✍️ आचार्य डॉ. राधे श्याम द्विवेदी
जिस प्रकार संसार में कार्य चलाने के लिये मनुष्यों को सहायकों की आवश्यकता होती है। उसी प्रकार सृष्टि के पालनकर्ता श्रीहरि को भी अपना कार्य करने के लिए सहायकों की आवश्यकता पड़ती है। इसी प्रयोजन से श्रीहरि के भी मुख्य 16 पार्षद यानी सहायक हैं, जिनको समय-समय पर समाज को सार्थक संदेश देने के लिए श्रीहरि पृथ्वी पर भेजते रहते हैं। मान्यता है कि आज भी उनमें से कुछ पृथ्वी पर भ्रमण करते हैं और श्रीहरि के भक्तों को संकटों से बचाते हैं, धर्म पथ पर चलाते हैं। वे निर्दिष्ट कार्य करने के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं. सबकी अपनी- अपनी भूमिकाएं हैं, जिन्हें वे पूरी निष्ठा के साथ निभाते रहते हैं। “अयोध्या दर्शन” गीता प्रेस , गोरखपुर से प्रकाशित पुस्तक में पण्डित श्री राम कुमार दास जी के आलेख “साकेत — दिव्य अयोध्या” के पृष्ठ 57- 58 पर भगवान राम के षोडश पार्षदो के नाम का उल्लेख किया है। जो अथर्वेद के इस डेढ़ मंत्रों के आधार पर उल्लखित किया गया है।
“पुरं यो ब्रह्मणो वेद यस्याः पुरुष उच्यते ॥
यो वै तां ब्रह्मणो वेदामृतेनावृतां पुरम्।
तस्मै ब्रह्म च ब्राह्माश्च चक्षुः प्राणं प्रजां ददुः ॥”
(अथर्वेद 10/2/28- 29)
इस डेढ़ मंत्रों का निहितार्थ इस प्रकार है —
” जो कोई ब्रह्म के अर्थात परात्पर परमेश्वर, परमात्मा , जगदादि कारण, अचिंत्य वैभव श्री सीतानाथ रामजी के
पुरी को जानता है उसे भगवान और भगवान जी के पार्षद –सब लोग चक्षु,प्राण और प्रजा देते हैं। इस पुरी के स्वामी को पुरुष कहते हैं। अर्थात जिसका प्रतिदिन नाम स्मरण किया जाता है,उस पुरुष की पुरी को जानने के लिए श्रुति कह रही है। जो कोई अनन्त शक्ति सम्पन्न सर्व व्यापक,सर्व नियंता,सर्वशेषी, सर्वाधार श्री रामजी की अमृत अर्थात मोक्षानंद से परिपूर्ण जो निश्चय के साथ उस अयोध्या पुरी को जानता है। उसके लिए साक्षात ब्रह्मऔर ब्रह्म के सम्बन्धी अर्थात भगवान के – “हनुमान,सुग्रीव, अंगद, मयंद, सुषेण, द्विविद, दरीमुख,कुमुद, नील, नल, गवाक्ष, पनस, गन्ध मादन,विभीषण, जामवान और दधिमुख” –ये प्रधान षोडश पार्षद अथवा नित्य और मुक्त सर्वजीव मिलकर उत्तम दर्शन –शक्ति, उत्तम प्राण शक्ति अर्थात आयुष्य और बल तथा सन्तान आदि देते हैं।”
नारायण की भांति रामजी के भी षोडश पार्षद:-
पुराणों में भगवान नारायण के 16 प्रमुख पार्षद बताए गए हैं. ये पार्षद जय, विजय, विष्वक्सेन, प्रबल, बल, नन्द, सुनन्द, सुभद्र, भद्र, चण्ड, प्रचण्ड, कुमुद, कुमुदाक्ष, शील, सुशील और सुषेण हैं. भक्तमाल ग्रंथ के अनुसार, इनमें प्रधान पार्षद विष्वक्सेन के अलावा जय, विजय, प्रबल और बल भक्तों का मंगल करने वाले हैं। नन्द, सुनन्द, सुभद्र और भद्र भव रोगों को हरने वाले हैं. चण्ड, प्रचण्ड, कुमुद और कुमुदाक्ष विनीत भाव से कृपा करने वाले और शील, सुशील व सुषेण भावुक भक्तों का पालन करते हैं.
