प्राचीन काल में भारत का पूरे विश्व में साम्राज्य था। आज ऐसे कई प्रमाण मिल रहे हैं, जिससे सिद्ध हो रहा है कि सनातन संस्कृति का अनुपालन करने वाले लोग इंडोनेशिया तक फैले थे। यह तो हम सब जानते ही हैं कि अफगनिस्तान, ईरान, पाकिस्तान, श्रीलंका, नेपाल, भूटान, पाकिस्तान, बांग्लादेश अखंड भारत का ही हिस्सा रहे हैं। आज एक बार पुनः वैश्विक स्तर पर कई देशों का भारत की सनातन संस्कृति की ओर विश्वास बढ़ रहा है क्योंकि ये देश विभिन्न प्रकार की समस्याओं से ग्रस्त हैं और उनकी इन समस्याओं का हल ये देश निकाल नहीं पा रहे हैं। प्रत्येक भारतीय वसुद्धैव कुटुम्बकम की भावना पर भरोसा करता है अतः पूरे विश्व को ही अपने कुटुंब का हिस्सा मानते हुए चलता है। और, यह भावना हाल ही में पूरे विश्व ने देखी भी है। कोरोना महामारी के दौरान भारत में भारत सरकार एवं राज्य सरकारों के कर्मचारियों के अतिरिक्त समाज से भी लाखों लोग घर से बाहर निकले एवं समाज में कोरोना बीमारी से ग्रसित नागरिकों की सेवा की। यह केवल भारत में ही हुआ है, विश्व में अन्य देशों के बीच इस प्रकार की भावना नहीं देखी गई थी। और तो और, भारत ने विभिन्न देशों में दवाईयों एवं टीकों को पर्याप्त मात्रा में पहुंचाया भी। भारत की वास्तविक जीवन दृष्टि यही रही है। इस जीवन दृष्टि के चलते भारत को अन्य देशों से कुछ अलग माना जाता है। भारतीय एक दूसरे के साथ आत्मीय सम्बंध स्थापित करते हैं। प्रत्येक भारतीय की नजर में चर और अचर दोनों में ईश्वर व्याप्त है। इसीलिए भारत के नागरिक पूरे विश्व को आपस में जुड़ा हुआ महसूस करते हैं। अनेकता में एकता, यह भारत की दृष्टि है। भारत में अनेकता को भी एक त्यौहार की तरह देखा जाता है। केवल भारत में ही इस्लाम के समस्त फिर्के, इसाईयों के विभिन्न मत, पारसी, यहूदी आदि भी बड़ी मात्रा में भारत के अन्य समाज बन्धुओं के साथ भाईचारा रखते हुए खुशी खुशी निवास करते हैं। दरअसल, भारत समाज आधारित इकाई है, पश्चिम की तरह यह राज्य आधारित इकाई नहीं है।
यह भी केवल भारत की विशेषता है कि विदेशों में पले बढ़े, रचे बसे भारतीय मूल के नागरिक भारी संख्या में भारत वापिस आकर यहां पुनः भारत के ही बन जाते हैं। इनमें से भारतीय मूल के कई नागरिक तो अपने शेष बचे जीवन को जीने के लिए भारत के गांवों को चुनते हैं। भारत के गांवों में नैसर्गिक जीवन है। गांवों में निवास कर रहे नागरिकों के बीच आपस में प्रतिस्पर्धा नहीं है। आज भारत के गांव पक्की सड़कों के माध्यम से शहरों के साथ जुड़ गए हैं। 24 घंटे बिजली उपलब्ध रहती है। इंटरनेट जैसी समस्त आधुनिक सुविधाएं भी भारतीय गावों में उपलब्ध हैं। कुल मिलाकर आज भारत के गांवों में समस्त प्रकार की आधारभूत संरचना विकसित हो चुकी है। गांवों में तुलनात्मक रूप से खर्च भी कम होता है। इसके ठीक विपरीत आज शहरों पर अत्यधिक जनसंख्या का दबाव है एवं शहरों का पर्यावरण बिगड़ रहा है।
पश्चिमी सभ्यता ने मानव जाति का सबसे अधिक नुक्सान किया है। आर्थिक विकास के नाम पर नागरिकों के आपसी भाईचारे को खत्म किया है। प्रत्येक नागरिक केवल अपने बारे में ही सोचता है और चाहता है कि मैं जल्दी से जल्दी किस प्रकार अमीर बनूं, चाहे इसके लिए उसे कुछ गलत कार्य भी क्यों न करना पड़े। कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए खाद एवं बीज के नाम पर रासायनिक पदार्थों का उपयोग अत्यधिक मात्रा में किया गया है, इससे जमीन बांझ बन गई है। आज पूरे विश्व में किसान जैविक खेती की ओर आकर्षित हो रहे हैं एवं जैविक खेती के माध्यम से उगाए गए फल, सब्जियां महंगे दाम पर भी खरीदने को नागरिक लालायित हो रहे हैं। प्राचीन काल में भारत में कृषि कार्य केवल जैविक खेती के माध्यम से ही क्या जाता था। इसलिए उस खंडकाल में नागरिक बीमारियों से ग्रस्त भी नहीं होते थे। नागरिक ग्रामों में ही हृष्ट पुष्ट, स्वस्थ एवं हंसी खुशी से आपसी भाईचारे से रहते थे।अन्य देशों के साथ साथ आज भारतीय शहरों में भी ग्रामीण नागरिकों के बीच पाई जाने वाली विशेषताओं का अभाव दिखाई देता है।
