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कविता

करो लक्ष्य की साधना,

दोहे

अपने अपने ना रहे, क्यों करता है मलाल ?
तंज कसें दिल तोड़ते, हर घर का यही हाल ।।1।।

तीर खाकर देखना, तू पीछे की ओर।
अपने ही आते नजर , तेरे चारों ओर।। 2।।

करो लक्ष्य की साधना, मत देखो संसार।
जिसने साधा लक्ष्य को, हो गया भव से पार ।।3।।

दिल में उभरे टीस तो, लगा पिया के देश।
सुन लेगा जब पीव तो काटे सकल क्लेश।। 4।।

कांव – कांव कौवा करे, देता एक संदेश।
छोड़ जगत का आसरा, जानो अपना देश।।5।।

सच्चा मीत भुलाय के , रहा जगत में खोज।
मीत मिला नहीं एक भी जीवन घटता रोज।।6।।

धन बढ़ा – यौवन चढ़ा, तोड़ीं सभी मियाद।
काल पड़े भुवि लेटना, करे ना कोई याद ।। 7।।

भुजा मानिए भ्रात को, करो सदा सम्मान।
अपमान किया लंकेश ने, कर लिया कुल का नाश।।8।।

जो बीत गई सो बीत गई, मत कर उसको याद।
घाव कुरेदे से बढ़े, लगती तन में आग।। 9।।

जब लिया जन्म संसार में, सपने बुने हजार।
सपने – सपने ही रहे, जहमत मिलीं हजार।। 10।।

डॉ राकेश कुमार आर्य संपादक उगता भारत

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