जीवन के दोराहे पर खड़े सोचते हैं हम
नरेन्द्र नाईक – विभूति फीचर्स
आज देश जिस दौराहे पर खड़ा है, उससे आम आदमी हतप्रभ है। यूं तो आम आदमी 24 घंटे अपनी उलझनों से दो-चार रहता है परंतु कभी-कभार अपने देश-प्रदेश के बारे में भी चिंतन कर लेता है। जब देश की वर्तमान परिस्थितियों के बारे में सोचता है तो उसे सिवाय निराशा के कुछ हाथ नहीं लगता।
वह देखता है कि देश को आजादी दिलाने में कई लोगों ने अपना बलिदान दिया, कई नेताओं ने कई वर्ष जेल की सलाखों के पीछे बिताये हैं और भारी मशक्कत के बाद महात्मा गांधी के अहिंसक आन्दोलनों के जरिये आजादी मिली। जिन्होंने आजादी की संगे बुनियाद रखी बाद में विभाजन का दर्द भी झेला, उन्हें क्या पता था कि आजादी के कुछ दशकों बाद ही यह देश विषम परिस्थितियों से गुजरेगा। आज हालत यह है कि राजनैतिक पार्टियों ने अपने सिद्धांत खंूटियों पर टांग दिये हैं। देश के कई हिस्से आयातीत विचारधाराओं के साये में सांस ले रहे हैं। ऐसे इलाकों को आयातीत विचारधारा के शिकंजे से मुक्त कराने की कवायद में कई सुरक्षा बलों के जवानों एवं पुलिस ने अपने प्राणों की आहुतियां दीं है। ऐसे इलाकों के लिए कभी ठोस नीतियों के साथ सरकार ने कदम नहीं उठाये, जिसका खामियाजा बेकसूर जनता को भोगना पड़ता है, जिसके चलते सरकार के सामने भी उलझनें खड़ी होती रहती हैं।
आज कई राज्यों में क्षेत्रीय दल सरकारें चला रहे हैं, जिनके आकाओं की इच्छा रहती है कि वे केन्द्र में महत्वपूर्ण पद प्राप्त करें। अगर बात न बने तो भी सरकार चलाने की चाबी हमारे हाथ में रहे। देश में मौजूद हर पार्टी जो केन्द्र में, सत्ता में रही या राज्यों में, वह कमोबेश भ्रष्टाचार के चक्रव्यूह में उलझी है। बड़े नेताओं ने भ्रष्टाचार के किस्से सुन-देख आम जनता उन पुराने नेताओं को याद करती है, जिन्होंने अपनी ईमानदारी के परचम लहराये। आज ऐसा एक भी नेता जनता को दिखाई नहीं देता, जो उन नेताओं की बराबरी कर सके। आज देश की धर्म-निरपेक्षता की छवि दांव पर लगी है। कोई भी दल देश के बारे में गंभीरता से सोचने के लिये तैयार नहीं है। सब अपने आने वाले कल को सुखमय बनाने के चक्कर में हैं।
अधिकतर एनजीओ लोगों की भलाई के नाम पर अपना भला कर रहे हैं, जिसकी निगेहबानी करने वाला कोई नहीं है। जनता यह देख हैरान- परेशान है कि आखिर देश में हो क्या रहा है? अन्ना टीम बिखर चुकी है। अन्ना टीम के कई सदस्य अनियमितताओं के घेरे में आ गये हैं, जिससे अन्ना की साख को धक्का लगा। बाबा रामदेव भी अनेक आरोपों की जद में आ गये। राजनैतिक दलों के नेता खुद आरोपों की शमशीरों से घायल हैं और सफाई देते फिर रहे हैं। वे उस जनता को जो आजादी के 60 से ज्यादा बसंत देख चुकी है, को यह समझाने का प्रयास कर रहे हैं कि आरोप एकदम बेबुनियाद एवं झूठे हैं।
आज देश में प्राकृतिक संसाधनों का दोहन बड़े पैमाने पर किया जा रहा है। देश में जंगलों का रकबा घटता जा रहा है। पौधरोपण के नाम पर पर्यावरण से मजाक किया जा रहा है। राष्ट्रीय भावना कमजोर पड़ती जा रही है। इस बारे में चिंतन करने का किसी भी नेता के पास समय नहीं है। मनरेगा जैसी योजना का लाभ गरीब कम, दलाल लोग ज्यादा उठा रहे हैं, जिसकी नजरेसानी करने को कोई तैयार नहीं है।
