कर्मों का फल प्रदाता परमपिता परमेश्वर ही है

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आचार्य हरिशंकर अग्निहोत्री
(वेद प्रवक्ता)

परमेश्वर ही कर्मों का फल देता है। चूंकि परमेश्वर न्यायकारी है इसीलिए सभी जीवों को सभी कर्मों का फल यथायोग्य अवश्य देता है। कर्म का फल कम या अधिक मिले, ऐसा नहीं होता है। कर्मों का फल न मिले, ऐसा नहीं होता है। किसी भी अनुष्ठान से किये कर्मों के फल पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। अर्थात् कर्मों का फल भोगना ही पड़ेगा। किसी के कर्मों का फल किसी को मिले, ऐसा भी नहीं होता है। परमेश्वर की कर्मफल व्यवस्था को इस चर्चा में समझने का प्रयास करेंगे।

क्लेशमूलः कर्माशयो दृष्टादृष्टजन्मवेदनीयः।
( क्लेश-मूलः ) अविद्यादि क्लेश हैं मूल = कारण जिस कर्म समुदाय के वह ( कर्माशयः ) कर्मसमुदाय ( दृष्ट-अदृष्ट-जन्म-वेदनीयः ) वर्तमान तथा भावी जन्म में भोग्य=फल देने वाला होता है ।
अर्थात् कुछ कर्म ऐसे हैं जिनका फल इसी जन्म में मिलता है और कुछ कर्म ऐसे हैं जिनका फल आगामी जन्म में मिलता है। कुछ कर्मों का फल शीघ्र और कुछ कर्मों का फल विलम्ब से मिलता है। जिन कर्म का फल इस जन्म में मिलता है, उनको दृष्टजन्मवेदनीय कहते हैं और जिन कर्मों का फल आगामी जन्मों में मिलता है, उनको अदृष्टजन्मवेदनीय कहते हैं।

   कर्म समुदाय को कर्माशय कहते हैं। शुभ कर्म समुदाय को पुण्य कर्माशय और अशुभ कर्म समुदाय को पाप कर्माशय कहा जाता है। पुण्य कर्माशय सुख देता है और पाप कर्माशय दुःख देता है। ऋषि पतञ्जलि कहते हैं -

सति मूले तद्विपाको जात्यायुर्भोगाः।
( सति मूले ) अविद्यादि क्लेशों के विद्यमान रहने पर ( तद्-विपाकः ) उस कर्म समुदाय का फल ( जाति-आयुः-भोगाः ) जाति, आयु और भोग होते हैं। अर्थात् कर्माशय ( कर्म समुदाय ) के तीन फल हैं – जाति, आयु, भोग।
जाति = मनुष्य, पशु, पक्षी, कीड़े, मकौड़े आदि का शरीर।
आयु = जन्म से लेकर मरणपर्यन्त काल आयु है।
भोग = भोग शब्द का अर्थ यद्यपि सुख दुःख भी है परन्तु इस प्रसंग में भोग शब्द का अर्थ ‘सुख दुःख प्राप्ति के साधन’ है जैसे धन सम्पत्ति, सोना-चांदी, भोजन-वस्त्र, पुत्र-परिवार आदि।
अदृष्ट जन्म में फल देने वाला कर्माशय ( अदृष्टजन्मवेदनीय ) जाति, आयु, और भोग तीन फलों का कारण होता है।
इस जन्म में फल देने वाला कर्माशय ( दृष्टजन्मवेदनीय ) आयु और भोग दोनों फलों को देने वाला होता है। दृष्टजन्मवेदनीय अर्थात् इस जन्म में फल देने वाला कर्माशय उपर्युक्त रूप से निश्चित फल वाला होता है तथा अदृष्टजन्मवेदनीय कर्माशय निश्चित तथा अनिश्चित दोनों प्रकार के फल देने वाला होता है। जिस कर्म समुदाय का जाति आयु, भोग निश्चित हो जाता है, उसको नियतविपाक और जिसके जाति, आयु, भोग निश्चित नहीं हुये, वह अनियतविपाक है।

अनियतविपाक कर्माशय की तीन गतियाँ मानी जाती हैं।
पहली – कुछ कर्म बहुत लम्बे काल के पश्चात् फल देते हैं, कर्मों की इस गति को व्यासभाष्य में ‘नाश’ के नाम से कहा गया है।
दूसरी – किसी प्रधान कर्म के साथ मिलकर कर्म अपना फल दे देता है।
तीसरी – जब प्रबल कर्म अपना फल देते हैं तो वह कर्म उनके नीचे दवा रहता है और अनुकूल वातावरण आने पर अपना फल देता है।

     वास्तव में कोई भी कर्म बिना फल दिये नष्ट नहीं होता। कर्म और कर्मफल का जानना अति परिश्रमसाध्य है। किस कर्म का क्या, कितना कब, कैसे फल मिलेगा, इसको पूर्णरूपेण ईश्वर ही जान सकता है। आंशिक रूप से मनुष्य भी जान सकता है। आंशिक रूप में जानने से कर्म और कर्मफल पर पूर्ण विश्वास हो जाता है। इससे मनुष्य शुभ कर्मों को श्रद्धापूर्वक करता है और अशुभ कर्मों को छोड़ देता है। शुभ कर्मों के किये बिना अशुभ कर्मों को छोड़ना कठिन है।

ते ह्लादपरितापफलाः पुण्यापुण्यहेतुत्वात्।।
( ते ) वे जाति, आयु और भोग ( ह्लाद-परिताप-फलाः ) सुख और दुःख रूप फल वाले होते हैं ( पुण्य-अपुण्य-हेतुत्वात् ) पुण्य और पाप के कारण उत्पन्न होने से।
वे जाति, आयु और भोग पुण्य और पाप कारणजन्य होने से सुख और दुःख रुप फल वाले होते हैं अर्थात् जिन जाति, आयु, भोग का कारण पुण्य होता है, वे सुख देने वाले होते हैं तथा जिन जाति, आयु, भोगों का कारण पाप होता है, वे दुःख देने वाले होते हैं।

 पुण्य कर्म करने वाले जीवों को विद्वान, धार्मिक सम्पन्न माता-पिता के घर में मनुष्य का जन्म मिलता है। वहां पर जाति, आयु, भोग सुखप्रद होते हैं। अपुण्य कर्म करने वाले जीवों को पशु आदि जन्म मिलता है। वहां जाति, आयु, भोग दुःखप्रद होते हैं।

क्रमशः ……………..

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