गुडउईन, स्वामी विवेकानन्द जी का विश्वस्त एवं प्रिय अंग्रेज सहचर
हीरालाल मिश्र – विनायक फीचर्स
आध्यात्मिक महापुरुषों के सम्पर्क में आकर साधारण एवं निम्न प्रकृति के मनुष्य भी उच्चता को प्राप्त होते हैं। इन आध्यात्मिक ईश्वर तुल्य महामानवों में ऐसी चुम्बकीय शक्ति होती है कि निम्न भावापन्न क्षुद्रबुद्धि मानव, महामानव के रूप में परिवर्तित हो जाते है। सम्पूर्ण धरती पर ऐसे उदाहरण प्राप्त होते हैं। भारत में तो इनकी संख्या अत्यधिक है क्योंकि प्राचीनकाल से ही भारतवर्ष एक उच्च कोटि का आध्यात्मिक शक्ति सम्पन्न देश रहा है। चिरकाल से तपस्यारत ऋषि-मुनियों की परम्परा आज भी भारत में विद्यमान है।
आध्यात्मिकता से परिपूर्ण महामानव आज भी मानव कल्याण कार्य में जुटे हैं। ये आज भी मिट्टी को सोना बनाकर आर्ष वाक्य को चरितार्थ कर रहे हैं। यह अतिश्योक्ति नहीं है। कुख्यात डाकू अंगुलिमाल में भगवानबुद्ध के सम्पर्क में आकर विराट परिवर्तन दृष्टिगोचर हुआ। हिंसक, कठोर हृदय, हत्यारा, अंगुलिमाल, अहिंसक, दयालु एवं साधारण मानव के रूप में परिवर्तित हो गया।
भारतीय आध्यात्मिक इतिहास में ऐसे अनेकानेक उदाहरण भरे पड़े हैं। इनमें कोई अतिशयोक्ति नहीं है, यह सर्वमान्य एवं सर्वविदित है। किसी भी श्रद्धालु में तनिक भी संदेह की भावना नहीं रहनी चाहिये।
इस प्रकार के एक अति साधारण मनुष्य में स्वामी विवेकानंद के सम्पर्क में आकर विराट परिवर्तन का दर्शन होता है। इनका नाम था गुडउईन। ये अमेरिकावासी थे। प्रारंभिक अवस्था में गुडउईन को जुआं खेलने का नशा था। दुर्भाग्य से वे सर्वदा हारते ही थे।
गुडउईन की सबसे बड़ी विशेषता थी कि ये एक तीव्र एवं मेधावी स्टेनोग्राफर थे। स्वामी विवेकानंद को अमेरिका प्रवास के समय एक स्टोनोग्राफर की आवश्यकता थी जो उनकी कालजयी वाणी को लिपिबद्ध कर सके। अमेरिका में स्वामीजी के अधिकांश भाषण पूर्वप्रस्तुतिहीन थे। तत्काल उनके मुख से निकली उनकी बातें भाषण बन जाती थीं। अत: न्यूयार्क वेदांत सोसायटी के सदस्यों ने स्वामीजी के लिये एक स्टेनोग्राफर नियुक्ति का निर्णय लिया।
सन् 1895 के 12 दिसंबर को न्यूयार्क के दो समाचार पत्र ‘हेराल्ड’ और ‘वल्र्ड’ में दो वाक्यों में स्टेनोग्राफर के पद की घोषणा प्रकाशित हुर्ई। दो-तीन दिनों के बाद एक श्वेतकाय युवक स्वामीजी के पास उपस्थित हुआ। उसका मुखमंडल बड़ा आकर्षक था। उसकी मूंछें सभी का ध्यान आकर्षित करती थीं। स्वामीजी ने गुडउईन को नियुक्त कर लिया।
मूंछों के संबंध में एक मजेदार घटना है। एक दिन स्वामीजी अपने संन्यासी भाइयों के साथ जलपान कर रहे थे। इस बीच गुडउईन अपनी मूंछों को सहलाता वहां पहुंचा। उसने स्वामीजी को सगर्व कहा कि एक पेन्टर उसकी मूंछों को मॉडल बनाने के लिये उसे दस पाउण्ड देने के लिये राजी हुआ है। स्वामी जी ने हंसकर उत्तर दिया- ‘हां! एक जोड़ा झाड़ू के लिये यह अच्छा रहेगा।‘
