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इतिहास के पन्नों से

संस्मरण: आंखों से बोलते अटल जी के संग हुई अद्भुत रेलयात्रा

प्रवीण गुगनानी, विदेश मंत्रालय, भारत सरकार में सलाहकार, राजभाषा guni.pra@gmail.com 9425002270

वो कुछ चढ़ती-बढ़ती हुई गर्मियों के दिन थे। सामान्यतः गर्मियों में सुबहें शीघ्र ही गर्म हो जाती हैं किंतु मैं कुछ अधिक ही गर्म व उत्साही था। मेरी व्यक्तिगत गर्मी व उत्साह का कारण था कि हमारे प्रेरणास्त्रोत अटल बिहारी जी वाजपेयी उस दिन जीटी रेलगाड़ी से नागपुर जा रहे थे और हम लोग उनसे दो मिनिट की भेंट हेतु रेल्वे स्टेशन जा रहे थे। यद्दपि मेरा व मेरे जैसे लाखों बाल स्वयंसेवकों का मन उन दिनों कुछ बुझा बुझा ही रहता था क्योंकि हाल ही में हुए 1994 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को मात्र दो लोकसभा सीटें मिल थी। हम लोग उस समय, हमारी भाजपा को मात्र दो सीटें मिलने का दंश ही नहीं झेल रहे थे, इससे भी बड़ा व्यथित व दुखी कर देने वाला विषय यह था कि हमारे आदरणीय व प्रिय अटल जी भी ग्वालियर से लोकसभा चुनाव में पराजित हो गये थे। हृदय में इस पीड़ा, व्यथा के बाद भी अटल जी से प्रत्यक्ष मिलने और उन्हें देखने की बात से हम सभी रोमांचित और उत्साहित थे। उस समय में मैं मेरे गृह ग्राम आमला में रहता था। आमला एक छोटा सा अनजान सा ग्राम था किंतु वायुसेना का बड़ा केंद्र होने से जीटी ट्रेन वहां रुका करती थी।

           तो, अपने घर से बिस्किट के दो पैकेट उठाये और चल पड़ा अटल जी से भेंट हेतु। रेल के आने का नियत समय तो दस बजे का था किंतु उस दिन जीटी ट्रेन लगभग एक घंटा देरी से आमला पहुँची थी। माननीय अटल जी ट्रेन के द्वार पर ही खड़े थे, हमने उन्हें चलती गाड़ी में देखते से नारा लगाया “अंधेरे में एक चिंगारी - अटलबिहारी अटलबिहारी” - सुनते ही उन्होंने हाथ हिलाया और फिर हम दौड़ पड़े उनकी बोगी की ओर। हमारे साथ आमला ग्राम के कई वरिष्ठ संघ व भाजपा के नेतागण भी थे। मेरी आयु तो उस समय लगभग पंद्रह सोलह वर्ष ही थी। ट्रेन खड़ी हुई तो सबने अपने अपने भोजन, फल, फूल आदि उनकी ओर बढ़ाये। वे वरिष्ठ कार्यकर्ताओं से बात करने लगे थे, इतने में बाद में मेरा नंबर आया कि मैं उनका अभिवादन करूँ और अपना पैकेट उन्हें थमाऊँ। वे ट्रेन में ऊपर खड़े थे, प्लेटफ़ार्म उस समय नीचा हुआ करता था, वे झुके और मुझसे पैकेट लिया। मैंने देने के पूर्व बिस्किट पैकेट खोल दिया था और उन्हें खाने का संकेत किया था। इसके बाद उन्होंने जो मुझसे कहा वह बड़ा ही अद्भुत था। अपने चिरपरिचित अनुपम हास्यबोध का परिचय देते हुए वे मुझसे बोले अच्छा नीटू जी, (वरिष्ठों ने मेरा परिचय इसी बाल नाम से कराया था) तो आप बिस्किट खिलाकर मेरा बोलना ही बंद कराना चाहते हैं!! यह सुन कर सब हंसने लगे और मैं शर्मा कर पानी पानी होने लगा। मेरे बालमन को लगा कि मुझसे कोई गलती हो गई है। मुझमें तनिक ग्लानि भाव आया और मेरा मुँह उतर गया। अब, अटल जी तो मुझ जैसे लाखों कार्यकर्ताओं के मुखभाव व मनोभाव को पढ़ने वाले नेता और स्वयंसेवक ठहरे। वे मेरी झुकी नज़र की स्थिति को भाँप गये और अचानक मुझसे बोले, आओ, मेरे साथ नागपुर चलो। यह तो मेरे मन की बात कह दी उन्होंने। अटल जी ने संभवतः यह मेरा मन रखने के लिए और विनोद में ही कहा होगा, किंतु, मैं उनकी बात से एकाएक उत्साहित हो गया, और कहा कि चल ही रहा हूँ। इसके बाद उन्होंने हाथ दिया और मैं जीटी में चढ़ गया। मैं तो जैसे ट्रेन में नहीं हवाई जहाज़ में चढ़ा था उस दिन!! तो, ट्रेन चल पड़ी। अटल जी अपने कैबिन में अंदर चले गये। 

