जब आयेगा वर्ष नया, तब करूंगा तेरा अभिनंदन।
नई छटा तब बिखरेगी हर कण बोलेगा अभिनंदन ।।
नहीं नयापन कहीं दीखता , सब ओर अंधेरा छाया है।
ठिठुरन अभी रक्त में सबके , मन भी नही हरसाया है।।
जब कली मुस्कान बखेरेगी, सूरज में होगी गरमाहट।
उत्साह से मन प्रफुल्लित होगा , दूर भगेगी घबराहट ।।
जब नई चांदनी चंदा देगा , और प्रकृति भी इठलाएगी।
तब प्रसन्नवदन मानव होगा ,नया गीत सृष्टि गाएगी ।।
जब मानव मन का मोर नाचकर, बीते को बिसरायेगा।
तब हर वृक्ष और हर पौधा ,फल पुष्पों से लद जाएगा ।।
बधाई का तब दौर चलेगा , मंगल भी मंगल गाएगा।
शुभ बोलेंगे इक दूजे को , और नया शमां बंध जाएगा।।
तब आएगा मेरा वर्ष नया,तब आएगा मेरा वर्ष नया
डॉ राकेश कुमार आर्य
(परमार्थ निकेतन, ऋषिकेश से)
मुख्य संपादक, उगता भारत