आर्य समाज हिंदू विरोधी नहीं |*
क्योंकि, आर्य समाज ये नहीं मानता कि,
श्रीकृष्ण
माखन चोर थे, गौएँ चुराते थे , गोपियों संग रास रचाते थे, राधा संग प्रेम प्रसंग में लिप्त थे, कुब्जा दासी से समागम किए थे और ईश्वर का अवतार थे ।
बल्कि ये मानता है कि,
वे जन्म से लेकर ४८ वर्ष तक ब्रह्मचारी थे, एक रुक्मणी से विवाह करके भी उसके साथ विष्णु पर्वत पर उपमन्यु ऋषि के आश्रम में १२ वर्ष तप करके अपने समान तेजस्वी पुत्र प्रद्युम्न को पैदा किया, योगेश्वर होने से वे नित्य ईश्वरोपासना, प्राणायाम, संध्या, अग्निहोत्र आदि करते थे, अनेकों प्रकार की युद्ध कलाओं में दक्ष थे, उनका प्रिय शस्त्र सुदर्शन चक्र था, महान विचारक थे, अद्वितीय योद्धा थे, भारतवर्ष के समस्त गणराज्यों को यादवों के संघर्ष तले एक करने वाले महान राजनीतिज्ञ थे ।
तो ऐसा मानने से आर्य समाज हिंदू विरोधी कैसे ?
आर्य समाज रामचरितमानस के आधार पर ये नहीं मानता कि,
हनुमान बंदरमुखी थे, उन्होंने पूँछ से लंका दहन किया ।
बल्कि वाल्मिकी रामायण के आधार पर ये मानता है कि,
हनुमान जी दक्षिण भारत की क्षत्रिय शाखा जो वन में बसती है, उसमें से अखंड ब्रह्मचारी, महाबली, व्याकरण के धुरंधर विद्वान, वेदों के ज्ञाता थे ।
तो ऐसा मानने से आर्य समाज हिंदू विरोधी कैसे ?
आर्य समाज गरुड़, अग्नि, ब्रह्मवैवर्त, मार्कण्डेय, भागवत आदि १८ नवीन पुराणों को नहीं मानता क्योंकि इनमें परस्पर विरोधाभास, देवी देवताओं के बारे में अभद्र अश्लील कथाएँ
वर्णित हैं, अपने अपने देवों की स्तुति और अन्यों की निंदा है, जिन्हें व्यासकृत माना जाता है | जबकी वे पक्षपातियों के द्वारा समय समय पर रचे हुए कपोल कल्पित ग्रंथ हैं ।
बल्कि आर्यसमाज मानता है कि, चारों वेदों के चार ब्राह्मणग्रंथ (ऐतरेय, तैत्तरीय, शतपथ, गोपथ) को ही पुराण कहते हैं | जिनमें आश्वलायन, याज्ञवल्क्य, जैमीनि आदि ऋषियों का प्रमाणिक इतिहास है ।
तो ऐसा मानने से आर्य समाज हिंदू विरोधी कैसे ?
आर्य समाज ये नहीं मानता कि, हिंदुओं के सारे संस्कृत शास्त्र प्रमाणिक हैं ।
बल्कि मानता है कि,
केवल वेद और वेद के सिद्धांतों के अनुकूल चलने वाले ग्रंथ (दर्शन, उपनिषद्, अरण्यक, वेदांग, रामायण, मनुस्मृति, महाभारत, कौटिल्य अर्थशास्त्र) आदि ही प्रमाणिक हैं ।
तो ऐसा मानने से आर्य समाज हिंदू विरोधी कैसे ?
आर्य समाज ये नहीं मानता कि,
शिवलिंग पर दूध चढ़ाने से, मूर्ति के आगे माथा टेकने से, धूप अगरबत्ती करने से, मूर्ति को भोग लगाने से, कपड़े पहनाने से, ढोल बाजे बजाने से, और नाचने आदि अँधविश्वास से ईश्वर की भक्ति होती है ।
बल्कि ये मानता है कि,
पतंजलि ऋषि के योगशास्त्र की उपासना विधि (यम-नियम पालन, प्राणायाम, प्रणवजप, ध्यान आदि) से ही निराकार सर्वव्यापक परमेश्वर की उपासना होती है |इसी विधि से हमारे पूर्वज ऋषि, मुनि, दुर्गा, राम, कृष्ण, सीता, सावित्री, शिव, हनुमान आदि उपासना किया करते थे ।
अत: हमें भी ऐसे ही करनी चाहिए ।
तो ऐसा मानने से आर्य समाज हिंदू विरोधी कैसे ?
आर्य समाज ये नहीं मानता कि,
तीर्थ यात्राएँ करने से, गंगा स्नान से, पंडे पुजारियों को दान देने से,
व्यर्थ के पाखंड करके धन, समय, ऊर्जा, आदि व्यर्थ करने से
मनोकामना पूरी होती है ।
बल्कि ये मानता है कि,
ऋषि परम्परा के अनुसार घर में हवन (अग्निहोत्र) करने से ३३ कोटी देव {११ रुद्र, ८ वसु, १२ आदित्य मास, इन्द्र (विद्युत और प्रजाति)} की पुष्टि होती है, जिससे कि वृष्टि आदि समय पर होकर औषधीयों का पोषण होता है, फल फूल शाक सब्जी अन्न आदि की वृद्धि और शुद्धता होती है, यज्ञ करने से हज़ारों मनुष्यों का उपकार होता है जैसा कि गीता में भी कहा है |
तो ऐसा मानने से आर्य समाज हिंदू विरोधी कैसे ?
