माघ स्नान और प्रयागराज
स्वामी गोपाल आनंद बाबा – विभूति फीचर्स
भारत में प्रत्येक वर्ष पौष संक्रान्ति से माघ संक्रांति तक अथवा मकर संक्रान्ति से आगामी माघ पूर्णिमा तक पवित्र जल में स्नान यानि पावन नदियों में स्नान सहित किन्हीं भी नदी में स्नान भी अनादि कालीन चल रही है। पावन-पवित्र तीर्थों में इन दोनों डुबकी लगाकर स्नान करने के लिए श्रद्धालु भक्तों का हुजूम-जमावड़ा लगा रहता है।
यही कारण है कि हर वर्ष 14 एवं 15 जनवरी को गंगासागर, प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक, उज्जैन, मांधाता आदि स्थानों में स्नानार्थियों की भारी भरकम भीड़ उमड़ती है। गंगा, यमुना, सिन्धु, कावेरी, कृष्णा, गोदावरी (गोमती), नर्मदा (रेवा), क्षिप्रा, महानदी, घग्घर, घाघरा, शोणभद्र, दामोदर, ब्रह्मपुत्र आदि के घाटों पर लोगों का तांता नहीं टूटता।
इन सभी स्थानों में गंगा-यमुना-सरस्वती यानि त्रिवेणी संगम-स्थल प्रयागराज की सर्वाधिक महत्ता है।
संत तुलसीदास जी रामचरित मनस, बालकाण्ड में कहते हैं- माघ मकर गति रवि जब होई, तीरथ पीतहि आव सब कोई।
अर्थात् भुवन भास्कर सूर्य देव जब धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करते हैं, यानि दक्षिणायन से उत्तरायण होते हैं, तब तीर्थराज (तीर्थपति) प्रयाग में संगम तट पर सभी आते हैं। ब्रह्मा, विष्णु, महेश (महादेव शंकर), आदित्य, मरुद्गण तथा अन्य सभी देवी-देवता, माघ मास में संगमस्नान करते हैं। साधु-सन्यासी-संत यहां कम से कम एकमास तक कल्पवास करते हैं और सभी आश्रमों के लोग भी यहां तप साधना करते हैं। अनादि काल से यह मान्यता चली आ रही है कि प्रयाग में माघ मास के काल में तीन बार स्नान करने से जो फल मिलता है, वह पृथ्वी पर दस हजार अश्वमेघ यज्ञ करने से भी प्राप्त नहीं होता। प्राचीन इलावृत्त वर्तमान में इलाहाबाद कहा जाता है। मुगल बादशाह जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर ने इसका नामकरण अल्लाहावाद किया था, जिसे यहां के वासियों ने नकारते हुए इलावृत्त से इलाहाबाद ही स्वीकार किया। इलाहाबाद महानगर है, जिसमें प्रयागराज एक नगर है और इसी क्षेत्र में संगम तट है। संगम के किनारे गंगा और यमुना के बीच अति प्राचीन सम्राट हर्षवद्र्धन (बैस/वैश) इसे बैश्य न बनाया जाए? का किला अवस्थित है जिस पर मुगल अकबर ने कब्जा जमाया तथा प्राचीन वट वृक्ष, सरस्वती कुण्ड आदि धार्मिक स्थानों को किले को बढ़ाकर भीतर कर दिया। आजकल यह फौजी छावनी बन गई है।
जिससे वर्ष मलमास होता है, उस वर्ष बहुत लोग पौष पूर्णिमा से माघ पूर्णिमा तक कल्पवास करना अच्छा मानते हैं, हालांकि मकर संक्रांति स्नान अवश्य करते हैं। महाशिवरात्रि तक स्नान-ध्यान चलता रहता है।
इस पवित्र माघ मेले में कल्पवासी एवं श्रद्धालुभक्त जन, साधु-संत गंगा किनारे बने तम्बुओं में रहते हैं। प्रत्येक दिन संगम स्नान के पश्चात साधनारत हो जाते हैं। भजन-कीर्तन करते हैं। इलाहाबाद जंक्शन बहुत बड़ा रेलवे स्टेशन है। यहां सभी ओर से रेलगाडिय़ां आती-जाती हैं। बस सेवा भी सड़क मार्ग से उपलब्ध है।
यहां काशी-वाराणसी, अयोध्या और चित्रकूट तथा विंध्याचल और मैहर के लिए भी रेलवे ट्रेन उपलब्ध होते हैं। सड़क मार्ग से बस सेवा भी है।
त्रिवेणी संगम जाने के लिए- प्रयाग एवं दारागंज रेलवे स्टेशन हैं। छोटी गाडिय़ां भी सड़क मार्ग से उपलब्ध होती हैं।
जयग्रंथ महाभारत से ज्ञात होता है कि पाण्डव युधिष्ठिर (धर्मराज) ने अपन नाते-रिश्तेदारों की सद्गति हेतु मार्कण्डेय ऋषि के निर्देशानुसार यहां कल्पवास किया था। पुराणों में इसका उल्लेख हुआ है।
प्रयाग में सहस्त्रों यज्ञ-अनुष्ठान, देवता, मानव, मानव, दानव, दैत्य, असुर आदि जनों द्वारा एवं साधु-संतों द्वारा किया गया है।
भृगुदेश की कल्याणी नामक ब्राह्मणी बाल विधवा हो गई थी। उसने साठ वर्ष तक माघ मास में प्रयाग में कल्पवास किया और वहीं पर प्राण त्यागे। वह परमसुन्दरी तिलोत्तमा हुई।
महर्षि गौतम के द्वारा इन्द्र को श्राप दिया गया तो उसे भी मुक्ति के लिए माघ-स्नान यहीं पर करना पड़ा। प्रयागराज संगम तट पर और कर्म (सिर मुण्डन आदि) करके स्नान दान करना ब्रह्म उपासकों को भोजन कराना यथोचित फलदायक है।
ब्रह्म मुहूर्त में स्नान की सर्वाधिक मान्यता है। दारागंज के शिव, वेणी माधव एवं प्रयाग के भरद्वाज आश्रम स्थित देवों का पूजन दर्शन करना ही चाहिए। (विभूति फीचर्स)