क्या वेदों में ईसा मसीह का वर्णन है?
#डॉविवेकआर्य
समाधान- अनेक विदेशी एवं उनका अंधानुसरण करने वाले भारतीय लेखक वेदों में इतिहास मानते हैं। उनकी इस धारणा के कारण अनेक भ्रम फैल रहे हैं। ऐसा ही एक भ्रम वेदों में इतिहास मानने वाले ईसाई फैला रहे हैं। उनका कहना है कि वेदों में वे ईसा मसीह का वर्णन है।
ईसाई हिन्दुओं को ईसाई बनाने के लिए यह चालाकी करते है और कहते हैं कि वेदों में ईसा मसीह के बारे में भविष्यवाणी कि गयी है। ईसा एक अवतार थे। ईसाई अपनी बात को सिद्ध करने के लिए इस वेदमंत्र का हवाला देते हुए कहते है कि इस वेद मंत्र में ईशावास्यमिदं में ईसा मसीह का वर्णन है।
“ईशावास्यमिदं यत्किंचित जगत्यां जगत “यजुर्वेद -अध्याय 40 मन्त्र 1.
ईसाई इसका अर्थ करते है, कि इस दुनिया में जो कुछ भी है, वह सब ईसा मसीह कि कृपा से है। और वही दुनिया का स्वामी है।
स्वामी दयानन्द इस मन्त्र का मूल अर्थ इस प्रकार से करते है-
जो मनुष्य ईश्वर से डरते हैं कि यह हमको सदा सब और से देखता हैं, यह जगत ईश्वर से व्याप्त और सर्वत्र ईश्वर विद्यमान है। इस प्रकार से अंतर्यामी परमात्मा का निश्चय करके भी अन्याय के आचरण से किसी का कुछ भी द्रव्य ग्रहण नहीं किया चाहते, वे धर्मात्मा होकर इस लोक के सुख और परलोक में मुक्तिरूप सुख को प्राप्त करने सदा आनंद में रहे।
इस मंत्र में ईशा शब्द से सम्पूर्ण ऐश्वर्य से युक्त सर्वशक्तिमान परमेश्वर अर्थ सिद्ध होता है। ईसा मसीह तो सर्वशक्तिमान थे ही नहीं। उन्हें तो सूली पर लटकना पड़ा, दुःख सहना पड़ा, मृत्यु को प्राप्त होना पड़ा। सर्वशक्तिमान ईश्वर मानवीय दुखों से मुक्त है। इसलिए ईसाईयों की यह सोच केवल छल मात्र है।
इसी प्रकार से ईसाई समाज पुरुष सूक्त में वर्णित प्रजापति की तुलना ईसा मसीह से करते है। उनके अनुसार ऋग्वेद के पुरुष सूक्त में जो प्रजापति बताये गए हैं वो वास्तव में ईसा मसीह ही हैं। चेन्नई के ईसाई प्रचारक स्वयं को साधू कहने वाले साधू चेल्लप्पा ने कहा की वेदों में प्रजापति ईसा मसीह के आने का पूर्वानुमान था इसलिए बिना ईसा मसीह के वेदों की ख़ोज अपूर्ण है-
साधू चेल्लप्पा ने अपने लेख में लिखा है –
“Diwali, the festival of lights, is a Christian Festival; Animal Sacrifice is a Christian culture adopted by Hindus and Gayatri Mantra actually glorifies Jesus. The Vedas, the ancient Indian sacred writings had anticipated the coming of Christ to take away the sins of man. They call Him Purusha Prajapati the creator God who would come as a man to offer himself as a sacrifice. Jesus Christ came to fulfill the Vedic quest of the Indian people, because the Vedas are incomplete without Him, just as the Old Testament was fulfilled at the coming of the Messiah”।