     इस प्रकार मुझे आदरणीय अटल जी के संग एक लंबी रेल यात्रा करने का सौभाग्य मिल चुका है। अतः, आज मैं गौरव से बता सकता हूँ कि मैं कभी उनका सहयात्री रहा हूँ। गाड़ी चलने के कुछ ही मिनिटों बाद मैंने फर्स्ट क्लास के उनके कैबिन में झांका और अंदर आने की अनुमति मांगी। उन्होंने सहर्ष अन्दर बुला लिया। जब उन्हें पता चला कि मैं केवल उनके कहने से नहीं चढ़ा बल्कि यह योजना बनाकर ही घर से आया था कि उनसे दस पांच मिनिट चर्चा के मोह में नागपुर तक जाऊँगा, तो वे बड़े प्रसन्न भी हुए और मेरी अल्पायु को देखते हुए तनिक आश्चर्यचकित भी हुए। उन्होंने साथ बैठाकर मुझे भोजन भी कराया और आमला से नागपुर तक लगभग साढ़े तीन घंटे तक विभिन्न विषयों पर चर्चा करते रहे। मैंने बड़े समीप से उन्हें देखा कि कब किस बात पर उनकी त्यौरियां चढ़ती उतरती हैं और कब उनकी आँखे अलग अलग विषयों पर अलग अलग प्रकार से फैलती, सिकुड़ती व अलग अलग आकार लेती हैं। मैंने उन्हें इस रेलयात्रा के मध्य इतना गहराई से पढ़ा था कि आज मैं कह सकता हूँ कि अटलजी की आंखो की भाषा को पूर्ण तो नहीं किंतु थोड़ा बहुत तो मैं समझ ही सकता हूं। वस्तुतः जो अटल जी को पहचानते थे, वे जानते थे कि अटल जी मूँह के साथ साथ अपनी आँखों से भी एक भाषा बोलते थे जिसे सुनना बड़ा ही चमत्कारिक व ऊर्जादायक अनुभव होता था। मैंने अपनी उस रेलयात्रा में अटल जी को धाराप्रवाह साढ़े तीन घंटों तक मुझसे व उनके अन्य सहयात्रियों से बोलते बतियाते देखा और सुना था। वे यदि बीच बीच में मैं कुछ मिनिटों के लिए चुप होते तो मैं कोई भी विषय छेड़ देता। मैंने उस समय जो भी उनसे कहा होगा वह निश्चित ही बालसुलभ प्रकार का कोई हल्का फुलका सा रहा होगा किंतु मेरी हर बात पर वे अपना लंबा मत प्रकट करते और न केवल संजीदगी से समझाते अपितु मुझसे यह भी पूछते कि समझ रहे हो या नहीं? वो एक अद्भुत अनुभव था। उस रेल यात्रा का समापन नागपुर के रेशिम बाग स्थित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुख्यालय पर जाकर हुआ। वहाँ जाकर उन्होंने मुझे भोजन करने हेतु कहा और स्वयं अपने नियत बैठक-कार्यक्रम आदि के लिए चले गये। 

    उस समय मेरे पास मोबाइल या कैमरा न होने का दुख जीवन भर होता रहेगा। मोबाइल तो उस समय होता ही नहीं था और कैमरा रखने लायक़ अपनी हैसियत थी नहीं। उस दिन कैमरा नहीं था, इस बात की कमी जीवन भर खलती रहेगी। पास में एक ऑटोग्राफ़ बुक थी जिसमें अटल जी का संदेश और हस्ताक्षर ले लिए थे। आज आँखों से भी बोलने वाले आदरणीय अटल जी की जयंती पर उन्हें प्रसिद्ध दार्शनिक सुकरात की कही हुई बात के साथ सादर नमन!!   

प्रसिद्ध दार्शनिक सुकरात ने कहा था कि “जिस देश का राजा कवि होगा उस देश में कोई दुखी न होगा” – अटल जी के प्रधानमंत्रित्व काल में यह बात चरितार्थ हो रही थी। स्वातंत्र्योत्तर भारत में कुछ ही ऐसे नेता हुए हैं जो विपक्षियों से भी सम्मान पाते हों। और, ऐसे जननेता तो एक-दो ही हुए हैं जो विपक्षियों से न केवल सम्मान पातें हैं बल्कि दिग्गज से दिग्गज विपक्षी नेता भी उनकें विषय में चर्चा करते हुए न केवल आदर अपितु श्रद्धा भाव से ही बात करते हैं। अटल जी उनमें से ही एक हैं। पुनः नमन!!

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