स्वामीजी के प्रथम दर्शन ने ही गुडउईन को बड़ा प्रभावित किया। वह उनका दास बन गया। उसने अपना हृदय खोलकर स्वामीजी को अपना भूत एवं वर्तमान बताया।
गुडउईन का जन्म इंग्लैण्ड के वाथ ईस्टन में सन् 1870 ई. में हुआ था। मार्गरिटा नामक उसकी एक बहन भी थी। पिता जोसिया गुडउईन, बर्घिगम एडवरटाइजर, काउन्टी, मिरर आदि पत्रिकाओं के संपादक थे। पिता की मृत्यु के बाद भाग्य-परीक्षा के लिये वे निकल पड़े। पहले वे आस्ट्रेलिया गये फिर अमेरिका।
गुडउईन को स्वामीजी से जो पारिश्रमिक मिलता था उससे न्यूयार्क में उसका भरण-पोषण नहीं हो पाता था। स्वामीजी को इस बात का पता था। वे यदा-कदा उसकी सहायता कर देते थे।
गुडउईन ने स्वामीजी के साथ कुछ ही दिनों तक काम किया था कि उन्होंने न्यूयार्क के हार्डमैन हॉल में अपनी व्याख्यान माला आरंभ की। स्वामीजी के प्रत्येक शब्द, उनकी प्रत्येक बातों को लगातार घंटों तक परिश्रम कर गुडउईन लिपिबद्ध करते थे। सन् 1889 के 29 फरवरी के पत्र में स्वामीजी ने ई. टी. स्टर्डी को बताया- ‘सांस्कृतिक लेखक गुडउईन एक अंग्रेज है। वह मेरे कार्य को इतनी तल्लीनता से सम्पन्न करता है कि मैंने उसे ब्रह्मïचारी बना लिया है।Ó
लंदन में स्वामीजी मिस मूलर के अतिथि बनकर 63, सेंट जार्ज रोड में लेडी मार्गेसन के भाड़े के मकान में रहते थे। उस समय यह घर स्वामीजी को केन्द्र बिन्दु में रखकर ‘आनंद निकेतन’ बन गया था। शारदानंद, महेन्द्रनाथ, गुडउईन, मिसर मूलर, जॉन पी. फेक्स, स्टर्डी आदि के साथ यह घर मानो पुष्प का स्तवक बन गया था। स्वामीजी के शब्दों में हम लोग एक छोटा परिवार बन गये हैं।
गुडउईन जिस कोठरी में रहते थे उसमें उन्हें कष्ट था पर स्वामी विवेकानंद के सम्पर्क में उन्होंने कभी भी कष्ट का अनुभव नहीं किया।
श्री महेन्द्रनाथ जब लंदन में थे तो उनकी घुंघराली दाढ़ी को देखकर अंग्रेज हंसते थे। स्वामीजी ने गुडउईन को कहा कि किसी सैलून में जाकर इनकी दाढ़ी कटवा दो। एक जर्मन सैलून में उनकी फ्रेंच-कट दाढ़ी काट दी गई।
गुडउईन के साथ स्वामी शारदानन्द तथा महेन्द्र का बंधुत्व हो गया था। अमेरिका में स्वामीजी ने जो व्याख्यान दिये थे उन्हें गुडउईन ने शार्टहैण्ड में लिखा। उस समय वह पुस्तक रूप में प्रकाशित हो रहे थे। गुडउईन दिन-रात व्यस्त रहते थे। स्वामीजी का एक भाषण लिख लेने पर वे खुशी से नाचने लगते थे। स्वामी शारदानन्द जी को भी नाचने के लिये बाध्य करते। स्वामी शारदानन्द जी के न नाच सकने के कारण वे प्यार भरी गाली देने लगते। गुडउईन नृत्य के साथ स्पेनिश गीत भी गाते थे। वे बार-बार सिगरेट पीते तथा शारदानन्द जी को क्रोधित करने के लिये उन्हें भी सिगरेट पीने को कहते।
