देवोदानाद्वा दिपनाद्वा द्योतनाद्वा द्युस्थानो भवतीति देवता | यो देवः सा देवता ||
तो आप लोगों ने यह देख लिया देवता की परिभाषा क्या है |
देवता कोई आकाश से नहीं गिरते और न ही जमीन के अन्दर से निकलते, ये देवत्व के गुण जिनमे हों उन्हें देवता कहा जाता है |
मेरे जीवन में इन चालीस वर्षों के कार्यकाल में ऐसे ही एक देवता से साक्षात्कार हुआ जिनमें मैंने ये देवत्व के सारे गुण देखे विशेषकर वह न आर्यसमाजी हैं और न किसी आर्यसमाज से उनका संपर्क लेकिन माता पिता के दिए हुए संस्कारों से वो वैदिक परम्परा से जुड़ी हैं | जितनी प्रशंसा लिखू उनके लिए वह बहुत कम है मैं पूरी बात बताना नहीं चाहता अकलमंदों के लिए इशारा काफी है | जबकि उनका परिवार अवैदिक विचारों वाला है तथापि इन्हें वैदिक विचारों से अति लगाव है जो मैंने अपने आँखों से देखा और पाया |
इनकी सेवाभाव विद्वानों के प्रति आदर सत्कार सम्मान इतना है के बहुत आर्यसमाजी परिवारों में भी देखने को नहीं मिलता | जिस बहन का नाम उन्नति गुप्ता है |
ऐसा ही देवत्व के काम करने वाले को मैं पाया चेन्नई आर्यसमाज के माननीय मंत्री पीयूष आर्य जी को | इन्होने अपने आर्यसमाज में तीन मास के लिए वैदिक पुरोहित प्रशिक्षण शिविर रखा है जिसमें कोई शुल्क नहीं है उन शिविरार्थियों के भोजन और आवासीय व्यवस्था करते हुए भी उन शिविरार्थियों को सहायता राशी भी दे रहे हैं |
साथ ही मैं पीयूष जी का एक बहुत बड़ा काम देखा, वो है उनके विद्यालय में उनका निजी सिलेबस तैयार किया है जो प्राइमरी सेक्शन से लेकर उच्चस्तरीय विद्यार्थियों के लिए चरित्र निर्माण की शिक्षा दी जा रही है | आर्यसमाज के पास जितने भी विद्यालय और शिक्षा संस्थान है कहीं पर भी ऐसा काम नहीं हुआ और न ही रहा है , जो पीयूष जी ने अपने डी. ए. वी. स्कूल के द्वारा बच्चों को सिखा रहे है | आर्यसमाज में जितने भी शिक्षा संस्थान है उनके संचालकों को चाहिए माननीय पीयूष जी से प्रेरणा लें, और उनके द्वारा चलाई व्यवस्था को अपनी संस्थानों में लागू करें ।जिससे ऋषि दयानन्द का सपना साकार किया जा सके | क्योंकि ऋषि दयानन्द ने चरित्र निर्माण की बात अपने अमर ग्रन्थ सत्यार्थ प्रकाश में की है, जिसे चरितार्थ कर रहे हैं चेन्नई आर्यसमाज के मंत्री माननीय पीयूष आर्य जी | एक बहुत लंबे प्रकरण को संक्षेप में लिखा हूँ |
महेन्द्रपाल आर्य =14/1/23 आज ही के दिन पिछले साल लिखा था ।
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