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इतिहास के पन्नों से

शिवाजी महाराज का जय सिंह के नाम बाजू फड़काने वाला पत्र

पत्र जो बांह फडका दे !
-अरुण लवानिया
औरंगजेब छत्रपति शिवाजी महाराज से इतना आतंकित था कि शायस्ता खान और अफजल खान के असफल हो जाने के बाद उसने आगरे के महाराज जय सिंह जिनके नाम पर जयपुर बसा है को बरगलाकर तैयार कर लिया कि वो दक्षिण जाकर शिवाजी को बंदी बनाकर या मारकर उसके समक्ष लाये।
शिवाजी ने औरंगजेब की जाल में फंसे अपने एक वीर हिंदू भाई को युध्द के पहले समझाना उचित समझा । इसलिये अपने एक फारसी के विद्वान मुंशी से अपने भाव व्यक्त करते हुये एक पत्र महाराजा जय सिंह के लिये फारसी भाषा में लिखवाया । उस विद्वान ने नज्म यानी पद्य में शिवाजी के भाव लिखे । पत्र में सभी रंग भरे पडे हैं ।जय सिंह के पास पत्र भेज दिया गया। इसका फल यह हुआ कि जो महा भयंकर युध्द और रक्तपात होना था वह टल गया ।
पत्र फारसी में लिखवाने का पहला मकसद था कि औरंगजेब की सेना के लोग इसे खुफिया पत्र ना समझें और यह महाराजा जय सिंह के पास पहुंचा दिया जाये । दूसरा मनोवैज्ञानिक कारण था कि जय सिंह को लगे कि आम हिंदू उसे यवन समझते हैं।
इसपत्र को श्री अमर स्वामी सरस्वती जी ने स्वयं फारसी से हिंदी में पद्य और गद्य दोनों में अनुवादित किया। पूरे पत्र का गद्य अनुवाद नीचे दिया जा रहा है । ध्यान देने की बात ये है कि शिवाजी ने पत्र में बार बार साफतौर पर इस्लाम और हिंदू और मुसलमान शब्दों का इस्तमाल किया है।
शिवाजी का पत्र जय सिंह के नाम !
“हे सरदारों के सरदार ! राजाओं के राजा,भारत उद्यान के माली , व्यवस्थापक ।
हे रामचन्द्र जी के चैतन्य अंश! तुमसे क्षत्रियों की ग्रीवा गौरव से ऊंची है ।
तुमसे बाबर वंश की राज्यलक्ष्मी अधिक प्रबल हो रही है।तुम्हारा भाग्य तुम्हारा सहायक है ।
भाग्य के युवा और बुध्दि के बूढे जयशाह (जय सिंह) शिवा का प्रणाम और आशीर्वाद स्वीकार करिये ।
जगत का जनक तुम्हारा रक्षक हो तथा तुमको धर्म और न्याय का मार्ग दिखलाये ।
मैंने सुना है कि मुझपर आक्रमण करने और दक्षिण देश को जीतने तुम आये हो ।
हिंदुओं के दिल और आंखों के रक्त से तुम संसार में उज्वल मुख हुआ चाहते हो ।
पर तुम नही जानते हो कि इससे मुख काला हो जाता है , इससे देश और धर्म का नाश होता है ।
तुम दम भर अन्तर्मुख होकर सोचो और अपने हाथों और अपने दामन पर नजर डालो ।
तो देखोगे कि यह रंग किसके रक्त का है और लोक और परलोक में यह रंग क्या रंग लाता है ।
यदि आप अपने लिये दक्षिण देश को जीतने आते तो मेरी आंखें और मेरा सिर तुम्हारे मार्ग में बिछौने बन जाते ।
मैं भारी सेना लेकर आपका साथी बन जाता और एक किनारे से लेकर दूसरे किनारे तक सारी भूमि आपको सौंप देता ।
