श्रीनगर (गढ़वाल), २८ सितम्बर (वार्ता)। कुतुब मीनार का असली नाम ‘विष्णुध्वज’ है। इसका निर्माण सम्राट समुद्र गुप्त ने कराया था न कि कुतुबुद्दीन ए’गक ने, जैसा कि आमतौर पर माना जाता है
बिहार विश्वविढ्यालय के प्रां. डी. त्रिषंदी का दाषा है कि यह मीनार समुद्र गुप्त द्ववारा निर्मित बंधशाला की केन्द्रीय मीनार थी ।
कुतुब मीनार का निर्माण समुद्र गुप्त के पुत्र चन्द्रगुप्त ने पूरा किया था और उसने विष्णुपद पहाड़ी पर एक लोहे का स्तम्भ भी खड़ा किया था चन्द्रगुप्त ने वहां एक पट्टिका भी लगवाई थी जिसमे मीनार का नाम ‘विष्णु ध्वज’ लिखा गया था।
डा. त्रिवेदी के अनुसार चन्द्रगुप्त ने मीनार के चारों ओर २७ मंदिर भी बनवाए थे जो नक्षत्रों का प्रतिनि- धित्व करते थे ।
डा. त्रिवेदी मंगलवार को यहां गढ़वाल विश्वविद्यालय के छात्रों को सम्बोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि कुतुब मीनार पांच डिग्री के कोण पर झुका हुआ है २२ जून को दोपहर में इसकी छाया नहीं पड़ती। यह दिन उत्तरी गांलादर्घ का सबसे बड़ा दिन होता है।
उन्होंने कहा कि हुतुब मीनार ऊंचाई की ओर धीर धीर काम चौड़ा होता चला गया है। इसकी पहली मंजिल में २४ कोने है दूसरी व तीसरी मंजिल में बास्ड कोने है और इतने ही घुमावदार कोने भी है। पे कोनं वर्ष के पत्र- बाड़ों, राशियों तथा महीनों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
मीनार के २७ सुराम १०८ करो तथा इसकी सात मंजिले क्रमशः नक्षत्रों, उनके चाँपाई अंशोए सप्ताह के सात दिनों का प्रतिनि धित्व करके समूचे पंचांग की तस्वीर पेश करते है ।
डा. त्रिवेदी ने बताया कि कुतुब मीनार का निर्माण गणित के अरेस सिद्धान्त के आधार पर किया तथ या । इसके प्रत्येक कोने तथा हुपर के बीच ठीक क्रमशः ३० डिग्री तथा ३५ डिग्री का फासला है ।
त्रिकोण मिति के हिसाब गणना करने पर मीनार की मालिक ऊंचाई ८७.०३ मीटर बैठती है।
बंधशाला के २७ मंदिर ११९२ में नष्ट हो गए थे। इन मंदिसे की सामग्री से निकट ही एक मस्जिद बनाई गई बाद में इमजद को कतुमतुल इस्लाम नाम दिया गया।
(सोशल मीडिया से साभार)