डॉ आर्य की राष्ट्र मंदिर पुस्तक का किया गया विमोचन : राष्ट्रमंदिर निर्माण समय की आवश्यकता : स्वामी चिदानंद सरस्वती जी महाराज
ऋषिकेश। स्वामी चिदानंद सरस्वती जी महाराज के द्वारा सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता डॉ राकेश कुमार आर्य की पुस्तक उगता भारत
राष्ट्र मंदिर का विमोचन किया गया । इस अवसर पर स्वामी जी महाराज ने कहा कि हमारे प्राचीन ऋषियों ने ईक्षण किया तो राष्ट्र का निर्माण हुआ। उनके तप ,त्याग और तपस्या के फलस्वरूप राष्ट्र के मूल्य स्थापित हुए। उनके दृष्टि और दृष्टिकोण में राष्ट्र की आवश्यकता विभिन्नताओं को समेकित करने के लिए थी। उन्होंने विभिन्न मत-मतांतरों को राष्ट्र नाम के घाट पर लाकर “एक” करके दिखाया। उनके इस “एक” में ही भारत का सांस्कृतिक राष्ट्रवाद अंतर्निहित है। आज इस सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को एक मंदिर के रूप में स्थापित करना समय की आवश्यकता है।
उन्होंने कहा कि बहुत सारी विभिन्नताएं दीखने के उपरांत भी केवल “एक देव और एक देश” के प्रति समर्पित हो जाना ही भारत का सांस्कृतिक राष्ट्रवाद है। अनेक देव अनेक देश का निर्माण करते हैं। जैसा कि हमने वर्तमान संसार के विघटन के स्वरूप को देखकर समझ भी लिया है। विभिन्न संप्रदायों के विभिन्न मत प्रवर्तकों के आने से लोगों ने संसार को बांटना आरंभ कर दिया। इसके विपरीत भारत के ऋषियों का चिंतन था कि एक देव एक मानव संस्कृति का निर्माण करते हैं। जिससे एक देश की धारणा बलवती होती है। एक राष्ट्र के भीतर सब अपने-अपने कर्तव्यों का निर्वाह करते हुए अपने-अपने अधिकारों का प्रयोग करते रहें, यही भारत का मौलिक चिंतन है।
इस मौलिकता को पुस्तक रूप में इस संकल्पना सूत्र के माध्यम से लाकर डॉ आर्य ने बड़ा काम किया है। जिसे क्रियान्वित किया जाना आवश्यक है।
भारत के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद पर अपने विचार प्रकट करते हुए स्वामी जी महाराज ने कहा कि सांस्कृतिक राष्ट्रवाद में भारत का वैश्विक मानस झलकता है, इसलिए भारत की संस्कृति को "वैश्विक संस्कृति" कहकर सम्मानित किया जाता है। आप भारत के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को "वैश्विक राष्ट्रवाद" भी कह सकते हैं। "वैश्विक राष्ट्रवाद" जिस मानस से निकलता है वह इतना विराट होता है कि उसके साथ मिलकर सारा विश्व - राष्ट्र नृत्य करने लगता है। श्री कृष्ण जी का विराट स्वरूप वास्तव में उनके वैश्विक मानस की झलक थी। ऐसे विश्व मानव के मस्तिष्क में जिस प्रकार का वैश्विक चिंतन चलता है, उसमें मानव जीवन की वे सभी सृजनात्मक शक्तियां अपनी दिव्यता को प्राप्त हो जाती हैं जिनके रहते हुए संसार का कल्याण ही कल्याण होता रहता है। जिसमें संपूर्ण ब्रह्मांड झूमता सा, नृत्य करता हुआ सा, आनंद की मस्ती में गाता हुआ सा दिखाई देता है।
उन्होंने कहा कि कृष्ण जी परम योगी थे। उन्हें योगीराज इसलिए कहा जाता है कि उन्होंने परमपिता परमेश्वर की उन दिव्य शक्तियों के साथ अपना संबंध स्थापित कर लिया था जो समस्त चराचर जगत को चलाती हैं। वास्तव में ऐसी दिव्य शक्तियों के साथ ऐसा दिव्य संबंध स्थापित कर लेना बहुत बड़ी साधना का परिणाम होता है।पर ध्यान रहे कि ऐसा दिव्य चिंतन केवल भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों को अपनाकर चलने से ही प्राप्त होता है। स्वामी जी ने कहा कि राष्ट्र मंदिर स्वयं उनकी रुचि का विषय है । जिसके लिए उनका आशीर्वाद सदा डॉ आर्य और उनकी टीम के साथ है।
इस अवसर पर पुस्तक के लेखक डॉ आर्य ने कहा कि जब हमने विभिन्न पहचानों को बनाना आरंभ किया और उनके दीवाने हो गए तो वह इतनी बनती चली गईं कि हमारा मौलिक स्वरूप ही हमसे कहीं खो गया। हमें प्रांतवाद ,जातिवाद, संप्रदायवाद ,भाषावाद ,क्षेत्रवाद न जाने कैसे-कैसे और कितने कितने वादों ने घेर लिया ? हमसे हमारा अस्तित्व कहां छूट गया और कहां विलीन हो गया ? इसको खोजने तक का हमने प्रयास नहीं किया। जब निजता पर बड़े-बड़े प्रश्नचिन्ह लग जाएं और जब अस्मिता को झूठे अहंकार का ग्रहण लग जाए तो समझना चाहिए कि किसी भी राष्ट्र के लिए ऐसी स्थिति अच्छी नहीं हो सकती। हमारा वर्तमान इसी प्रकार के परिवेश का शिकार है। जिस पर हमें गहन मंथन करने की आवश्यकता है। इसी मंथन को प्रकट करने के लिए "उगता भारत राष्ट्र मंदिर" समय की आवश्यकता है। उगता भारत अर्थात उदीयमान भारत हमारी समय की आवश्यकता है। समय की इसी आवश्यकता का ध्यान रखकर अपने शानदार अतीत का मंथन करना समझो समुंद्र मंथन करना है। इसमें जो सार निकलेगा, वहीं भारत को समझाने में सहायक होगा, समझने में सहायक होगा। समय भारत को समझने का भी है और समझाने का भी है । जिसने भारत को समझ लिया वह वैश्विक व्यवस्था को अपने आप समझ जाता है और जो वैश्विक व्यवस्था को समझ कर तदनुरूप आचरण करने लगता है वह विराट व्यक्तित्व का उपासक हो जाता है। उस विराट की विशालता उसके अंतर्जगत में प्रकाश करने लगती है।
इस अवसर पर मंदिर निर्माण समिति के वरिष्ठ सदस्य श्री राकेश चंद नथानी , आचार्य धर्मेन्द्र व नागेश कुमार आर्य भी उपस्थित थे।