पर तुम औरंगजेब की ओर से आये हो , भोले भक्तों को बहकाने वाले के जाल में फंस कर आये हो ।
मैं नही जानता कि आपके साथ क्या बर्ताव करूं ? यदि मैं आपसे मेल करूं तो यह वीरत्व नहीं है क्योंकि –
वीर पुरूष समय की पूजा नहीं करते हैं, अवसरवादी नहीं बनते हैं , और सिंह कभी लोमडी सी चाल नहीं चलते हैं।
यदि मैं तलवार आदि का प्रयोग करूं तो दोनों ओर हिंदुओं की ही हानि होगी ।
दु:ख है मेरी वह तलवार जो केवल दुश्मनों अर्थात मुसलमानों का ही रुधिर चाटती थी वह आज अपनों पर ही उठने को विवश हो रही है ।
यदि इस युध्द के लिये तुर्क आये होते तो वो यहां के लिये घर बैठे शिकार आये होते ।
पर वह (औरंगजेब) काली करतूतें करने वाला, जिसमें न न्याय है ना धर्म, वह मनुष्य के रुप में राक्षस है ।
जब अफजल खां से उसका कोई भला न हुआ शाइस्ता खां से भी उसने अपना कल्याण न देखा तो –
तुमको हमारे साथ लडने को नियुक्त करता है क्योंकि वह स्वयं हमसे लडने की शक्ति नहीं रखता है
वह चाहता है कि हिंदुओं के समूह में कोई वीर भुजबलशाली रह न जाये ।
सिंह आपस में ही लडकर मर जायें और गीदड ही सिंहों का स्थान ले लें ।
यह गुप्त रहस्य तुम्हारे मस्तिष्क में क्यों नहीं आता है , ऐसा लगता है उसका जादू तुम्हें प्रभावित किये रहता है।
आपने संसार में सब भला और बुरा देखा है , तुमने फुलवाडी से फूल और कांटे सब चुने हैं।
यह न हो कि आप हमसे युध्द करें और दोनों ओर हिंदुओं के सिरों को धूल के नीचे दबा दें।
यह परिपक्व कर्मण्यता अर्थात बुढापे का अनुभव प्राप्त करके लडकपन मत करो और शेखसादी के इस वचन को याद रखो कि-
सिंह हिरनों आदि पर पराक्रम करते हैं परन्तु अपनी जाति के सिंहों पर गृहयुध्द नही करते हैं ।
यदि तेरी काटने वाली तलवार में पानी है और यदि मेरे कूदने वाले घोडे में दम है तो –
तुमको चाहिये कि धर्म के शत्रु पर आक्रमण करो और इस्लाम की जड-मूल खोद डालो ।
अगर देश का सम्राट दारा शिकोह बन गया होता तो हमको भी आनंद होता ।
पर आपने महाराज जोधपुर जसवंत सिंह को धोखा दिया और दिल में कुछ नीचा ऊंचा न सोचा ।
आप लोमडी सी चालें चल-चल कर अभी अघाये नहीं हो और सिंहों के साथ युध्द करने दिलेर बनकर आये हो ।
इस दौड धूप से आपको क्या मिलता है ? आपकी तृष्णा आपको मृगतृष्णा वाले धोखे का जाल दिखलाती है ।
तुम उस पागल मनुष्य की तरह हो जो बडे श्रम से किसी सुंदरी को हाथ में लाता है परन्तु –
उसके सौन्दर्य रूप उपवन से स्वयं कोई फल न लेकर शत्रुओं के लिये उसे अर्पण कर देता है ।
तुम उस नीच की कृपा का क्या अभिमान रखते हो ? जुझारु सिंह के काम का परिणाम जानते हो या नहीं ?
तुम जानते हो कि छत्रसाल , उसके परिवार और उसके बालक पर यह नीच क्या आपत्ति ढाना चाहता था ?
तुम जानते हो कि दूसरे हिंदुओ पर भी उस शत्रु औरगजेब द्वारा क्या क्या अत्याचार हुये हैं ?
