श्रीरामजन्मभूमि मंदिर की रक्षा के लिए लाखों ने बलिदान दिए
अतिवीर जैन – विभूति फीचर्स
तेईस मार्च 1928 ई. को मीरबांकी ने बादशाह बाबर के आदेश पर श्री राम मंदिर को तोपों से भूमिसात कर दिया। और उसके बाद उसी जगह पर मस्जिद का निर्माण प्रारंभ किया। इतिहास लेखक कनिंघम ने लिखा है कि जन्म भूमि के मंदिर को गिराये जाने के समय हिंदुओं ने अपनी जान की बाजी लगा दी थी और 1,73,000 हिंदुओं की लाशें गिर जाने के पश्चात् ही मीरबांकी मंदिर को तोप से गिराने में सफल हो सका था।
बाबर के हुकुमनामे में साफ तौर पर कहा गया था कि राम जन्मभूमि मंदिर को गिराकर उसकी जगह उसी के मलबे और मसाले से मस्जिद बनाई जाए। जब मीरबांकी ने मंदिर के मलवे और मसाले से ही मस्जिद का निर्माण प्रारंभ किया तो दीवारें अपने आप गिरने लगी। परेशान मीरबांकी ने बाबर को लिखकर भेजा- मंदिर को भूमिसात करने के पश्चात उसके ही मलबे और मसाले से जब से मस्जिद का निर्माण प्रारंभ हुआ है, दीवारें अपने आप गिर जाती हैं। दिन भर में जितनी दीवारें बनकर तैयार होती हैं। शाम को न जाने कैसे गिर पड़ती हैं? महीनों से यह खेल चल रहा है। तलवारों के साए में भी दीवारों के गिरने का यह क्रम अबाध गति से चल रहा था। तुजुक बाबरी में एक स्थान पर बाबर ने स्वयं लिखा है कि- मीरबाकी ने मेरे पास खत लिखा है कि अयोध्या के राम जन्मभूमि मंदिर को मिसमार करके जो मस्जिद तामीर की जा रही है, इसकी दीवारें शाम को आप से आप गिर जाती हैं।
इस पर मैंने खुद सारी बातें अपनी आंखों से देखी और चंद हिंदू औलियाऔ, फकीरों को बुलाकर य़ह मसला उनके सामने रखा , इस पर उन लोगों ने कई दिनों तक गौर करने के बाद मस्जिद में चंद तरमीमें करने की राय दी। जिसमें पांच खास बातें थी। यानी मस्जिद का नाम सीता पाक (रसोई) रखा जाए। परिक्रमा ना बनाई जाए। सदर गुंबद के दरवाजे में लकड़ी लगा दी जाए। मीनारें गिरा दी जाए और हिंदू महात्माओं को भजन पाठ करने दिया जाए। उनकी राय मैंने मान ली, तब जाकर मस्जिद तैयार हो सकी। हिंदू साधुओं के सुझाव पर मस्जिद के चारों ओर की मीनार गिरवा दी गई , ताकि उसका मस्जिद स्वरूप बदल जाए। द्वार पर फारसी में श्री सीता पाक लिखवा दिया गया। हिंदुओं को नित्य पूजा पाठ की इजाजत दी गई। साथ ही लकड़ी लगाकर द्वारा में ही परिवर्तन कर दिया गया। इस प्रकार बिना मीनारों की मस्जिद तो बनी पर मस्जिद के रूप मे नहीं। महाराज महताब सिंह भीटी के महाराज थे। राम मन्दिर गिराए जाने का समाचार सुनकर बद्रीनाथ की यात्रा छोडकर अपनी अस्सी हजार सेना के साथ अयोध्या की और बढ़े। मीरबांकी की सेना लगभग पौने दो लाख थी।
भयंकर युद्ध में मीरबांकी की तीन चौथाई सेना काट डाली गई। राम जन्मभूमि की रक्षा हेतु मुगलों से प्रतिरोध का यह प्रथम युद्ध था। महाराजा महताब सिंह और देवी दीन पांडे के बाद हंसवर नरेश रणविजय सिंह, रानी जयराजकुमारी और स्वामी महेशआनंद आदि लगातार अयोध्या पर आक्रमण करते रहे और मुगलों से लोहा लेते रहे।
अंत में महारानी जयकुमारी और स्वामी महेश्वरानंद ने अयोध्या को मुगलों से मुक्त करा लिया था। राम मंदिर गिराने के बाद य़ह अयोध्या की प्रथम मुक्ति थी। जो दिसम्बर 1530 में मिली थी।
इसके बाद भी मुगलों का अयोध्या पर बार-बार आक्रमण जारी रहा। और जन्मभूमि कभी हिंदुओं द्वारा मुक्त करा ली गई तो कभी मुगलों के अधिकार में चली गई। अयोध्या मुक्ति के लिए हुए लगातार युद्धों में लगभग पांच लाख ने वीर हिंदुओं ने अपना सर्वस्व बलिदान किया। (विभूति फीचर्स) (लेखक पूर्व उपनिदेशक, रक्षा मंत्रालय हैं)
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