स्वामी शारदानन्द जी एकान्त में महेन्द्रनाथ को बताते कि अंग्रेज जाति के लोग बड़े परिश्रमी होते हैं। गुडउईन स्वामीजी को अपने मन की बातें भी बताते। उसने एक दिन स्वामीजी को बताया कि मिस मूलर तथा स्टर्डी उसे पसन्द नहीं करतीं।
एक दिन गुडउईन ने स्वामीजी से कहा कि उनके पास इतना धन नहीं है कि वे ठीक से खाना खा सके। अमेरिका जाकर वे अपना खर्च चलाने में समर्थ है। जब स्वामीजी ने कहा क्या यहां चेष्टा करने से न होगा। गुडउईन ने उत्तर दिया- ‘होगा क्यों नहीं? पर स्वामीजी की देखभाल करने वाला कौन होगा?’ स्वामी जी को गुडउईन की बातों से बड़ी पीड़ा हुई। वे सोचने लगे कि वह उनके समस्त भाषणं लिखता है पर वे उसे आश्रय देने में असमर्थ हैं। गुडउईन ने स्वामीजी को कहा कि वे चिन्ता न करें। फिर कहा कि वे कुछ उपार्जन कर स्वामीजी के सारे भाषण भी लिखेंगे। कुछ दिनों के बाद स्वामीजी ने गुडउईन को स्वामी शादानन्द जी के साथ अमेरिका भेजा।
सन् 1897 ई. के जनवरी मास में स्वामीजी गुडउईन को अपने साथ लेकर कोलकाता लौटे। एक दिन स्वामीजी गंगा स्नान को गए। साथ में गुडउईन भी था। स्नान करने के उपरांत वह स्वामीजी का जूता तथा कमंडल में जल लेकर ऊपर आकर बैठा। स्वामीजी के बाहर आते ही उसने तुरंत उनका पांव धोया-पोंछा तथा जूता पहनाया। उसकी गुरुभक्ति देखकर सभी मुग्ध हो गए।
आलमबाजार मठ में स्वामीजी तथा अन्य भक्तों के साथ गुडउईन ने भी कच्छ साधन अपनाया था। सभी चकित थे। यहां शिव की आराधना में लीन हो वह नाच भी करता था।
1897 ई. के 7 मार्च को श्री रामकृष्ण के जन्मोत्सव के अवसर पर दक्षिणेश्वर काली मंदिर के प्रांगण में एक विशाल धर्मसभा में स्वामीजी ने गुडउईन से भाषण दिलवाया। वह एक अद्भुत अवसर था।
श्री रामकृष्ण देव की पुण्यतिथि के अवसर पर गुडउईन के संन्यास ग्रहण की बात थी पर वह किसी कारणवश न हो सकी। स्वामीजी जम्मू में थे। उसने स्वामीजी के जम्मू तथा लाहौर भ्रमण का सुन्दर विवरण लिखा है। 12 नवंबर को लाहौर के चार कॉलेजों में स्वामी विवेकानंद ने ‘वेदान्त’ पर अढ़ाई घंटों तक भाषण दिया था, जिसे गुडउईन ने नोट किया था। यह उसकी अंतिम श्रुतिलिपि थी और स्वामीजी का भारतवर्ष में दिया गया श्रेष्ठ भाषण। कुछ दिनों के बाद स्वामीजी से विदा लेकर गुडउईन मद्रास (चेन्नई) चला गया। इंग्लैंड में बहन के विवाह के उपरांत मां को वह अपने साथ मद्रास (चेन्नई) लाना चाहता था। स्वामी विवेकानन्द अपनी जापान-यात्रा के पथ में गुडउईन के साथ भेंट करना चाहते थे। पर खराब स्वास्थ्य के कारण उनकी जापान यात्रा न हो पाई। इधर गुडउईन स्वामीजी के दर्शन हेतु उटकमंड पहुंचा।
उस समय वहां इन्फ्लूएंजा तथा टायफायड व्यापक रूप से फैला था। गुडईन को अस्पताल में भर्ती कराया गया पर मात्र 27 वर्ष 8 मास की उम्र में गुडउईन का जीवन-प्रदीप बुझ गया। (विनायक फीचर्स)
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