अब यह बात पूरी तरह से स्पष्ट हो चुकी है कि कांग्रेस ने भारत में धर्मनिरपेक्षता (जो कि वास्तव में पंथनिरपेक्षता शब्द है ) का अनुचित अर्थ किया और इसका लाभ देश के अल्पसंख्यकों को देने का भरपूर प्रयास किया। शासन का स्वरूप पंथनिरपेक्ष होना चाहिए । पंथनिरपेक्षता का अर्थ है कि शासन में जो भी लोग बैठे हों, वे किसी का मत, पंथ, संप्रदाय या मजहब देखकर अपनी नीतियों का निर्धारण नहीं करेंगे और ना ही इस आधार पर किसी वर्ग विशेष को कोई अनुचित लाभ देंगे, अपितु वे कानून के समक्ष समानता का दृष्टिकोण अपनाते हुए अपने शुद्ध अंतःकरण से सब के साथ न्याय करने का प्रयास करेंगे । प्राचीन काल से ही भारत के शासक इसी आधार पर शासन करते चले आए हैं। कांग्रेस ने हमारे देश में पहले दिन से धर्मनिरपेक्षता का अर्थ हिंदू विरोध से लिया। वह वोट पाने के मोह में यह भूल गई कि हिंदू विरोध का अर्थ इस देश में ‘राष्ट्र विरोध’ होगा। यही कारण था कि मुसलमानों को संतुष्ट करने के लिए और उनका वोट पाने के लिए कांग्रेस के पहले प्रधानमंत्री पंडित नेहरू ने सोमनाथ मंदिर के जीर्णोद्धार का विरोध किया था। यहां तक कि उस मंदिर के जीर्णोद्धार में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ,गृहमंत्री सरदार पटेल और कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी जैसे बुद्धिजीवियों की सहभागिता को भी अनुचित बताया था।
इसी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए पंडित जवाहरलाल नेहरू की बेटी और देश की तीसरी प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने 7 जनवरी 1967 को दिल्ली में गौ रक्षा आंदोलन में भाग लेते संतों पर गोली चलवा दी थी। उनके लिए गाय हिंदू की श्रद्धा का प्रतीक नहीं थी, बल्कि एक पशु था। इसी बात को कांग्रेस के एक बड़बोले नेता दिग्विजय सिंह आज तक भी कहते हैं कि गाय एक पशु है। उसे हम मां नहीं कह सकते , उसके प्रति हम किसी भी प्रकार की कोई श्रद्धा नहीं रख सकते, उसका मांस खाना किसी भी दृष्टिकोण से बुरा नहीं है।
सोनिया गांधी का हिंदू समाज और उसकी मान्यताओं के प्रति पंडित जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी से भी गया गुजरा चिंतन है। वह अभी तक भी एक शुद्ध सात्विक विचारों वाली भारतीय महिला नहीं बन पाई हैं। साड़ी बांध लेना और टूटी-फूटी हिंदी सीख लेना भारतीय हो जाने का प्रमाण नहीं है। उनके गलत हस्तक्षेप के कारण ही मदर टेरेसा को ‘भारत रत्न’ मिला था। जी हां, यह वही मदर टेरेसा थीं, जिन्होंने पूर्वोत्तर के कई प्रदेशों में ईसाइयों को अपनी धार्मिक गतिविधियां करने के लिए प्रोत्साहित किया और धीरे-धीरे वहां से हिंदू अस्तित्व को मिटाने में भारी सफलता प्राप्त की। हिंदू का इस प्रकार विनाश करवा देना सोनिया गांधी की कांग्रेस का कुसंस्कार बन गया।
राहुल गांधी का निर्माण नेहरू, इंदिरा और सोनिया गांधी के इसी ‘हिंदू विरोधी’ आचरण से हुआ है। जो हिंदू बनना तो चाहते हैं, पर हिंदू बना कैसे जाएगा ?- उन्हें यह अभी तक भी समझ में नहीं आया है। इसलिए वे कभी जनेऊ पहनते हैं, कभी अपने आप को पंडित दिखाते हैं, कभी अपना कोई गोत्र बताते हैं, कभी तिलक लगाते हैं और कभी अपने आप ही अपने किए पर पानी फेर देते हैं। इसलिए देश के लोग उन्हें ‘पप्पू’ से आगे देखने को तैयार ही नहीं हैं।
