आत्मा का तो स्वभाव है, शुद्ध बुध्द और मुक्त।

बिखरे मोती

अध्यात्म का अर्थ:-

आत्मा का तो स्वभाव है,
शुद्ध बुध्द और मुक्त।
अध्यात्म का सही अर्थ है,
रहो सत्य से युक्त॥2514॥

तत्त्वार्थ: कवि यहाँ पर इंगित कर रहा है कि आत्मा का स्वभाव शुद्ध है, अर्थात् पवित्र है,निर्मल है, बुद्ध से अभिप्राय है वह ज्ञान- वान है , इसलिए आत्म प्रेरणा मनुष्य को आशातीत ऊंचा उठाती है, मुक्त से अभिप्राय है,वह बन्धन अथवा पराधीनता में नहीं रहना चाहती, वह आत्मगलानी में नहीं अपितु अपनी मस्ती में रहना चाहती है,आनन्द में रहना चाहती है, वह उस चिरन्तन सत्य से सायुज्जता बनाय रखना चाहती है जिसमें आनंद ही आनंद है, सारांश यह है कि मनुष्य काम – क्रोध इत्यादि वाशनाओं में ज्यादा देर तक
नहीं रह सकता से आनन्दता चाहिए उसमें वह सरलता से जीता है। अत: यह सिद्ध हो गया कि अध्यात्म का अर्थ है- “आत्मा का अपने स्वभाव में लौटना, उसमें रमण करना,अवगाहण करना।”

पुण्यों के क्षीण होने पर क्या होता है ?

आत्म बल घटने लगे,
पुण्य होंय जब क्षीण ।
हार गया था भीलो से,
अर्जुन जैसा प्रवीण॥2515॥

सोचो, ‘को अहम’ अर्थात तुम कौन हो, तुम्हारा अस्तित्त्व क्या है ? –

एक सांस की डोर पर,
टिके सभी सम्बन्ध ।
सांस रूकी अस्मि गई,
नकली निकले सम्बन्ध॥2516॥

भावार्थ:- प्राय: प्रभु की अराधना करते समय भाव विभोर होकर यह कहते सुने जाते है, – सो अहम : अर्थात जो तू है, वही मैं भी हूँ, यानी थी मैं- तेरा ही तो प्रतिरूप हूँ बस, तादात्म्य होने की देर है । यहाँ शान्त मन से शान्त चिन्त होकर आत्मचिंतन करना चाहिए और अपने आपसे यह पूछना चाहि की ‘को अहम’ अर्थात मैं कौन हूँ,क्या मैं हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौध जैन हूँ, ब्रह्माण क्षत्रिय, वैश्य अथवा शुद्र हूँ।
अथवा मेरा अस्तित्व सबसे अलग है क्या? कार, बंगला, जमीन, जायदात, बैकं-बैलन्स, नौकर चाकर,सगे – संबंधी,रिश्ते-नाते आदि सभी सुबभ साधन मेरे है क्या ?.
इसके अतिरिक्त यह मुझसे पहले
किसके थे ? कौन इनका स्वामी था ? आदि – आदि।
सारांश यह है कि – ये सारे सम्बन्ध तभी तक जीवित है जब तक प्राण
चल रहे हैं यहाँ तक की जिसे मैं ‘अपना शरीर’ कहता हूँ वह भी मेरा नहीं है क्योंकि जैसे ही प्राण पखेरु उड़ते है आत्मा इस देह का त्याग करती है ‘परलोक’ के लिए पलायन करती है तो संसार के सारे आकर्षण और सम्बन्ध नश्वर हो जाते है, इससे सिध्द होता है कि मैं शरीर नही हूँ, शरीरी हूँ अर्थात अविनाशी आत्मा हूँ जो अजर अमर अनादि है, वास्तव में यही मेरा अस्तित्व है जिसकी सायुज्जता परमपिता परमात्मा से है।
क्रमशः

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