अभी तक भगवान विष्णु से षोडश पार्षदों का ही उल्लेख मिलता रहा परंतु इस लेख में पण्डित श्री राम कुमार दास जी ने भगवान राम के षोडश पार्षदों का नामोल्लेख किया है। हां भगवान राम के सेना के 18 पदम यूथपतियों का जिक्र राम चरित मानस में अवश्य मिलता है। भक्तमाल के बीसवें छ्न्द में नाभादास ने राम के सहचर वर्ग को इस प्रकार गिनाया है।
“दिनकर सुत हरिराज बालिबछ केसरि औरस।
दधिमुख द्विविद मयंद रिच्छपति सम को पौरस।।
उल्का सुभट सुषेन दरीमुख कुमुद नील नल।
सरभ रु गवै गवाच्छ पनस गन्धमादन अतिबल।।
पद्म अठारह यूथपति रामकाज भट भीर के।
सुभ दृष्टि वृष्टि मो पर करौ जे सहचर रघुबीर के।।”
पार्षद की सेनापति जैसी जिम्मेदारी:-
भगवान राम ने इन वानर सेना की मदद से लंका पर चढ़ाई कर रावण की सेना से भीषण युद्ध कर विजय प्राप्त की थी. दस दिनों तक चले इस युद्ध में वानर सेना ने अद्भुत वीरता का प्रदर्शन किया था।
राम जी के षोडश पार्षद :–
सुग्रीव:-
वानरों के राजा सुग्रीव श्रीराम की सेना के प्रमुख प्रधान 10,00,000 से ज्यादा सेना के यह सेना अध्यक्ष थे.सुग्रीव रामायण के एक प्रमुख पात्र थे। बालि इनके बड़े भाई थे। इनके पिता का नाम सूर्य नारायण और माता का नाम ऋक्षराज था। बालि और सुग्रीव का पालन षोषण महर्षि गौतम और उनकी पत्नी अहल्या ने किया था। हनुमान के कारण भगवान श्री राम से उनकी मित्रता हुई थी।
हनुमान:-
श्रीराम सेना के प्रमुख योद्धाओं में से एक थे.हनुमान वानरों के राजा केसरी और उनकी पत्नी अंजना के छः पुत्रों में सबसे बड़े और पहले पुत्र हैं। रामायण के अनुसार वे जानकी के अत्यधिक प्रिय हैं। इस धरा पर जिन सात मनीषियों को अमरत्व का वरदान प्राप्त है, उनमें बजरंगबली भी हैं। हनुमान जी का अवतार भगवान राम की सहायता के लिये हुआ। हनुमान जी के पराक्रम की असंख्य गाथाएँ प्रचलित हैं। इन्होंने जिस तरह से राम के साथ सुग्रीव की मैत्री कराई और फिर वानरों की मदद से असुरों का मर्दन किया, वह अत्यन्त प्रसिद्ध है।
अंगद:-
बाली तथा तारा का पुत्र वानर यूथ पति एवं प्रधान योद्धा. अंगद रामदूत भी थे. अंगद ने युद्ध में अदुभुत साहस दिखाया. उन्होंने रावण के पुत्र नरान्तक और रावण की सेना के प्रमुख योद्धा महापार्श्व का वध किया था.