अब समय है जब सोनिया की कांग्रेस अपने सभी राजनीतिक पूर्वाग्रह से ऊपर उठकर अपने आपको हिंदू सिद्ध करे और वह राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में उपस्थित हो। पर उसके अपने पापकर्मों ने उसे एक अच्छे अवसर का सदुपयोग करने से रोक दिया। सच ही है कि जिस व्यक्ति ने जीवन भर पाप किए हों, वह अंतिम समय में ‘ओ३म’ नाम का स्मरण नहीं कर सकता। अंतिम समय में ‘ओ३म’ नाम का स्मरण वही व्यक्ति कर सकता है जिसने जीवन भर शुभ कर्म किए हों। यदि कांग्रेस राम, राम सेतु और राम के अस्तित्व को लेकर प्रारंभ से ही झूठ ना बोलती , झूठे शपथ पत्र ना देती और देश की आस्था के साथ खिलवाड़ ना करते हुए संविधान सम्मत आचरण कर देश की सामासिक संस्कृति के निर्माण में अपनी सहभागिता सुनिश्चित करती तो आज वह भाजपा से आगे बढ़कर राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में सम्मिलित होती। पर स्वयं कांग्रेस के पापों ने उसे डुबा दिया है।
अब कांग्रेस ने 11 जनवरी 2024 को एक पत्र जारी करके अयोध्या में नवनिर्मित राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा समारोह में जाने से मना कर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, कांग्रेस नेता सोनिया गाँधी, राहुल गाँधी ने इस निमंत्रण को ठुकरा दिया है । इस संबंध में कांग्रेस ने एक पत्र भी जारी किया है। पत्र में लिखा गया है कि “भगवान राम की पूजा-अर्चना करोड़ों भारतीय करते हैं। धर्म मनुष्य का व्यक्तिगत विषय होता आया है, लेकिन बीजेपी और आरएसएस ने वर्षों से अयोध्या में राम मंदिर को एक राजनीतिक परियोजना बना दिया है।”
यह कितना दुर्भाग्य पूर्ण तथ्य है कि कांग्रेस अपने स्थापना काल से लेकर आज तक यह नहीं समझ पाई है कि धर्म मनुष्य की मनुष्य से जोड़ने की चेतना का नाम है ,जो उसे इस लोक में पवित्रतम कार्य करने के लिए प्रेरित करती है और परलोक को सुधारने की सतत प्रेरणा देती रहती है। मजहब के बाहरी चिह्नों को कांग्रेस ने धर्म के साथ जोड़कर मूर्खता की और अपनी इसी मूर्खता को वह पहले दिन से आज तक सींचती चली आ रही है।
कांग्रेस ने भारत के संदर्भ में विदेशी चिंतन को अपनाया। उसने अंग्रेजों द्वारा परिभाषित रिलिजन को ही भारत के शास्त्रों में उल्लेखित धर्म के साथ जोड़कर देखा है। उसकी इस मूर्खता ने देश का भारी अहित किया है।
कांग्रेस के उपरोक्त पत्र के चलते सोशल मीडिया पर 2016 में लिखा गया सोनिया गाँधी का एक अन्य पत्र भी वायरल हो रहा है। यह पत्र सोनिया गाँधी ने वेटिकन के पोप फ्रांसिस को लिखा था, जिसमें भारत में दशकों तक रहीं ईसाई नन मदर टेरेसा के संत घोषित करने की प्रक्रिया से संबंधित था।
इस पत्र में सोनिया गाँधी ने लिखा था कि मदर टेरेसा के संतीकरण से भारत में रहने वाले 2 करोड़ ईसाइयों सहित सभी नागरिक इस बात से बहुत गर्वित और प्रसन्न हैं कि पोप और कैथोलिक चर्च द्वारा मदर टेरेसा की आत्मा की पवित्रता, उद्देश्य की पवित्रता और मानवता की सेवा के माध्यम से ईश्वर की सेवा की। मदर टेरेसा का संत घोषित किया जाने वाला समारोह सभी भारतीयों के लिए उन्हें धन्यवाद देने का अवसर है, क्योंकि उन्होंने भारत में बिताए गए अपने समय में ‘देश के सबसे गरीबों और जरूरतमंदों की सेवा’ की। उन्होंने आगे लिखा है कि टेरेसा ने अपना जीवन निस्वार्थ सेवा में बिताया और हर किसी को उनसे प्रेरणा लेनी चाहिए और सीखना चाहिए कि ‘हमारे रोजमर्रा के जीवन में करुणा और प्रेमपूर्वक रहने और दयालुता कैसे दिखाई जाए’।
सोनिया गाँधी ने भी टेरेसा के संतीकरण के इस पवित्र आयोजन के लिए वेटिकन जाने की इच्छा जताई थी। यह अलग बात है कि वह अपनी बीमारी के कारण इस समारोह में सम्मिलित नहीं हो पाई थीं। विदेशी मूल की सोनिया के लिए विदेशी मूल की मदर टेरेसा के संत होने के कार्यक्रम में सम्मिलित होना इस देश का सौभाग्य था और इस देश के सौभाग्य से गहराई से जुड़े राम मंदिर ,और राम की मर्यादा से जुड़े कार्यक्रम में सम्मिलित होना मजहबी मामला है। सचमुच कांग्रेस के चिंतन और कार्य शैली पर तरस आता है।
डॉ राकेश कुमार आर्य
( लेखक सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता हैं।)
मुख्य संपादक, उगता भारत