अमन : दादाजी! आजकल विज्ञान का जमाना है। आपके जमाने में बिजली नहीं होती थी तो लोग काम करने, पढ़ने – लिखने के लिए कितने तंग होते होंगे ?
दादाजी : बेटे ! जमाना तो विज्ञान का है पर हमारे समय में भी लोग घी तेल के चिराग की रोशनी में बड़े आराम से पढ़ लिख लिया करते थे।
अमन: दादाजी ! आपके जमाने से पहले कभी वह समय भी रहा होगा जब लोग घुप्प अंधेरे में रहा करते होंगे ?
दादाजी : आज मैं तुम्हें पते की बात बताता हूं बेटा । जिसे तुम आज के विज्ञान की खोज कहते हो उसे तो हमारे अगस्त्य नाम के ऋषि ने अब से हजारों लाखों साल पहले खोज लिया था।
हमारा देश दुनिया का सबसे पुराना देश है। यहां पर अनेक ऐसे ऋषि वैज्ञानिक हुए हैं, जिन्होंने अनेक प्रकार की खोज और आविष्कार किए हैं। उन्हीं में से एक अगस्त्य ऋषि हैं।
अमन : दादाजी ! उन्होंने बिजली की खोज कैसे की ?
दादाजी : बेटा ! हमारे यहां वेदों में सारा ज्ञान विज्ञान मिलता है। वेदों में ज्ञान विज्ञान की वह तमाम बातें हैं जिन्हें आज का विज्ञान खोज रहा है या आने वाले समय में खोजेगा। वास्तव में वेदों के मंत्र बीज रूप में रखे गए हैं। उन्हें जो पहचान लेता है या समझ लेता है वह ही बड़े-बड़े चमत्कार कर दिखाता है।
अमन : पर दादाजी, इस बात का कोई प्रमाण तो नहीं मिलता कि बिजली की खोज ऋषि अगस्त्य ने की थी ?
दादाजी : बेटे ! इस बात का प्रमाण आज भी मिलता है। ऋषि अगस्त्य बड़े ऊंचे विद्वान थे। उन्होंने ‘अगस्त्य संहिता’ नाम के ग्रंथ की रचना की थी, जो आज भी मिलता है। उसमें बिजली बनाने और उसे तार के माध्यम से दूर तक पहुंचाने की सारी बातें मिलती हैं। जिससे पता चलता है कि हमारे ऋषि महात्मा बड़े ऊंचे वैज्ञानिक हुआ करते थे।
अमन : दादा जी ! आपने तो मेरी आंखें खोल दीं। मुझे सचमुच इस बात का गर्व होता है कि हम भारत जैसे देश में जन्मे हैं, जहां पर ऐसे ऐसे ऊंचे वैज्ञानिक ऋषि महात्मा हुए हैं जिनकी वैज्ञानिक बुद्धि के सामने आज का विज्ञान भी झुकता है।
डॉ राकेश कुमार आर्य
दयानंद स्ट्रीट, सत्यराज भवन, (महर्षि दयानंद वाटिका के पास)
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