उक्त कारणों के बीच यदि भारत को एक बार पुनः भारत बनाना है तो हमें गांवों की ओर लौटना होगा। इसकी शुरुआत शहरों में रह रहे युवाओं द्वारा की जा सकती है। आज भारत का युवा तकनीक के क्षेत्र में बहुत आगे निकाल आया है। वे यदि शहरों के स्थान पर अपनी विनिर्माण इकाईयों की स्थापना ग्रामों में करते हैं तो इससे ग्रामीण आबादी का शहरों की ओर पलायन रुकेगा क्योंकि रोजगार के अवसर ग्रामीण इलाकों में ही निर्मित होंगे। ग्रामों में रहकर नैसर्गिक जीवन का आनंद भी उठाया जा सकेगा। प्राचीन भारत में भी छोटे छोटे उद्योग ग्रामीण इलाकों में स्थापित किए जाते थे और उत्पादित वस्तुओं का बाजार भी इन्हीं इलाकों में आसानी से उपलब्ध रहता था। इसके कारण वस्तुओं के दाम तो बढ़ते ही नहीं थे बल्कि उत्पादों की पर्याप्त उपलब्धता के चलते वस्तुओं के दाम सदैव नियंत्रण में रहते थे और कई बार तो कम ही होते रहते थे। मुद्रा स्फीति की समस्या प्राचीन भारत में थी ही नहीं।
युवा वर्ग के ग्रामों की ओर रूख करने से ग्रामीण नागरिकों के शिक्षा के स्तर को सुधारा जा सकता है। स्वास्य सेवाओं को सुधारा जा सकता है। यदि 10 ग्रामों के एक समूह में एक भी अच्छा डॉक्टर उपलब्ध हो जाता है तो कम से कम इस समूह के ग्रामीणों की स्वास्थ्य सेवाओं में तो सुधार होने ही लगेगा। आज गांवों से नागरिकों को अपने इलाज के लिए शहरों की ओर रूख करना होता है। अच्छे युवा डॉक्टरों को गांवों की ओर मुड़ना चाहिए। असली भारत तो आज भी गांवों में ही बसा है। भारत की 60 प्रतिशत से अधिक आबादी आज भी ग्रामों में ही निवास करती है। आज की युवा पीढ़ी ग्रामों की ओर रूख करने के सम्बंध में गम्भीरता से विचार करे।
भारत में कार्य कर रही विभिन्न आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक संस्थानों को भी इस ओर विशेष ध्यान देने की आज आवश्यकता है। देश के सकल घरेलू उत्पाद में कृषि क्षेत्र का योगदान केवल 16 प्रतिशत के आसपास रहता है जबकि देश की 60 प्रतिशत आबादी ग्रामों में निवास कर रही है। इस वर्ग की प्रति व्यक्ति आय तुलनात्मक रूप से बहुत कम है। इस वर्ग को यदि मध्यम वर्ग में बदला जा सके तो भारत में ही उत्पादों की मांग तेजी से बढ़ने लगेगी इससे देश के आर्थिक विकास को पंख लग सकते हैं।
भारत की युवा पीढ़ी के विशेष रूप के वे नागरिक जो विदेश में अपनी पढ़ाई सम्पन्न कर भारत लौटे हैं एवं वे भारत में अपना नया कारोबार प्रारम्भ करना चाहते हैं, उन्हें अपना नया कारोबार भारत के गांवों में प्रारम्भ करने के बारे में गम्भीरता से विचार करना चाहिए। इससे भारत को पुनः भारत बनाने में बहुत बड़ी मदद मिलेगी। ऐसा कहा भी जाता है कि भारत की आत्मा आज भी गांवों में ही निवास करती है। युवा उद्यमी यदि गांव की ओर रूख करेंगे तो निश्चित ही भारत के आर्थिक विकास को अगले लेवल पर पहुंचाया जा सकेगा, और भारत की आर्थिक विकास दर 10 प्रतिशत से भी आगे निकल सकती है।
प्रहलाद सबनानी
सेवा निवृत्त उप महाप्रबंधक,
भारतीय स्टेट बैंक
लेखक भारतीय स्टेट बैंक से सेवा निवर्त उप-महाप्रबंधक हैं।