विभीषण:-
विभीषण रामायण के एक प्रमुख पात्र हैं। वे रावण के भाई थे।विभीषण बहुत ही बड़े राम भक्त थे। उन्होंने लंका में रहते हुए भी राम भक्ति की, जहाँ भगवान श्री राम का शत्रु रावण का राज था। विभीषण रावण का सबसे छोटा भाई था, जिसने लंका पर शासन किया था। वह ऋषि पुलस्त्य के पुत्र ऋषिविश्रवा और केकसी के सबसे छोटे पुत्र थे। लंका के राजा रावण उनके बड़े भाई थे। हालाँकि विभीषण राक्षस जाति के थे, लेकिन वे पवित्र थे और श्री राम के भक्त थे । उनका व्यवहार सच्चे ब्राह्मणो जैसा था। उन्होंने अपने बड़े भाइयों के साथ ब्रह्मा जी की तपस्या की थी, एवं वरदान में अपने लिए ये माँगा की वे हमेशा धर्म-पथ पर चले।
जामवंत:-
रीछ सेना के सेनापति एवं प्रमुख सलाहकार. यह कुशल योद्धा के साथ ही मचान बांधने और सेना के लिए रहने की कुटिया बनने में भी कुशल थे.जाम्बवन्त रामायण के एक प्रमुख पात्र हैं। वे ऋक्ष प्रजाति के थे।उनका सन्दर्भ महाभारत से भी है। स्यमंतक मणि के लिये श्री कृष्ण एवं जामवन्त में नंदिवर्धन पर्वत (तत्कालीन नाँदिया, सिरोही, राजस्थान ) पर २८ दिनो तक युध्द चला। जामवंत को जब श्रीकृष्ण के भीतर श्रीराम के दर्शन हुए तब जामंवत ने अपनी पुत्री जामवन्ती का विवाह श्री कृष्ण द्वारा स्थापित शिवलिंग ( रिचेश्वर महादेव मंदिर नांदिया ) की शाक्शी में करवाया। युद्ध मे जाम्बवन्त ने यग्यकूप नामक राक्षस का वध किया था। हनुमान की माता अंजना ने जाम्बवन्त को अपना बड़ा भ्राता माना था जिससे वह शिवान्श हनुमान के मामा बन गये।
नल:-
नल (सफेद वानर) यह वानर सेना में इंजीनियर रहे हैं। समुद्र पर सेतु का निर्माण इनकी देखरेख में हुआ था।सुग्रीव की सेना का वानर वीर और सुग्रीव के सेना नायक। सेतुबंध की रचना इनके माध्यम से की गई थी।
नील:-
नील सुग्रीव का सेनापति थे, जिसके स्पर्श से पत्थर पानी पर तैरते थे, सेतुबंध की रचना में सहयोग दिया था। सुग्रीव सेना में इंजीनियर और सुग्रीव के सेना नायक। नील के साथ 1,00000 से ज्यादा वानर सेना थी।नल और नील को ऋषियों ने श्राप दिया था कि वे जिस चीज को छुएंगे वह पानी में नहीं डूबेगी.रामायण में, नील अग्निके देवता, अग्नि के पुत्र और “तेज, प्रतिष्ठा और कौशल में कपिश्रेष्ठ” के रूप में वर्णित है। महाकाव्य का एक महत्वपूर्ण भाग राम की पत्नी सीता को इसमें वानर सेना द्वारा निभाई गई भूमिका का वर्णन किया गया है, जिसमें लंका के राक्षस राजा रावण ने अपहरण कर लिया था। महाकाव्य को बनाने वाली कई कहानियों के अलग-अलग रूपांतरों का निर्माण किया गया है। वह वानर राजा सुग्रीव के अधीनस्थ वानर सेना के कमांडर-इन-चीफ हैं, और उन्हें लंका के राक्षस राजा रावण (आधुनिक श्रीलंका के रूप में जाना जाता है) के विरुद्ध राम की लड़ाई में सेना का नेतृत्व करने और हत्या करने वाले थे। के रूप में वर्णित है।
द्विविद:-
ये बहुत ही बलवान और शक्तिशाली थे, इनमें दस हजार हाथियों का बल था. इनके भाई मैंद ने भी युद्ध में भाग लिया था.द्विविद सुग्रीव के मन्त्री और मैन्द के भाई थे। ये बहुत ही बलवान और शक्तिशाली थे, इनमें दस हजार हाथियों का बल था। महाभारत सभा पर्व के अनुसार किष्किन्धा को पर्वत-गुहा कहा गया है और वहाँ वानरराज मैन्द और द्विविद का निवास स्थान बताया गया है। द्विविद को भौमासुर का मित्र भी कहा गया है। वानर यूथपति द्विविद अश्विनी कुमारो के अंश से जनमे हुए थे।