अर्थात दीवाली ईसाईयों का त्यौहार है। पशुबलि भी हिन्दुओं ने ईसाईयों से सीखी है। गायत्री मंत्र में ईसा मसीह का गुणगान है। वेदों में ईसा मसीह के आने का वर्णन है जो पापों को क्षमा करने वाला है। ईसा मसीह को पुरुष प्रजापति , जो सृष्टि का रचीयता है और जो अपना बलिदान देने आएगा के नाम से पुकारा गया है। ईसा मसीह के बिना वेद अधूरे है। अब ईसा मसीह भारतीयों क्षमा करने आएगा। ठीक वैसे जैसा बाइबिल की पुरानी पुस्तक में उनके आने की भविष्यवाणी है।
समीक्षा- पुरुष सूक्त 16 मन्त्रों का सूक्त है जो चारों वेदों में मामूली अंतर में मिलता हैं। पुरुष सूक्त वर्ण व्यस्था को सिद्ध करने का आधारभूत मंत्र है जिसमे “ब्राह्मणोस्य मुखमासीत” ऋग्वेद 10/90 में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र को शरीर के मुख, भुजा, मध्य भाग और पैरों से उपमा दी गयी हैं। इस उपमा से यह सिद्ध होता है कि जिस प्रकार शरीर के यह चारों अंग मिलकर एक शरीर बनाते है, उसी प्रकार ब्राह्मण आदि चारों वर्ण मिलकर एक समाज बनाते है। इस मंत्र में प्रजापति का अर्थ सब का पालन करने वाला है।
प्रजापति से ईसा मसीह का ग्रहण करना अपरिपक्वता का बोधक है।
मैं वेदों में इतिहास के सम्बन्ध में मैं स्वामी दयानन्द की मान्यता को पूर्णत सत्य, व्यवहारिक, तर्क संगत मानता हूँ। स्वामी दयानन्द ने वेदों में इतिहास होने की मान्यता का खंडन किया। उनका कहना था कि वेद शाश्वत हैं। वेद परमात्मा की नित्य वाणी है। वेदों में सृष्टि रचना, वेद रचना आदि नित्य इतिहास ही हो सकता है, किन्तु किसी व्यक्ति विशेष का इतिहास नहीं हो सकता। इस सृष्टि के आदि में चारों वेद ऋषियों के हृदय में प्रकाशित हुए। वेद ज्ञान का भी दूसरा नाम है। वेदों के माध्यम से ईश्वर द्वारा समस्त मानव जाति को ज्ञान प्रदान किया गया जिससे वह अपनी उत्पत्ति के लक्षय को प्राप्त कर सके। यह ज्ञान ईश्वर द्वारा जिस प्रकार से वर्तमान सृष्टि में प्रदान किया गया उसी प्रकार से पूर्व की सृष्टियों में भी दिया जाता रहा और आगे आने वाली सृष्टियों में भी दिया जायेगा। जिस ज्ञान का उपदेश परमात्मा द्वारा सृष्टि के आरम्भ में मनुष्यों को दिया गया उसमें किसी भी प्रकार का इतिहास नहीं हो सकता। क्यूंकि इतिहास किसी रचना में उससे पूर्वकाल में उत्पन्न मनुष्यों का हुआ करता है। सृष्टि के आरम्भ में जब कोई मनुष्य ही नहीं था फिर उनका किसी भी प्रकार का इतिहास वेदों में पहले से ही वर्णित होना संभव ही नहीं है। मनुष्य का ऐतिहासिक क्रम वेदों की उत्पत्ति के पश्चात ही आरम्भ होता है।
यक्ष प्रश्न यह है कि अगर आप वेदों में इतिहास होना ही स्वीकार नहीं करेंगे तो वेद मन्त्रों के उलटे सीधे अर्थ निकाल कर कोई वेदों में ईसा मसीह होने जैसी भ्रांत मान्यताएं नहीं प्रचारित करेगा। खेद है कि भारतीयों ने स्वामी दयानन्द के इस क्रांतिकारी चिंतन से कुछ भी ग्रहण नहीं किया।