आर्य समाज ये नहीं मानता कि,
मृतक का श्राद्ध करने से, पंडों का पेट भरने से, अस्थियाँ गंगा में बहाने आदि से मृतक की आत्मा को शान्ति मिलती है ।
बल्कि ये मानता है कि,
व्यक्ति अपने किये कर्मों का स्वयं उत्तरदायी है, शव का दाह संस्कार (नरमेध यज्ञ) करने के बाद घर में वायु शुद्धि हेतु हवन करवाना चाहिये, उसके बाद मृतक की अस्थियों को जल में डालने के बजाए किसी खेत में खाद के रूप में प्रयोग करना चाहिये, इसके बाद मृतक के लिये शेष कुछ भी न करना चाहिए ।
तो ऐसा मानने से आर्य समाज हिंदू विरोधी कैसे ?
आर्य समाज ये नहीं चाहता कि, करोड़ों, अरबों, खरबों का धन मंदिरों में दान देकर उसे व्यर्थ किया जाये | और न ही ये चाहता है कि उस धन का ७०% भाग मस्जिदों और चर्चों पर खर्च हो ।
बल्कि ये चाहता है कि,
इसी अपार धन से हम वैदिक गुरुकुल, संस्कृत पाठशालाएँ, वैदिक विज्ञान पर शोध हेतु प्रयोगशालाएँ खोलें । जिससे कि हमारा देश शीघ्रता से संस्कृत राष्ट्र बनने की ओर अग्रसर हो और वही वैदिक आर्यावर्त देश बने, अनाथाश्रम आदि खोले जायें, जिससे कि हिंदू बच्चे मदरसों और कानवेंट आदि में न जाकर मुसलमान व ईसाई होने से बचें ।
तो ऐसा मानने से आर्य समाज हिंदू विरोधी कैसे ?
आर्य समाज ये नहीं चाहता कि, खोखले लोकतंत्र के आधार पर राजनैतिक पार्टियाँ हिंदूओं को जाति में तोड़कर वोट लेती रहें
और समुदाय विशेष का पोषण करती रहे और बेचारे हिंदू केवल झंडा उठाकर हिंदू राष्ट्र का स्वप्न मात्र ही देखता रहे और ये स्वार्थी नेता हिंदुओं को बरगलाकर वोट लेते रहें और शोषण करते रहें ।
बल्कि ये चाहता है कि लोकतंत्र जैसे भ्रष्टतंत्र को उखाड़कर मनुस्मृति के आधार पर राजतंत्र
स्थापित किया जाये और वैदिक शासन स्थापित किया जा सके | ताकि हमारा राजा पूरी पृथ्वी को एक छत्र वैदिक गणराज्य में लाकर युधिष्ठिर, विक्रमादित्य के समान वैदिक चक्रवर्ती राज्य स्थापित करे और राजसूय यज्ञ करे ।
तो ऐसा मानने से आर्य समाज हिंदू विरोधी कैसे ?
आर्य समाज विवेकानंद और उसके रामकृष्ण मठ की सेकुलर विचारधारा को नहीं मानता ।
आर्य समाज नहीं मानता कि,
माँस खाने वाला और दूसरों को माँस खाने का सुझाव देने वाला विवेकानंद कोई सन्यासी था,
अमरीका में भाषण देने के सिवाय कभी गौरक्षा पर बात की हो, कभी धर्म परिवर्तन रोकने का प्रयास किया हो, कभी स्वतंत्रता के लिये कुछ किया हो, कभी स्त्री शिक्षा के लिये कुछ किया हो, कभी कानवेंट स्कूल के स्थान पर गुरुकुलीय शिक्षा की बात की हो, कभी किसी मौलवी या पादरी से शास्त्रार्थ करके अपने वैदिक धर्म को श्रेष्ठ सिद्ध किया हो ।
बल्कि आर्यसमाज मानता है कि,
वेद के आधार पर ब्रह्मचर्य, शाकाहार आदि का पालन और प्रचार करने वाले दयानंद जी ने ही हिंदू समाज का उद्धार किया । गौरक्षा हेतु आंदोलन किया, स्त्री शिक्षा आरंभ करवाई, धर्म परिवर्तन को रोक उलटा शुद्धि चक्र चलाया, स्वतंत्रता हेतु युवा तैयार किए, कानवेंट शिक्षा समाप्त कर वैदिक गुरूकुल खोलने का प्रयास किया,
मौलवीयों व पादरीयों से शास्त्रार्थ करके उनको धूल चटाई और हिंदुओं के मुर्दा शरीरों में गर्म रक्त का संचार किया ।
तो ऐसा मानने से आर्य समाज हिंदू विरोधी कैसे ?
आर्यसमाज का सदा विरोध करने वाले तथाकथित सनातनी व पौराणिक हिन्दू उत्तर दें ।
…. फेसबुक से साभार ।