्या के ओएसडी रहे अधिकारी कुणाल कुमार की अयोध्या के ऊपर लिखी थिसिस बडी काम आई। शंकराचार्य जी के वकील पी एन मिश्रा जी ने जोरदार बहस की। परिणाम स्वरूप राम जन्म भूमि का मुकदमा हिंदू पक्ष जीत गया। विद्वान न्यायधीश ने यह तर्क दिया कि हिंदू पक्ष सही था, परंतु जबरन मूर्त
रखने तथा मस्जिद का ढांचा गिराने के कारण मुस्लिम समाज की भावना आहत हुई हैं। इसलिए पांच एकड़ जमीन मुस्लिम पक्ष को मस्जिद बनाने के लिए दे दी गई।
राम मंदिर बनने का मार्ग साफ हो गया।
5 अगस्त सन् 2020 को रामलला के भव्य मंदिर का शिलान्यास किया गया।
देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी 22 जनवरी सन् 2024 को मंदिर में मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा कर रहे हैं।
इस लम्बे संघर्ष में संघर्षरत रहें व बलिदान हुए,सभी राम भक्तों को शत् शत् नमन।
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