आर्य समाज और आरएसएस भाग 1
बात 1920 – 21 की है , जिस समय अंग्रेजी सरकार ने तुर्की के बादशाह को उसके पद से हटा दिया था , जो कि मुस्लिम जगत का खलीफा अर्थात धर्मगुरु था। इसको लेकर भारत के मुसलमानों में आक्रोश था । मुसलमान चाहते थे कि उनके खलीफा का पद यथावत बना रहे और अंग्रेज उसमें किसी प्रकार का हस्तक्षेप न करें । पहली बात तो यह थी कि भारत के मुसलमानों का खलीफा के पद से राष्ट्रहित को पीछे रखकर कोई संबंध नहीं होना चाहिए था। उनके लिए राष्ट्र प्रथम वरीयता पर होना चाहिए था। फिर भी यदि एक बार यह मान भी लिया जाए कि उनका यह अपना निजी विषय था और यदि उनके धर्मगुरु को हटाने का प्रयास अंग्रेज कर रहे थे तो उस पर उनका मुखर होना स्वाभाविक था, तो भी हम कहेंगे कि ऐसी स्थिति में भी भारत का इस घटना से कोई संबंध नहीं था। ‘भारत’ का हित तो केवल भारत था।
गांधी का राजनीति में पदार्पण
समकालीन इतिहास की एक बहुत ही दुखद घटना है कि खलीफा को उसके पद से हटाने से भारत के मुसलमान में बने आक्रोश के उस परिवेश को समर्थन देकर गांधी जी ने भारत की राजनीति में पदार्पण किया । 1921- 22 में गांधी के भारत की राजनीति में पदार्पण करते ही मुस्लिम सांप्रदायिकता देश में हावी हो गई । इस प्रकार गांधी जी का भारतीय राजनीति में पदार्पण करना ही भारतीय राजनीति का दुर्भाग्य था। कहना नहीं होगा कि उनके आगमन से भारत की राजनीति तुष्टिकरण की जिस डगर पर आगे बढ़ी, वह भारत के लिए आगे चलकर बहुत भयानक सिद्ध हुई।
गांधी जी ने खलीफा के पद को फिर से बहाल करने को लेकर ‘खिलाफत आंदोलन ‘ चलाया। जिससे मुस्लिम लोगों ने नागपुर व देश के कई अन्य स्थानों पर सांप्रदायिक दंगे आरंभ कर दिए । तब केरल के मालाबार में हिंदुओं की स्थिति बहुत ही अधिक दयनीय हो गई थी। वहां पर बड़ी संख्या में हिंदुओं की हत्या की गई थी।
मालाबार के हिंदुओं की दशा को देखने के लिए नागपुर के कुछ प्रमुख हिंदू महासभाई नेता डॉक्टर बालकृष्ण शिवराम मुंजे , डॉक्टर हेडगेवार और आर्य समाज के नेता स्वामी श्रद्धानंद वहां गए । ये नेता उस समय हिंदू समाज के स्तंभ थे । इनके वहां जाने का अभिप्राय था कि पूरा हिन्दू समाज ही अपने हिन्दू भाइयों के घावों पर मरहम लगाने के लिए केरल पहुंच गया था। इन नेताओं ने जब हिंदुओं के साथ हुए अत्याचार को अपनी नग्न आंखों से देखा तो इनका ह्रदय द्रवित हो उठा । तब इन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर एक ऐसे संगठन को स्थापित करने की बात सोची जो ऐसे सांप्रदायिक दंगों से देश के हिंदू समाज की रक्षा कर सके।
हिन्दू संगठन बनाने का लिया गया निर्णय
इसके पश्चात डॉ. मुंजे ने तब भारत के कुछ प्रसिद्ध हिन्दू नेताओं की एक बैठक बुलाई । जिनमें डॉ. हेडगेवार व डॉ. परांजपे सम्मिलित थे । इसी बैठक में एक हिंदू संगठन बनाने का निर्णय लिया गया। जिसका उद्देश्य था कि हिंदुओं की रक्षा की जाए और हिंदुस्तान को एक सशक्त हिंदू राष्ट्र बनाने की दिशा में ठोस कार्य किया जाए । इन महान नेताओं का उद्देश्य भारत की प्राचीन संस्कृति को उभारकर लाना और भारत के हिंदुओं में लंबी दासता से आए हुए किसी भी प्रकार के हीनता के भावों को मिटाकर उनमें गर्व और गौरव का भाव जागृत करना था । इस कार्य को आर्य समाज पहले से ही कर रहा था , इसलिए आर्य समाज के नेता स्वामी श्रद्धानंद जी को डॉक्टर मुंजे और हेडगेवार के द्वारा किए जा रहे ऐसे प्रयासों को समर्थन देने में कोई संकोच नहीं हुआ । उन्होंने तुरंत ही आर्य समाज की ओर से अपनी सहमति व्यक्त कर दी । वैसे भी डॉक्टर हेडगेवार के पिता आर्य समाजी पृष्ठभूमि के थे। अतः स्वामी श्रद्धानंद जी को यह भी विश्वास था कि आर्य समाज का राष्ट्रवादी चिंतन ही डॉक्टर मुंजे और डॉक्टर हेडगेवार को प्रभावित करेगा और उस राष्ट्रवाद को आर्य समाज के द्वारा समर्थन देने में किसी प्रकार की कोई आपत्ति नहीं है । इस संगठन को खड़ा करने का दायित्व डॉक्टर मुंजे ने डॉ केशव बलिराम हेडगेवार को दिया । जिन्होंने बड़ी निष्ठा से अपने दायित्वों का पालन किया । तब डॉ केशव बलिराम हेडगेवार ने ‘ हिंदू युवा क्लब ‘ की स्थापना 28 सितंबर 1925 को विजयदशमी के दिन की । कालांतर में यह ‘हिंदू युवा क्लब’ ही ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ बना ।
डॉ राकेश कुमार आर्य
(लेखक की एक क्रांतिकारी संगठन आर्य समाज नामक पुस्तक से)