केसरी: केसरी एक पुरुष वानर है , और हिंदू पौराणिक कथाओं में एक पात्र है । वह हनुमान के पिता और अंजना के पति हैं ।यह महान योद्धा 1,00000 से ज्यादा वानर सेना के साथ युद्ध कर रहे थे। शैव परंपरा में विष्णु की मदद से शिव से एक उत्पन्न पुत्र की मांग की गई थी, जो रावण को मारने के लिए राम का अवतार लेने वाला था। शिव और पार्वती ने वानर का रूप धारण किया और संभोग में लगे रहे। जब वायु प्रकट हुई, तो उसने अपनी उपस्थिति बताई, और पार्वती ने अपने अंदर के बच्चे को प्रकट किया। पार्वती ने वानर के रूप में गर्भपात को कैलाश ले जाने से मना कर दिया। जैसा कि शिव ने निर्देश दिया था, पार्वती ने बच्चे को वायु से बचाया था, जिसने इसे अंजना के गर्भ में रखा था, जिसने हनुमान को जन्म दिया था।
शतबली :-
शतबली,एक कुशल मल्ल योद्धा था। उसके साथ भी 1,00000 से ज्यादा वानर सेना थी। यह सुग्रीव के नेतृत्व में एक महान वानर था। उसके पास सुग्रीव से भी बड़ी विशाल वानरों की सेना थी। वह सीता की खोज के लिए उत्तरी क्षेत्रों में प्रतिनियुक्त वानरों का नेता था। (वाल्मीकि रामायण, किष्किंधा कांड सर्ग 43, : पुराणिक इनसाइक्लोपीडिया)। शतबलि को 20 करोड़ योद्धाओं के साथ आग्नेय दिशा की ओर से आक्रमण करने के लिए भगवान् ने तैनात किया।
मैन्द:-
मंद द्विविद नामक दो भाई भी सुग्रीव के यूथ पति थे। हर झूंड का एक सेनापति होता था जिसे यूथपति कहा जाता था। ये बहुत ही बलवान और शक्तिशाली थे, इनमें दस हजार हाथियों का बल था। महाभारत सभा पर्व के अनुसार किष्किन्धा को पर्वत-गुहा कहा गया है और वहां वानरराज मैन्द और द्विविद का निवास स्थान बताया गया है। ये दोनों भाई दीर्घजीवी थे। रामायण के बाद भी ये जिंदा रहे और महाभारत काल में भी इनकी उपस्थिति मानी गई थी।यह भी कहा जाता है कि एक बार महाभारत के सहदेव किष्किन्धा नामक गुफा में जा पहुंचे। वहां वानरराज मैन्द और द्विविद के साथ उन्होंने सात दिनों तक युद्ध किया था। परंतु वे उन दोनों महान योद्धाओं का कुछ बिगाड़ नहीं सके। तब दोनों वानर भाई प्रसन्न होकर सहदेव से बोले- ‘पाण्डव प्रवर! तुम सब प्रकार के रत्नों की भेंट लेकर जाओ। परम बुद्धिमान धर्मराज के कार्य में कोई विघ्न नही पड़ना चाहिये।’ मैंद (वानर) अश्विनी कुमारो के अंश से उत्पन्न हुआ था।
सुषेण वैद्य:-
रामायण आदि के अनुसार यह वरुण का पुत्र, बाली का ससुर और सुग्रीव का वैद्य था । वह धर्म के अंश से उत्पन्न हुए थे। इसने राम रावण के युद्ध में रामचंद्र की विशेष सहायता की थी ।उनके साथ वेगशाली वानरों की सहस्र कोटि सेना थी। सुषेण वैद्य सुग्रीव के ससुर थे। पहले ये लंका के राजा राक्षसराज रावण का राजवैद्य थे। बालि की पत्नी अप्सरा तारा सुषेण की धर्म पुत्री थीं। बालि वध के बाद तारा का विवाह सुग्रीव से कर दिया गया था। वैसे बालि की पत्नी रूमा थीं। अंगद बालि का पुत्र था। उन सुषेण का जन्म वरुण के अंश से हुआ था।
दधिमुख:-
वानरों में वृद्ध तथा अत्यन्त पराक्रमी श्रीमान दधिमुख भयंकर तेज से सम्पन्न वानरों की विशाल सेना साथ लेकर आये। वे बड़े सौम्य, भगवत भक्त और मधुरभाषी थे।