मैनें माना कि तुमने उससे सम्बंध जोड लिया है और ऐसाकर तुमने अपने गौरव रूप कुल की मर्यादाओं और लज्जा आदि को भी नष्ट कर दिया ।
पर उस राक्षस से यह संबंध पजामें के नाडे की गांठ से अधिक मजबूत नहीं है ।
वह तो अपने स्वार्थों को पूरा करने करने के लिये अपने भाई के रक्त और अपने बाप के प्राणों को लेने से भी नहीं डरता है ।
यदि तुम राजभक्ति और सच्चे प्रेम की दुहाई दो तो याद करो कि तुमने शाहजहां के साथ कैसा व्यवहार किया ?
यदि परमेश्वर की तरफ से आपको कुछ बुध्दि का भाग मिला है और अपने पुरुषत्व की बढाई मारते हो तो –
अपनी जन्मभूमि के दर्द की आग से अपनी तलवार को तीव्र कर और अत्याचार से पीडितों के आंसुओं से तलवार पर पानी दो ।
यह समय हमारे आपस में लडने का नहीं है क्योंकि हिंदुओं के ऊपर इस समय अति कठिन संकट का समय मंडराया हुआ है ।
हमारी स्त्रियां , हमारे बच्चे , हमारा देश , हमारी सम्पत्ति , हमारी मूर्तियां , हमारे ईष्टदेव और हमारे ईश्वर भक्त –
इन सबको नष्ट करना इस नीच औरंगजेब का मुख्य काम है , इसके द्वारा सब नष्ट हो रहे है और सबपर उसकी घोर आपत्ति आई हुयी है।उनका दु:ख चरम सीमा तक पहुंच गया है।
यदि कुछ दिनों तक उसका यह सर्वनाशकारी कार्य जारी रहा तो हमारा कोई चिन्ह भी भूमि पर शेष नहीं रहेगा ।
बडा आश्चर्य है कि एक मुट्ठी भर मुसलमान हमारे देश पर शासन करते हैं ।
यह उनका प्राबल्य उनकी वीरता से नही है , यदि आपको बुध्दि प्राप्त है तो देखो कि –
वह हमारे साथ क्या शतरंज की सी चालें चलता है और अपने मुंह पर कैसे कैसे रंग रंगता है ?
वह औरंगजेब हमारे पांवों को हमारी ही सांकलों से जकडता है और हमारे सिरों को हमारी ही तलवारों से कटवाता है ।
हमलोगों को परस्पर मिलकर इस समय हिंदियों , हिंद और हिंदू धर्म की रक्षा के लिये भीषण प्रयत्न करना होगा ।
हमें चाहिये कि हम सब परस्पर मिलकर परामर्श करें और कोई विचार निश्चय करके देश को स्वतंत्र कराने के लिये प्रयत्न करें।
अपनी तलवार और अपनी कार्य विधि को पानी दें अर्थात चमकायें । तुर्कों को तुर्की-बतुर्की अर्थात जैसे को तैसा वाला जवाब दें।
यदि जोधपुर महाराजा जसवंत सिंह से आप मिल जाओ और दिल से उस कपटी औरंगजेब के पीछे हाथ धोकर पड जाओ तो तथा –
चारों ओर से आक्रमण करके आप औरंगजेब से युध्द करो , उस सांप के सिर को पत्थर से कुचल डालो ।
कुछ दिनों तक वह अपने परिणाम की चिंता के पेंच में पडा रहे और दक्षिण की ओर अपना जाल न फैलावे ।
मैं इस ओर भाला चलाने में निपुण वीरों को साथ लेकर इन दोनों बीजापुर और गोलकुंडा के बादशाहों का भेजा निकाल डालूं ।
मेघ-बादलों की भांति बरसने वाली सेना से मुसलमानों पर तलवार का पानी बरसाऊं।
दक्षिण देश के तख्ते पटल पर से इस्लाम का नामो निशां धो डालूं ।
इसके बाद कार्यकुशल शूरवीरों , सैनिकों , घुडसवारों और भाला मार सुभटों के साथ-
