हमारा मानसिक तनाव और मौन की शक्ति

     लोग सुबह से शाम तक आपस में बातें करते हैं। एक-आध घंटा भी मौन नहीं रहते। "यदि एक-आध घंटा भी दिन में मौन रहें, तो उन्हें बहुत शांति मिलेगी। तनाव राग द्वेष आदि कम होगा। काम क्रोध लोभ आदि दोष भी कम होंगे। मौन रहकर ईश्वर का चिंतन करने से ये सारे लाभ होते हैं।"
     परंतु जो लोग सारा दिन बोलते रहते हैं। बातें करते रहते हैं, उनमें से बहुत सी बातें तो बिना प्रमाण की होती हैं। "वे लोग व्यर्थ ही एक दूसरे पर दोषारोपण करते हैं। द्वेष ईर्ष्या जलन अभिमान आदि दोषों के कारण दूसरों को परेशान करते हैं।"
        यदि आपके ऊपर भी कोई व्यक्ति ऐसे ही दोषारोपण करे, तो आप भी पहले प्रेम पूर्वक उसकी पूरी बात सुनें। फिर शांति से विचार करें कि "इसने जो कुछ मेरे लिए कहा है, इसमें कितना सत्य और कितना असत्य है?" "यदि उसका दोषारोपण सत्य है, तो प्रेमपूर्वक अपना दोष स्वीकार करें, और अपने उस दोष को दूर करें। चिंता करने की, तनाव में आने की, या गुस्सा झगड़ा करने की आवश्यकता नहीं है।" "क्योंकि सत्य के ग्रहण करने और असत्य के छोड़ने में सर्वदा उद्यत रहना चाहिए।" ऐसा मनुष्यता का सिद्धांत ऋषियों ने बताया है।
     "यदि उसने भ्रांतिवश अथवा द्वेष के कारण आपके ऊपर कोई झूठा आरोप लगा दिया हो, तब प्रमाण और तर्क से उसको बताएं, कि आपका आरोप गलत है। यह झूठा आरोप है। मैंने इस प्रकार का कोई दोष नहीं किया।" "यदि आपने उस प्रकार का कोई दोष नहीं किया है, तब भी चिंता करने की, तनाव में आने की, या गुस्सा झगड़ा करने की आवश्यकता नहीं है। क्योंकि जब आपने दोष किया ही नहीं है, आप अच्छे व्यक्ति हैं, निर्दोष हैं, तो फिर चिंता किस बात की!" दोनों स्थितियों में आप प्रसन्नता पूर्वक अपना जीवन जी सकते हैं।"
      "इसी प्रकार से यदि आपको भी किसी पर कोई आरोप लगाना हो, तो पहले उस विषय में पूरी परीक्षा कर लें। वह भी प्रमाण पूर्वक लगाएं। द्वेष भावना से आक्रमण तो कभी भी किसी पर भी न करें।" यदि बताना भी हो, तो उस व्यक्ति को दोष प्रेमपूर्वक हित की भावना से बताएं। ऐसे बताएं, कि "मैं जो दोष बता रहा हूं, इस पर आप कुछ चिंतन विचार कीजिएगा। यदि आपको यह दोष अपने अंदर प्रतीत हो, तो इसे दूर करने का प्रयास कीजिएगा।" क्योंकि दोष सदा दुखदायक ही होते हैं, आपके लिए भी और दूसरों के लिए भी."
     "हां, एक सावधानी और भी अवश्य रखें। दोष बताने से पहले उसे व्यक्ति के दो-चार गुण अवश्य बताएं। अपने गुणों को सुनकर वह व्यक्ति प्रसन्न हो जाएगा। उसका मन स्वस्थ हो जाएगा, और ऐसी स्थिति में वह अपने दोष भी कुछ ठीक ढंग से सुन पाएगा।" "यदि उसका गुण बताए बिना सीधा ही आपने दोषारोपण कर दिया, तो संभवतः वह उसे ठीक ढंग से सुनेगा भी नहीं और सहन भी नहीं कर पाएगा। तब वह गुस्सा झगड़ा करेगा।" "अधिकांश लोग ऐसा ही करते हैं। तब लाभ के स्थान पर हानि हो जाएगी। उल्टा लड़ाई झगड़ा और बढ़ जाएगा। इसलिए इस बात की भी पूरी सावधानी रखें।"

—- “स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक, निदेशक दर्शन योग महाविद्यालय, रोजड़, गुजरात।”

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