जिनके मुख (ललाट) पर तिलक का चिह्न शोभा पा रहा था तथा जो भयंकर पराक्रम करने वाले थे। इन्हें चंद्रमा का अंश कहा जाता है। वह वानर राज सुग्रीव का मामा था। उन्हें सुग्रीव के मधुवन नामक मनोहर बाग की रखवाली का भी दायित्व भी मिला था। जब हनुमान जी ने सीता का पता लगा वापस लौटे तो बानर दल खुशी में उपवन से फल खाने , शहद पीने और बाग उजारने की सूचना सुग्रीव को दी। वह दधिमुख वीर वानर मुझे सूचित करता है कि अंगद के नेतृत्व में उन युद्ध के समान वनवासियों ने शहद पी लिया है और बाग के फल खाने के लिए हैं। जो लोग अपने मिशन में विफल रहे थे, वे इस तरह से पलायन में शामिल नहीं होते। निश्चित रूप से वे सफल रहे हैं क्योंकि उन्होंने लकड़ी को नष्ट कर दिया है। इसी कारण से उन्होंने उन लोगों को घुटनों से पकड़ लिया है जिन्होंने अपनी लीला-क्रीड़ा में बाधा डाली है और उस वीर दधिमुख का तिरस्कार किया है जिसे मैंने स्वयं अपने बाग का संरक्षक नियुक्त किया था। अंगद के नेतृत्व में उन वीर वानरों ने निश्चित रूप से मधुर वन को उजाड़ दिया है। दक्षिणी क्षेत्र की खोज करने के बाद, उनके वापसी पर इस बाग ने अपने लोलुपता को उत्तेजित कर दिया, जिसके बाद उन्होंने इसे लूट लिया और शहद पी लिया, पहरेदारों पर हमला किया और उन्हें अपने घुटनों से पकड़ लिया। अपने पराक्रम के लिए विख्यात यह मृदुभाषी दधिमुख बानर मुझे यह समाचार सुनाने आया है।
परपंजद पनस :-
यह रामदल का एक बंदर यूथ पति था। विभीषण के चार मंत्रियों में से एक पनस रहा। यह 1,00000 से ज्यादा वानर सेना के साथ युद्ध कर रहा था । उनका जन्म वृहस्पति के अंश से हुआ था। पनस बुद्धिमान तथा महाबली वानर सत्तावन करोड़ सेना साथ लेका आया था। महर्षि वाल्मीकि के अनुसार पनस की सेना में 50 लाख सैनिक थे। वह परियात्र पर्वत पर रहता था।
कुमुद:-
कुमुद के नेतृत्व में 10 करोड़ सैनिक ईशान दिशा से आक्रमण के लिए तैनात किए गए थे|
गन्धमादन:-
गन्धमादन पर्वत पर रहने वाला गन्धमादन नाम से विख्यात वानर वानरों की दस खरब सेना साथ लेकर आया। भगवान् राम को सेना के बायें पार्श्व में गन्धमाधन के नेतृत्व में विशाल सेना थी|गंधमादन (वानर) को कुबेर अपने अंश से उत्पन्न किया था।
गवाक्ष:-
लंगूर वानरों के यूथपति गवाक्ष थे। महर्षि वाल्मीकि के अनुसार गवाक्ष की सेना 1 करोड़ सैनिक थे। लंका युद्ध में दायीं ओर से सहायता देने के लिए लंगूरपति गवाक्ष उपस्थित थे। गोलांगूल (लंगूर) जाति के वानर गवाक्ष, जो देखने में बड़ा भयंकर था, साठ सहस्र कोटि (छः अरब) वानर सेना साथ लिये दृष्टिगोचर हुआ। वानर यूथपति गवाक्ष यम राज अंश से जनमे थे।
दरीमुख या दुर्मुख :-
रामचन्द्र जी का एक गुप्तचर जिसके द्वारा वे अपनी प्रजा का वृत्तान्त जाना करते थे। इसी के मुँह से उन्होंने सीता का वह वृत्तान्त सुना था जिसके कारण सीता का द्वितीय वनवास हुआ था (उत्तररामचरित) ।
लेखक परिचय:-
(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, आगरा मंडल ,आगरा में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुआ है। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए समसामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करता रहता है।)
बहुत से लेख हमको ऐसे प्राप्त होते हैं जिनके लेखक का नाम परिचय लेख के साथ नहीं होता है, ऐसे लेखों को ब्यूरो के नाम से प्रकाशित किया जाता है। यदि आपका लेख हमारी वैबसाइट पर आपने नाम के बिना प्रकाशित किया गया है तो आप हमे लेख पर कमेंट के माध्यम से सूचित कर लेख में अपना नाम लिखवा सकते हैं।