लहरें लेती हुयी तथा कोलाहल मचाती हुयी नदी की भांति मैं दक्षिण के पहाडों से निकलकर मैदान में आऊं और –
अतिशीघ्र आप लोगों का साथी बनकर उस औरंगजेब से आप लोगों का हिसाब पूछूं , और फिर हम लोग –
चारों ओर से घोर युध्द उपस्थित करें और युध्द का क्षेत्र और युध्द का काल उसके लिये तंग यानी सीमित कर दें ।
हम लोग अपनी सेनाओं की लहरों और तरंगों को दिल्ली में उस नष्ट भ्रष्ट घर राजमहल में पहूंचा दें ।
उसके नाम से न औरंग अर्थात राजसिंहासन रहे और न जेब अर्थात शोभा रहे न अत्याचार करने वाली तलवार रहे और न देश में कहीं छल-कपट का जाल रहे ।
हम लोग युध्द रक्त से भरी हुयी एक नदी बहा दें और उससे अपने पितरों की आत्माओं को पानी देकर उनका तर्पण करें ।
न्याय पारायण प्राणों के उत्पन्न करने वाले ईश्वर की सहायता से हमलोग औरंगजेब का स्थान जमीन के नीचे कब्र में बना दें ।
यह काम बिलकुल कठिन नहीं है ,मात्र दिलों , आंखों और हाथों की आवश्यकता है ।
दो दिल यदि एक हो जायें तो पहाड को तोड सकते हैं , समूह के समूह को तितर-बितर कर सकते हैं ।
इस विषय में मुझे आपको बहुत कुछ कहना है जिसको पत्र में लिखना उचित नहीं है ।
मैं चाहता हूं हम लोग परस्पर बातें कर लें जिससे व्यर्थ दु:ख और श्रम न मिले ।
यदि तुम चाहो तो मैं तुमसे साक्षात बातें करने आऊं और कुछ रहस्यमयी बातों को तुम्हारे कर्णगोचर करूं ।
हम लोग बात रूपी सुंदरी का मुंह एकांत में खोलें और मैं उसकी बालों की उलझनों में कंघी फेरूं ।
कार्यविधि के दामन पर हाथ फेरें और उस उन्मत राक्षस पर कोई मंत्र चलायें ।
अपनी कार्यसिध्दि का कोई मार्ग निकालकर दोनो लोकों में अपना नाम ऊंचा करें ।
तलवार की शपथ , घोडे की शपथ , देश की शपथ ओर धर्म की शपथ खाता हूं कि इससे तुमपर कदापि कोई आपत्ति नही आयेगी ।
अफजल खान के परिणाम से तुम शंकित मत होना क्योंकि उसमें सचाई नहीं थी
बारह सौ बडे लडाके और हब्शी सवार संग वह मेरे लिये घात लगाये बैठा था ।
यदि मैं उसपर पहले ही हाथ न मारता तो इस समय यह पत्र तुमको कौन लिखता ।
पर मुझको आपसे ऐसे काम की आशा नही है क्योंकि तुमको भी स्वयं मुझसे कोई शत्रुता नहीं है ।
यदि मैं आपका यथेष्ट और उचित उत्तर पाऊं तो आपके समक्ष रात्रि को अकेला आऊं ।
मैं तुमको वो पत्र दिखाऊं जो मैंने शायस्ता खान की जेब से पकडा है ।
तुम्हारी आंखों पर मैं संशय का जल छिडकूं और तुम्हारी सुख निद्रा को मैं दूर करूं ।
तुम्हारे स्वप्न की ठीक ताबीर करूं और पीछे आपका जवाब लूं ।
यदि यह पत्र आपके मन अनुकूल न पडे तो फिर मैं हूं , मेरी काटने वाली तलवार है और आपकी सेना है ।
कल जिस समय सूर्य अपना मुंह रात से बाहर निकालेगा अर्थात सूर्य उदय होगा उस समय मेरा अर्ध्दचन्द्र ( तलवार) म्यान को बाहर फेंक देगा ।
बस कल्याण हो ।”
तुम्हारा खैरसंदेश,
शिवा

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