कल अंतर्राष्ट्रीय “नव वर्ष” जो 1 जनवरी से प्रारंभ हुआ मनाया गया, भारतीय नव वर्ष तो चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा( 9अप्रैल 2024) से प्रारंभ होगा। कल सुबह से ही नव वर्ष के संदेश आने लगे और अधिकतर लोगों ने यह भी नहीं सोचा कि वे इंगलिश नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ दे रहे हैं, यह भी नहीं सोचा गया कि जिस हर्षोल्लास से वे पाश्चात्य नववर्ष मना रहे हैं, जब भारतीय नववर्ष अर्थात,विक्रमी संवत् -2081, चैत्र शुक्ल एकम् ,जो अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 9अप्रैल 2024 को होगा, भारत में अपना नववर्ष इतने हर्षोल्लास से नहीं मनाया जाएगा। किसी समाज की अपने त्यौहारों को भूल कर किसी दूसरे समुदाय के त्यौहारों को मनाने से बड़ी मानसिक दासता और क्या हो सकती है। सौभाग्य से हम अपने समस्त त्योंहार जैसे होली,दीवाली,दशहरा, जन्माष्टमी आदि, भारतीय कैलेंडर के अनुसार ही मनाते हैं।
अब एक साधारण मनुष्य के मन में प्रश्न उत्पन्न होता है कि क्या अंग्रेजी नववर्ष भारत के लिए उपयुक्त है? यदि यह दिवस भारतीय मौसम के अनुसार नहीं है तो यहां लोग क्यों मनाते हैं ? दिखावे और अज्ञानता के कारण इस त्यौहार ने भारत में किन कुप्रथाओं को जन्म दिया हैं ?भारतीय नव वर्ष की गणना का क्या आधार है?
भारतीय नव वर्ष के विषय को निम्न प्रकार से अवलोकन विश्लेषण किया जा सकता है।
1.भारतीय नव वर्ष ,
भारत के विभिन्न भागों में अलग-अलग तिथियों को मनाया जाता है। प्रायः ये तिथियां मार्च और अप्रैल के महीने में पड़ती है परंतु कहीं भी दिसंबर-जनवरी के महीने में नहीं पड़ती, अतः भारत के लिए यह तिथि उपयुक्त नहीं है और भारतीयों के लिए इसे नव वर्ष कहना मानसिक दासता से अधिक कुछ नहीं है।
- पंजाब में नया साल बैशाखी नाम से 13 अप्रैल को मनाया जाता है,सिख समुदाय में नानकशाही कैलंडर के अनुसार14 मार्च को होला मोहल्ला नया साल होता है, इसी तिथि के आसपास बंगाली तथा तमिळ नव वर्ष भी आता है, तेलगु नया साल मार्च-अप्रैल के बीच आता है।
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एक जनवरी युरोपीयन कलंडर के अनुसार नव वर्ष है, जो सूर्य को आधार मानते हैं और इसी कारण रात के 12:00 बजे को नया दिवस मानते हैं, जो भारतीय खगोल शास्त्रियों के अनुसार पूर्णतः गलत है, वैसे भी यह कितनी अवैज्ञानिक बात है कि रात के 12:00 बजे को नया दिन माना जाए।
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अरब देशों में समय की गणना चंद्रमा के अनुसार की जाती है और इसी कारण कभी ईद बहुत ज्यादा गर्मी में और कभी बहुत ज्यादा सर्दी में आती है, परंतु इस्लाम के अनुसार भी यह नववर्ष नहीं है।
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भारतीय समय खगोल, नक्षत्र, घड़ी इत्यादि के अनुसार निर्धारित किए जाते हैं और इसी कारण 1 मिनट और एक एक सेकंड की गणना है, दुर्भाग्य से पंचांग सही नहीं बनाए जा रहे हैं इस कारण समाज में कभी-कभी असमंजस हो जाता है।
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भारत में नया साल का नाम भी अपनी सुविधा के अनुसार रखा गया है, जैसे आंध्रप्रदेश में इसे उगादी(युगादि=युग+आदि का अपभ्रंश) के रूप में मनाते हैं, यह चैत्र महीने का पहला दिन होता है, तमिल नया साल विशु 13 या 14 अप्रैल को तमिलनाडु और केरल में भी इसी समय मनाया जाता है, तमिलनाडु में पोंगल 15 जनवरी को नए साल के रूप में आधिकारिक तौर पर भी मनाया जाता है, महाराष्ट्र में गुड़ी, मारवाड़ी नया साल दीपावली के दिन होता है।
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एक जनवरी भारतीय उपमहाद्वीप के लिए वैसे भी उपयुक्त नहीं है क्योंकि यहां का मौसम बहुत खराब होता है सर्दी और धुंध के कारण घर से निकलना मुश्किल हो जाता है अतः इस समय को पर्व के अनुरूप मनाना असंभव है, परंतु अंग्रेजी दासता के कारण या अज्ञानता के कारण लोग इसे नव वर्ष के रूप में मनाते हैं।
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अब कुछ वर्षों से बाजारवाद और दिखावे के कारण कुछ कुप्रथाएं भी इस दिवस के लिए आ गई है, जैसे 2022 में 1 जनवरी को सबसे अधिक बच्चों ने महानगरों में जन्म लिया, यह सब कुछ प्राकृतिक रूप में ना होकर ऑपरेशन से किए गए और डॉक्टरों ने अनैतिकता अपनाते हुए, 1 जनवरी को बच्चे का जन्म दिलाने के लिए कई लाख रुपए अधिक लिए। इस वर्ष भी नर्सिंग होम इस कुप्रथा बढाते हुए भरे पड़े हैं।
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निष्कर्ष यह निकलता है कि 1 जनवरी केवल गणनात्मक नया वर्ष है, हमारी सनातन संस्कृति और सभ्यता के अनुसार नया वर्ष चैत्रीय शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से शुरू होता है, इस दिन कन्या पूजन होता है और अधिकांश लोग व्रत रख कर विश्व कल्याण की कामना करते हैं, इसे नवरात्र उत्सव के रूप में भी मनाया जाता है। दूसरी तरफ अंग्रेजी नव वर्ष को लोग शराब, शबाब, और अय्याशी के रूप में मनाते हैं।
दलीप सिंह एडवोकेट
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