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स्वर्णिम इतिहास

है बलिदानी इतिहास हमारा ……

मित्रों !
हम यहां पर कुछ ऐसी क्रांतियों और आंदोलनों के नाम दे रहे हैं जिनसे पता चलता है कि ब्रिटिश काल में हमारे देश में क्रांति की आंधी मची हुई थी, पूरा भारत मचल रहा था और अपनी स्वाधीनता के प्रति पूर्णतया सजग था। तनिक देखिए: –
प्लासी का युद्ध (सन 1757) , चुआड़ विद्रोह ( सन 1766) सन्यासी एवं फकीर विद्रोह (सन 1763 से 1773 तक ) , बंगाल का द्वितीय सैनिक विद्रोह ( सन 1795 ) , चुआड़ विद्रोह ( सन 1798 से 1831 तक ), वेल्लोर का सैनिक विद्रोह (सन 1803)
वेल थंपी का संघर्ष ( 1808 से 1809 तक ), भील विद्रोह (1817 ) नायक विद्रोह ( सन 1821), बैरकपुर का प्रथम सैनिक विद्रोह ( सन 1824) कोल विद्रोह ( सन 1831 – 33) भूमिज विद्रोह ( सन 1832 से 1834 ), गुजरात का महिकांत विद्रोह ( सन 1836), धर राव विद्रोह ( सन 1841), कोल्हापुर विद्रोह (सन 1844), संथाल विद्रोह (सन 1855 से 1856) सैनिक विद्रोह ( 1855 ) , प्रथम स्वतंत्रता संग्राम (1857 ) नील विद्रोह ( सन 1850 से 1860 ) कूका विद्रोह ( सन 1872 ) वासुदेव बलवंत फड़के के मुक्ति प्रयास ( सन 1875 से 1879)
चाफेकर संघ ( सन 1897 के आसपास ) बंग भंग आंदोलन (सन 1905 ) यूरोप में भारतीय क्रांतिकारियों के मुक्ति प्रयास (सन 1905 के आसपास) अमेरिका तथा कनाडा में गदर पार्टी, (प्रथम विश्व युद्ध के आगे पीछे ), रासबिहारी बोस की क्रांति, हिंदुस्तान प्रजातंत्र संघ ( सन 1915 के आसपास ) स्वराज्य पार्टी के मुक्ति प्रयास (1925 के आसपास) ।
ये सारे ऐसे आंदोलन हैं जिनकी जानकारी अब हमको हो जाती है। इसके अतिरिक्त ऐसे भी अनेक आंदोलन रहे जो स्थानीय स्तर पर लोगों ने लड़े पर उन्हें वे कोई नाम नहीं दे सके। बिना नाम के लड़े गए इन आंदोलनों की संख्या बहुत अधिक है। इनके अतिरिक्त गांधी जी का असहयोग आंदोलन (1921 – 22 ), रॉलेट एक्ट को लेकर किया गया आंदोलन, साइमन कमीशन के विरुद्ध उठा विद्रोह, सविनय अवज्ञा आंदोलन, आर्य समाज का हैदराबाद आंदोलन, भारत छोड़ो आंदोलन, दक्षिण पूर्व एशिया में आजाद हिंद आंदोलन, नौसेना विद्रोह (सन 1946), गोवा मुक्ति संघर्ष, दादरा तथा नगर हवेली मुक्ति संग्राम आदि आंदोलन भी स्मरणीय हैं।
यहां पर यह बात भी उल्लेखनीय है कि उपरोक्त वर्णित आंदोलन केवल 1757 से लेकर 1947 अर्थात 190 वर्ष के बीच के हैं। तथाकथित मुगल काल और उससे पहले सल्तनत काल में भी यदि इसी अनुपात में आंदोलन हुए तो स्वाधीनता के लिए लड़े गए ऐसे आंदोलनों की संख्या सैकड़ो में हो जाएगी। अब सोचिए कि जिस देश ने अपनी स्वाधीनता के लिए सैकड़ों संघर्ष किये हों, आंदोलन किए हों, विद्रोह किये हों, यदि उसे अपनी स्वाधीनता की चिंता नहीं थी तो फिर संसार का कोई भी ऐसा देश नहीं हो सकता जिसे स्वाधीनता का आराधक राष्ट्र कहा जा सके। बस, यही कारण है कि हमें अपने सही इतिहास के प्रति सही दृष्टिकोण अपनाकर उसे समझना होगा। यदि सही इतिहास के समझने के लिए इतिहास का पुनर्मूल्यांकन किया जाना किन्हीं लोगों की दृष्टि में इतिहास का विकृतिकरण है तो ऐसा विकृतिकरण हम सौ बार करना चाहेंगे।
संसार को सत्य मार्ग बताने वाला भारत यदि अपने बारे में ही भ्रांतियों में फंसा रहा तो संसार से सत्य का दीपक बुझ जाएगा। इसलिए सत्य की रक्षा के लिए और संसार के कल्याण के लिए भारत का अस्तित्व में रहना आवश्यक है । यह तभी संभव है जब हम अपने इतिहास को आने वाली पीढ़ियों को सही और प्रामाणिक आधार पर प्रस्तुत करके देकर जाएं।
इतिहास की भ्रांतियों से निकलिए। सच को समझिए। पहचानिए और जानिए कि हम क्रांतिकारी पूर्वजों की क्रांतिकारी संतानें हैं, जिन्होंने क्रांति के माध्यम से अपनी आजादी को प्राप्त किया। …. और याद रखिए इस आजादी को क्रांति ( पूर्णतया सजग और सावधान रहकर) के माध्यम से ही सुरक्षित रखा जा सकता है।

डॉ राकेश कुमार आर्य

( इतिहासकार एवं भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता )

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