आज देश के बड़े शहर अपराधों से भरे पड़े हैं। पुलिस को स्वतंत्रतापूर्वक कार्य करने में कई बाधाओं का सामना करना पड़ता है। प्रभावशाली लोगों की छत्रियां उठाने वाले लोग पुलिस को ज्ञान बांटने का कार्य बड़ी ईमानदारी से करते हैं कि पुलिस को किसको पकडऩा है, किसको छोडऩा है। कोई भी अफसर अगर नियम-कायदों से कार्य करता है तो वह इन लोगों को खटकने लगता है। उसे तुरंत दुर्गम क्षेत्र की ओर रवाना कर दिया जाता है।
जो भी पार्टी सत्ता में आती है वह चाहती है कि उसके घोषणा-पत्र के अनुसार सभी काम हो। सरकारी योजनाओं से लाभ समाज के आखिरी व्यक्ति तक पहुंचे, जिससे वह दोबारा सत्ता में आ जाये परंतु इच्छाओं के अनुसार कार्य नहीं हो पाते। उच्च स्तर पर होने वाली अनियमितताओं से आम जनता व बुद्धिजीवी वर्ग परेशान है। आर्थिक सुधारों के नाम पर पूरा देश खम्भे पर चढ़-उतर कर रहा है। महंगाई दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। खाद्य पदार्थों में मिलावट जगजाहिर है। फर्टिलाइजर के बेतहाशा इस्तेमाल से जमीन की उर्वरा शक्ति कमजोर पड़ती जा रही है। पूरे देश में सड़कों का जाल बिछाया जा रहा है परंतु तेज रफ्तार वाहनों की गति पर कोई अंकुश नहीं है, जिससे निरीह जनता दुर्घटनाओं की शिकार हो रही है। नदियां दूषित हो रही हैं, जिसकी चिन्ता किसी को नहीं है। बड़े बांध बनते हैं पर उनके रख-रखाव की ओर ध्यान कम ही दिया जाता है। पुनर्वास की योजनाओं से फर्जी लोग लाभ प्राप्त करने में सफल हो जाते हैं, बाद में लकीर पीटी जाती है।
देश में विदेशी संस्कृति का तेजी से विस्तार हो रहा है, जिसके चलते खुद हमारी प्राचीन सांस्कृतिक स्मिता की पहचान खतरे में पड़ गई है। जो गंभीर चिंता का विषय है। जगह-जगह रेव पार्टियों में युवाओं के शामिल होने के प्रमाण मिल रहे हैं, जो समाज के लिये खतरनाक संकेत हैं और युवा वर्ग को भटकाव की राह की ओर ले जाने वाले साबित हो सकते हैं।
कमजोर होती राष्ट्रीयता की भावना के कारण देश कमजोर होता जा रहा है। क्षेत्रीयता का नासूर अब इस देश को परेशान करने लगा है। आज कई नेता अपने गलत कामों के चलते मुकदमों का सामना कर रहे हैं, फिर भी उनके चेहरे पर शिकन तक नहीं है और मजे की बात तो यह है कि जब तक आरोप सिद्ध न हों, तब तक वे बेदाग हैं।
बड़े स्तरों पर होने वाली अनियमितताएं सरकार के कारिन्दों को संकेत देती है कि जब ऊपर चल रहा है तो हम क्यों नहीं कर सकते हैं, जिसके उदाहरण सामने हैं। लोकायुक्त, सीबीआई द्वारा सरकारी अफसरों बाबुओं के यहां लगातार छापेमारी से बरामद भारी-भरकम रकम इसका जीता-जागता उदाहरण है। आज भ्रष्टाचार जीवन का अंग बन चुका है। हालांकि अपवाद भी है कि काजल की कोठरी में सभी काले नहीं होते। ईमानदार अफसरों को कोई काम करने नहीं देता है। आज हालत यह है कि इस जद में ग्रामीण क्षेत्र भी आ रहे हैं। आज सैकड़ों पंचायतें अनियमितताओं के आरोपों से ग्रस्त हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में इस बीमारी के घुसने से ग्रामीण अर्थ-व्यवस्था प्रभावित हो रही है। (विभूति फीचर्स)