Categories
उगता भारत न्यूज़

अपने भ्रष्टाचार को छिपाने के लिए जिलाधिकारी गौतम बुद्ध नगर को जिम्मेदार ठहराते हैं एसडीएम दादरी आलोक कुमार गुप्ता

दादरी। किसी भी वाद में जब कोई प्रार्थना पत्र निस्तारण हेतु लगाया जाता है तो पहले उसी का निस्तारण किया जाता है, परंतु एसडीएम दादरी आलोक कुमार गुप्ता कानून और प्रक्रिया की धज्जियां उड़ाने के लिए मशहूर है। एक मुकदमे में पोषणीयता का प्रार्थना पत्र इस अधिकारी के न्यायालय में दिया गया। स्पष्ट है कि पोषणीयता के प्रार्थना पत्र को निस्तारित करने के पश्चात पक्षों को आपत्ति प्रति आपत्ति और साक्ष्य का अवसर दिया जाना प्रक्रिया का एक आवश्यक अंग होता है। पर बिना इस प्रकार के प्रोसीजर को अपनाए मुकदमे में अंतिम आदेश पारित कर दिए गए। किसी भी पक्ष से मोटी रकम लेकर आदेश करने की कलाकारी इस अधिकारी के पास विशेष रूप से है। जब कोई न्याय मांगने वाला व्यक्ति अपना न्याय पूर्ण पक्ष सुनाता है तो खुल्लम-खुल्ला कह देते हैं कि मुझ पर जिलाधिकारी गौतम बुद्ध नगर का दबाव है। दूसरी पार्टी जिलाधिकारी गौतम बुद्ध नगर से मिल चुकी है और उनका फोन मुझे आ चुका है कि इसमें आर्डर किस प्रकार करना है।
इस अधिकारी के द्वारा इस प्रकार के अनेक मामले अपने कार्यकाल में निस्तारित किए गए हैं। धारा 24 के प्रकरण में एक पक्ष से मोटी रकम लेकर वाद उसके हक में कर दिया गया। दूसरी बार दूसरी पार्टी से अच्छी रकम लेकर रेस्टोरेशन डलवाई गई, फिर पहली पार्टी का दबाव बना और रेस्टोरेशन खारिज कर दी। जबकि पहले पार्टी के पास पहले ही अपने खेत में कई बीघा क्षेत्रफल फालतू है। यह काम भी जिलाधिकारी गौतम बुद्ध नगर की ओट लेकर कर दिया गया। इस प्रकार जिलाधिकारी गौतम बुद्ध नगर को बदनाम करते हुए उप जिलाधिकारी दादरी श्री आलोक कुमार गुप्ता शिकार खेलते रहते हैं।
धूम मानिकपुर में इस अधिकारी के द्वारा पूर्व में बहुत बड़ा खेल खेला गया। एक पार्टी से अच्छी रकम लेकर दूसरी पार्टी की आबादी की भूमि की दीवार को गिरवा दिया गया । वहां पर 8 फीट की चकरोड़ थी अब मौके पर 24 फीट की चकरोड इस अधिकारी के द्वारा स्थापित करवा दी गई ।जिसमें पूर्व जिलाधिकारी की आड़ ली गई। मौके पर पीड़ित पक्ष की दीवार अभी भी गिरी हुई पड़ी है उसका साहस नहीं हो पा रहा कि वह उस चारदीवारी को भी पूरा कर ले।
ग्राम इलाहाबास में एक व्यक्ति से मोटी रकम लेकर ग्राम सभा और अथॉरिटी की जमीन पर अवैध कब्जा करवाया गया है। जिसमें न्यायालय में कितनी ही बार इस बात की एप्लीकेशन दी गई कि इसमें स्थगन आदेश पारित किया जाए और निर्माण कार्य से पक्षों को रोका जाए, परंतु ऐसा नहीं किया गया। इस जमीन की बाबत दो वाद न्यायालय में विचाराधीन हैं। दोनों पत्रावलियों को डीजीसी सिविल के लिए भेज दिया गया है। जबकि डीजीसी सिविल का इस प्रकरण में कोई हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए, परंतु रकम को कैसे पचाया जाए, बस अब सारा खेल इस पर केंद्रित है।
सभी पीड़ित पक्षों ने अब जिलाधिकारी का घेराव करने का निर्णय लिया है। ज्ञात रहे कि इस अधिकारी के विरुद्ध पूर्व में मंत्री के सामने भी अधिवक्ताओं ने अपने शिकायतें की थी पर उसके उपरांत भी अपनी मोनोपोली को जारी रखे हुए हैं। अब जिलाधिकारी ही इस बात का निर्णय करेंगे कि इसके भ्रष्टाचार को उनका संरक्षण और आशीर्वाद प्राप्त है या फिर यह अधिकारी अपने आप ही ऐसे कार्य कर रहा है।

Comment:Cancel reply

Exit mobile version